खुद को आंकड़े होने से बचाईये
श्यामल सुमन
अपने देश में हर सियासी दलों के मदारियों ने कुछ जमूरे तैयार कर रखे हैं जो उनकी कही / अनकही बातों को तमाशाईयों के सामने अपने अपने तरीके से पेश करके उन मदारियों के हित को साध रहे हैं और देश की आम जनता सिर्फ तमाशाई बनकर रह गई है।
सोशल मीडिया पर इतने गंध भरे पोस्ट कभी देखने को नहीं मिले पिछले दसियों साल में जितने आज देख रहा हूँ। अपने अपने मदारियों के समर्थन में जी जान से लगे हैं सबके जमूरे। विष वमन करती भाषा के साथ साथ नफरत से भरे विघटनकारी और फिर टिप्पणी में गाली गलौज तो बिल्कुल आम है आजकल।
आखिर क्या बाँटने की कोशिशें हो रहीं हैं समाज में? क्या जमूरे इतने बेलगाम हैं? क्या मदारियों का जमूरों पर से नियंत्रण खत्म हो गया है? या यह मदारियों की कोई नयी सियासी रणनीति है? हमें इसे ठीक से समझने की जरूरत है। हम सिर्फ तमाशाई बनकर नहीं रह सकते क्योंकि एक नागरिक के रूप में इस समाज को गढ़ने और भविष्य में और बेहतर परिवेश बनाने की जिम्मेवारी से हम खुद को बचा नहीं सकते।
मुख्यधारा के समाचार चैनलों की भी यही दशा है। वहाँ भी टी आर पी के चक्कर में देश की सही तस्वीर से आम जनता को मरहूम रखकर बहस के नाम पर अपने अपने मदारियों के पक्ष में जमूरों को खूब लड़वाया जाता है है। तथाकथित बहस, वाक्-युद्ध में परिवर्तित होकर अमर्यादित भाषा के साथ गाली गलौज और आजकल हाथपाई तक पहुंच जाता है। हम फिर भी तमाशाई की तरह अपने अपने घरों में बुद्धु-बक्से के सामने बैठकर उसे मजे लेकर सुनते रहते हैं और उसे ही अपना ज्ञान समझकर अवसर मिलते ही मित्रों / परिजनों में बाँटने में भी बिल्कुल नहीं चूकते।
आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? देश महामारी के कारण मौत के मुहाने पर खड़ा है, चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में हजारों हजार लोग प्रतिदिन काल के गाल में समा रहे हैं, हजारों लोग मौत को गले लगाने की तैयारी में प्रतिक्षित हैं, श्मशानों मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए लाइन लगी है, फिर भी हम सम्वेदनहीन की तरह सिर्फ तमाशाई बने हैं और मदारी अपने जमूरे की मदद से अपना-अपना सियासी करतब दिखा रहा है। क्या हम सचमुच बेबस हैं? या यथास्थिति से खुद को बाहर निकालने से डरते हैं?
धिक्कार है हमारी सोच पर! क्या हम अपनी सम्वेदना खो चुके हैं? क्या मनुष्यता का कुछ भी अंश हममें शेष है? हर किसी को विचार करना होगा और अगर अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक बेहतर सामाजिक परिवेश हम नहीं छोड़ पाएंगे तो याद रखिए हमारी सन्तति ही हमें भविष्य में धिक्कारेगी।
मत भूलिए कि मदारी चाकू है और जमूरे सहित हम सभी तमाशाई कद्दू। चाकू, कद्दू पर गिरे या कद्दू पे चाकू हर हाल में कद्दू कटता है। मदारी सुरक्षित ही रहेंगे और हम, आप कटते रहेंगे। यह भी मत भूलिए की हर मदारी की नजरों में हम सिर्फ एक आंकड़े भर हैं। तो आईये! अपनी अपनी आँखें खोलिए और खुद के नागरिक-बोध को आंकड़े होने से बचाईये। वरना न इतिहास आपको माफ करेगा, न आप ही खुद को माफ कर पाएंगे और न ही आपकी आनेवाली पीढ़ी। जय हिन्द