देवानंद सिंह
भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव और उसके परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन को लेकर भले ही विपक्ष तल्ख रुख अपनाए हुए है, लेकिन प्रधानमंत्री का यह संबोधन एक निर्णायक क्षण के रूप में उभर कर सामने आया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से हुए इस सैन्य अभियान ने न सिर्फ भारत की सैन्य नीति में बदलाव का संकेत दिया, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति में भी कई अहम संकेत छोड़े हैं। यह संघर्ष चार दिनों तक चला, इसके तहत एक ओर जहां सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला हुआ, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दी, विशेषकर अमेरिका की भूमिका को लेकर।
उल्लेखनीय है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक कर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, यह कार्रवाई 100 से अधिक आतंकी ठिकानों को नष्ट करने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह भारत की उस घोषित नीति का विस्तार था, जिसमें ‘टेरर और टॉक’, ‘टेरर और ट्रेड’ को एक साथ अस्वीकार्य माना गया है।
यह स्पष्ट है कि भारत अब आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं को केवल कूटनीतिक विरोध तक सीमित रखने को तैयार नहीं है। मोदी सरकार की ओर से यह बयान कि भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा और आतंकी आकाओं और सरकार को अलग-अलग नहीं देखा जाएगा, निश्चित रूप से यह इस दिशा में भारत की सोच को स्पष्ट करता है।
10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा हुई। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीज़फायर में अमेरिका की मध्यस्थता की बात कही, जबकि भारत ने अपने आधिकारिक बयानों में अमेरिकी भूमिका का उल्लेख नहीं किया। मोदी ने साफ कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ स्थगित हुआ है”, यानि सैन्य कार्रवाई स्थायी रूप से रुकी नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के व्यवहार के आधार पर पुनः शुरू हो सकती है। यह एक स्पष्ट चेतावनी है कि भारत ने इस संघर्षविराम को एक समझौता नहीं बल्कि रणनीतिक ठहराव के रूप में देखा है। मोदी ने कहा,”हर कदम मापा जाएगा कि पाकिस्तान क्या रवैया अपनाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान कि उन्होंने ‘ट्रेड’ यानि व्यापार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए भारत और पाकिस्तान को सीज़फायर के लिए मनाया, यह दिखाता है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में सैन्य संघर्षों को सीमित रखने के लिए अपने आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है, हालांकि भारत ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी, पर मोदी का अमेरिका का ज़िक्र न करना एक राजनीतिक संदेश हो सकता है कि भारत अब अपने निर्णयों को बाहरी दबावों से निर्देशित नहीं होने देना चाहता।
सिंधु जल संधि का निलंबन इस पूरे प्रकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ था। 1960 से चली आ रही इस संधि को भारत ने पहली बार निलंबित करते हुए यह संकेत दिया कि अब जल, आतंक और कूटनीति को अलग-अलग नहीं देखा जाएगा। यह एक कड़ा संदेश था कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते। साथ ही, मोदी का यह बयान कि पाकिस्तान से बात अगर होगी तो केवल आतंकवाद या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर होगी, भारत की पारंपरिक नीति से एक स्पष्ट विचलन का संकेत है। यह संवाद को सीमित कर देता है, पर यह भी दर्शाता है कि भारत अब पहले की तरह ‘स्ट्रेटजिक रेस्ट्रेंट’ की नीति पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
दोनों देशों ने एक-दूसरे को भारी नुकसान पहुंचाने के दावे किए। भारत ने दावा किया कि उसने पाकिस्तान के कई एयर बेस और आतंकी शिविर नष्ट किए, जबकि पाकिस्तान ने भारत के 26 सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की बात कही, हालांकि स्वतंत्र स्रोतों से इन दावों की पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन यह ‘सूचना युद्ध’ की रणनीति का ही हिस्सा है, जहां जीत केवल रणभूमि में नहीं, बल्कि जनमानस और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सोच में भी तय होती है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि ये युग युद्ध का नहीं है, लेकिन आतंकवाद का भी नहीं है, इस पूरे संघर्ष की मूल भावना को रेखांकित करता है। भारत अब आतंकवाद को केवल सुरक्षा या कूटनीतिक मसला नहीं, बल्कि वैश्विक मानवाधिकार और अस्तित्व का प्रश्न मान रहा है, लेकिन इस नीति के साथ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह एक ‘लंबी लड़ाई’ है — जिसमें सैन्य शक्ति के साथ निरंतर कूटनीतिक दबाव, वैश्विक समर्थन और आंतरिक एकजुटता की आवश्यकता होगी।
कुल मिलाकर,’ऑपरेशन सिंदूर’ एक सीमित सैन्य अभियान था, लेकिन इसके प्रभाव और संदेश व्यापक हैं। यह भारत की रणनीतिक संस्कृति में बदलाव का प्रतीक है, जहां अब ‘संयम’ की जगह ‘सक्रिय प्रतिरोध’ को जगह दी जा रही है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि अब हर आतंकी हमले की कीमत चुकानी पड़ेगी, कूटनीतिक स्तर पर भी, सैन्य और आर्थिक स्तर पर भी। वहीं, भारत को भी यह समझना होगा कि इस नई नीति को केवल भाषणों और सैन्य कार्रवाइयों से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता और आंतरिक सुशासन से ही स्थायी रूप दिया जा सकता है।