देवानंद सिंह
भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव एक बार फिर इस्लामाबाद की दोहरी नीति और उसकी विफल विदेश व सैन्य रणनीति को बेनकाब कर रहा है। एक ओर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति की बातें करता है, वहीं दूसरी ओर वह आतंकियों को ढाल बनाकर भारत में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है। इस बार स्थिति इसलिए और भी गंभीर है, क्योंकि पाकिस्तान ने केवल सैन्य ठिकानों तक अपनी हरकतें सीमित नहीं रखीं, बल्कि उसने धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। यह न सिर्फ युद्ध के नियमों के खिलाफ है, बल्कि
भारत में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की एक गहरी साजिश का संकेत भी देता है, हालांकि भारत ने न सिर्फ इस उकसावे पर संयम से प्रतिक्रिया दी है, बल्कि दुनियाभर के सामने पाकिस्तान के झूठ और दुष्प्रचार की भी परतें उधेड़ी हैं।
पाकिस्तानी सेना और आतंकियों द्वारा सीमावर्ती इलाकों में विशेष धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाना एक बेहद चिंताजनक संकेत है। यह किसी भी सैन्य संघर्ष के नियमों का खुला उल्लंघन है और यह दर्शाता है कि पाकिस्तान युद्ध को एक धार्मिक संघर्ष का रूप देना चाहता है, ताकि भारत के भीतर सांप्रदायिक तनाव पैदा हो और देश के सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचे, लेकिन भारत की जनता इस बार और भी अधिक एकजुट है। चाहे वह किसी भी धर्म, राज्य या पंथ से संबंधित हो, हर भारतीय सैनिकों के साथ खड़ा है।
भारत ने पाकिस्तान के हर उकसावे की कार्रवाई का जवाब दिया है, लेकिन यह जवाबी कार्रवाई न सिर्फ सैन्य दृष्टि से अत्यधिक सटीक रही है, बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी अनुकरणीय रही है। भारतीय सेना ने बार-बार उकसाए जाने के बावजूद केवल उन ठिकानों को निशाना बनाया है, जो आतंकियों के गढ़ थे और जहां से भारत पर हमलों की साजिशें रची जा रही थीं। यह भारतीय सैन्य नीति की परिपक्वता को दर्शाता है, जो युद्ध की बजाय आतंकवाद से निर्णायक लड़ाई के पक्ष में खड़ी है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ इस संयम और सटीकता का जीता-जागता उदाहरण है। इस ऑपरेशन के जरिए न केवल पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान की भूमिका सामने आई, बल्कि उन तमाम नेटवर्कों का भी पर्दाफाश हुआ, जो सीमा पार से चलाए जा रहे थे। इसी तरह सांबा में घुसपैठ करते सात आतंकियों का मारा जाना इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान अभी भी भारत में अराजकता फैलाने की मंशा से आतंकियों को भेज रहा है।
पाकिस्तान इस समय चारों तरफ से संकट में घिरा है। उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है, राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है और वैश्विक मंचों पर उसकी विश्वसनीयता लगातार गिर रही है। ऐसे में, युद्ध जैसी परिस्थिति को पैदा करना दरअसल उसकी एक साजिश है, जिससे वह अपने आंतरिक संकटों से ध्यान भटका सके और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति जुटा सके। लेकिन उसकी यह कोशिश उलटी पड़ती जा रही है। यह अत्यंत आपत्तिजनक है कि पाकिस्तान ने न सिर्फ आतंकी संगठनों को आगे कर युद्ध का नया तरीका अपनाया है, बल्कि वह आम नागरिकों को भी ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। यह एक युद्ध अपराध है और इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा होनी चाहिए।
युद्ध जैसे हालात होने के बावजूद पाकिस्तान ने अपने एयरस्पेस को बंद नहीं किया है और सीमावर्ती इलाकों में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को जारी रखा है। यह दिखाता है कि वह जानबूझकर हालात को बिगाड़ना चाहता है, ताकि यदि कोई अनहोनी घटित होती है तो वह भारत पर इसका दोष मढ़ सके। यह भी एक रणनीतिक छलावा है, जिसका उद्देश्य युद्ध को भड़काने और उसे एक अंतरराष्ट्रीय संकट के रूप में प्रस्तुत करने का है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य में वैश्विक समुदाय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। अब केवल ‘दोनों पक्षों से संयम की अपील’ पर्याप्त नहीं है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की गतिविधियों का मूल्यांकन निष्पक्ष रूप से करना होगा और उसके द्वारा किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य वैश्विक संस्थाओं को पाकिस्तान पर दबाव डालना होगा कि वह आतंकवाद को समर्थन देना तत्काल बंद करे।
भारत ने अब तक जिस प्रकार संयम और सटीकता के साथ इस संकट को संभाला है, वह प्रशंसनीय है, लेकिन अब यह भी समय है कि भारत और वैश्विक समुदाय पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति में बदलाव लाए। पाकिस्तान की हर हरकत को केवल निंदा करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि उसे दी जा रही हर प्रकार की सहायता और समर्थन को रोकने की जरूरत है। आतंकवाद को केवल सीमा पर नहीं, वैश्विक मंचों पर भी निर्णायक रूप से पराजित करना होगा।
भारत की जनता और सेना इस चुनौती के सामने पूरी तरह एकजुट हैं। हमें यह भरोसा रखना चाहिए कि अगर, स्थिति और बिगड़ती है, तो भारत की सैन्य और कूटनीतिक शक्ति न केवल इसका प्रभावी जवाब देगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि पाकिस्तान की यह अंतिम कोशिश हो आतंक के सहारे भारत को झुकाने की। दुनिया को अब तटस्थ दर्शक नहीं, बल्कि जिम्मेदार साझेदार की भूमिका निभानी होगी।