कांग्रेस के लिए मन के जीते जीत है, मन के हारे
निशिकांत ठाकर
परतंत्र मानव के जीवन में सुख कहां! उसके जीवन में तो दुख ही विवशता लिखी होती है, दुख भोगना उसकी नियति होती है। बेड़ियां किसी और ने या हमने स्वयं पहनी हों, वस्तुतः है तो परतंत्रता ही। शस्त्र या शास्त्र हमारे हों या अन्य के, जो पराधीन करे वही तो बंधन है। पराधीनता है सिंह को पिंजरे में बंद कर देना, परतंत्रता है मानो सीमा-रेखा खींच देना। स्वतंत्रता है असीम, सीमारहित, उन्मुक्त आकाश, जिधर मन करे, जैसा मन करे, विचरण करें। चाहे राजतंत्र हो या प्रजातंत्र, परतंत्रता की ऐसी ही बेड़ियों को काटने लिए हम अपनी कई पीढ़ियों को झोंक देते हैं। जब हम परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्र हो जाते हैं, तभी परतंत्रता का सही अर्थ समझ में आता है। यह बात यहां इसलिए उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया; क्योंकि परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के लिए सच में कांग्रेस को अथक प्रयास करना पड़ा, देश ने असंख्य कुर्बानियां दीं, हजारों शहीद हुए, उसके बाद ही हम उन्मुक्त जीवन जीने लिए अपनी अगली पीढ़ी के मार्गदर्शक बन सके।हमने त्याग किया, कुर्बानियां दीं, तो उसका लाभ हमें देश की जनता ने वर्षों तक दिया। उन्होंने हमें हाथों हाथ ऊपर उठाया और हम सत्तारूढ़ होकर देश की नींव को मजबूत करते रहे, लेकिन आज के समय में कांग्रेस कमजोर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसी जनता ने हमें सत्ता से बेदखल कर दिया और हम अपने को परतंत्र मानने लगे। इसे फिर से वापस अपने हिसाब से कैसे लाया जाए, इन्हीं मुद्दों का हल ढूंढने के लिए कांग्रेस का महाधिवेशन अहमदाबाद में पिछले दिनों संपन्न हुआ।
सत्ता को पुनः हासिल करने के लिए तमाम तरह के तर्क दिए गए, उसके निदान भी ढूंढ़े गए। अब उसी आधार उनका कार्यान्वयन भी किया जाएगा और इस उम्मीद से किया जाएगा कि समाज को उन कमियों से निजात दिलाने के लिए किस तरह से प्रयास करना चाहिए। यह तो सत्य है कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले राष्ट्र को नियंत्रित करने के लिए इसकी गरीबी, बेरोजगारी को खत्म करने में कोई-न-कोई तो कमी रह ही जाती है, लेकिन उन कमियों को दूर करने के लिए सत्ता के उच्च स्तर पर काम करने वालों की नजर हर तरफ होती है। वह उसको खत्म करने के लिए लगे भी होते हैं, लेकिन किसी समस्या का समाधान तभी संभव है, जब उस पर सरकार का ध्यान रहे। लेकिन, यह भी सच है कि ध्यानाकर्षण के लिए लोकतंत्र में संविधान द्वारा जनता को आजादी दी गई है। वह चाहे तो सड़क पर, वह चाहे तो विधानसभा में, लोकसभा के माध्यम से सरकार का ध्यानाकर्षित करने का अवसर दे सकती है। लेकिन, आज सरकार पर यही तो आरोप विपक्षी दल लगा रहे हैं कि उनके जनप्रतिनिधयों को सदन में बोलने से रोक दिया जाता है। ऐसे में जनता की आवाज को हम आखिरी सिरे पर पहुंचा नहीं पाते। यदि सच में ऐसा है, तो निश्चित रूप से मानिए कि लोकतंत्र में आवाज को दबाया जा रहा है। सत्तारूढ़ तो इस आरोप को स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन विपक्ष को अपनी बातों को सदन के बाहर कहने दिया जाता है। लेकिन, सदन में कही गई बात और सार्वजनिक जनसभा में कही गई बात का असर अलग-अलग तरीके से होता है।
कांग्रेस ने अपने अहमदाबाद अधिवेशन में इस बात को गंभीरता से उठाया कि चुनावों में घोटाला हो रहा है, इसलिए बैलेट पेपर से चुनाव हो, तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो पाएगा। यदि आप चुनाव के इतिहास पर नजर डालेंगे, तो सबसे पहले आजादी के बाद देश में हुए, यानी 1951–52 में हुए चुनाव पर नजर डालना ही होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उस समय देश आजाद ही हुआ था। उस वक्त देश में संसाधनों की घोर कमी थी, आवागमन भी दुरूह था, लेकिन इसके बावजूद पहला और संसाधनहीन चुनाव होने के बावजूद देश में सरकार बनी और छिटपुट बूथ कब्जा को छोड़कर कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। फिर धीरे-धीरे देश विकास की ओर बढ़ता गया और तरह तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लगाए जाते रहे। बता दें कि पहला चुनाव बैलेट पेपर से ही हुआ था; क्योंकि उस काल में ईवीएम नामक कोई चीज थी ही नहीं। विपक्ष ने अपने अहमदाबाद अधिवेशन में इस पर भी विचार किया और माना कि ईवीएम के माध्यम से कराए जा रहे वोटिंग नियम को बदला जाए और पुनः वापस बैलेट पेपर से ही चुनाव कराए जाएं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कांग्रेस अधिवेशन में आरोप लगाया कि यदि ईवीएम को नहीं हटाया गया, तो देश के युवा उठ खड़े होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी संपत्तियों को पूंजीपतियों के हाथों बेचा जा रहा है, साथ ही महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव को असाधारण धोखाधड़ी बताते हुए उन्होंने कई और गंभीर आरोप सत्तारूढ़ दल पर लगाए।
फिर अग्रिम चुनावी मुद्दों का नतीजा ढूंढने की भी गहन चर्चा की है जिनमें प्रमुख था गुजरात। वर्षों से जहां सत्ता से बेदखल है, कांग्रेस उस राज्य में चुनाव जीतने की योजना बना रही है। चुनाव में क्या होगा, यह तो चुनाव संपन्न होने के बाद ही पता चलेगा। गुजरात में तीन दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल के साथ सेवा का यज्ञ करना है। कांग्रेस ने सत्तारूढ़ पर यह भी आरोप लगाया कि तीस वर्ष के शासन में भ्रष्टाचार तथा बर्बादी के माध्यम से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के विकास को ग्रहण लगा दिया। अतः अपनी नीति को और मजबूती से लागू करने की योजना पर गहन विचार विमर्श किया।
इतने सारे आरोपों के बाद भारतीय जनता पार्टी कैसे चुप रह सकती है। इसलिए उनके नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अब इतने दिनों बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल की याद कांग्रेस को क्यों आई? दरअसल यह सब चुनावी जुमला कोई बनाए, आखिरकार फैसला तो आम जनता को लेना है, चुनाव तो उनके माध्यम से ही जीता जा सकता है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जनता को, समाज को कैसे भरोसे में कैसे लिया जाए। देश में कहीं जो सरकार बनती है, वह इसलिए कि वह समाज के उत्थान के लिए काम करेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। देश और राज्य की जनता आजादी के बाद से अब तक इसी भुलावे में रहकर ऐसे लोगों को चुनकर भेजा, जिनकी छवि नेता की नहीं, बल्कि भीड़ इकट्ठा करने वाले ‘जमूरे’ जैसी होती है। ऐसे नेता न तो देशहित की बात कर सकते हैं, न समाज कल्याण पर मंथन। कुछ पार्टी के नेता तो ऐसे अज्ञानी होते हैं जिन्हें इतना भी पता नहीं होता कि हमारा देश कब आजाद हुआ, देश को आजादी दिलाने किन किन महान विभूतियों ने अपनी आहुति दी। देख गया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए जिन्होंने कुछ पढ़ा नहीं, नेहरू के इतिहास को जाना नहीं, वह भी खुलकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं. नेहरू को गालियों से नवाजते हैं। लेकिन, हां उन महान विभूतियों को अपशब्द कहने से समाज में उनका मान-सम्मान बढ़ता है, तो वह वैसी ही बात करते हैं। तो क्या अब ऐसे लोग ही चुनकर लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा में समाज के उद्धार के लिए आगे आएंगे?
सच प्रश्न है कि कांग्रेस कुछ भी नीति बना ले, लेकिन उसे भारतीय जनता पार्टी से आगे आने के लिए कठिन तपस्या करनी पड़ेगी। आज भारतीय जनता पार्टी का जन्म जहां से हुआ है, वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। जिसका काम कथित सही-गलत विचारधारा के जरिये लगातार अपने तथाकथित हिंदुत्व विचारधारा से सदैव समाज को अवगत कराते रखना है। यह संगठन अपनी सरकार के प्रति पूरी तरह समर्पित रहकर अपने मतदाताओं के बीच जाकर उन्हें अपने करीब करते रहने का कोई भी मौका नहीं गंवाता है। कांग्रेस के पास ऐसी कोई टीम नहीं है, जो वर्षों चुनावी मोड में रहता हो और अपनी पार्टी के नजरिये से समाज को अपडेट करता रहे, अपना वोट बैंक बनाए रखे। दूसरी धीरे-धीरे जो बात समाज की समझ में आने लगी है, वह यह कि उनके नेताओं और विशेषकर समाज के इर्द-गिर्द रहनेवालों को घमंड हो गया है कि उनके नेताओं ने देश के लिए बहुत कुछ दिया है और आजादी के आंदोलन में उनका योगदान सराहनीय रहा है। लेकिन, वह इस बात को भूल जाते हैं कि समाज ने इतिहास पढ़ना छोड़ दिया है। आज सब उगते हुए सूर्य को प्रणाम करने लगे हैं। आजादी को पाए हुए अब काफी समय गुजर गया, इसलिए जनता नई पौध के जड़ में पानी डालना याद रखना चाहती है और पुरानी यादें को अपनी स्मरण से बाहर रखना चाहती है। आज वही कहावत चरितार्थ है कि जैसी हवा चली है, उसकी तरफ पीठ करके चलते जाओ, वही सफलता की राह आसान करेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)
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