बिहार कांग्रेस की राजनीति में बदलते समीकरण
देवानंद सिंह
आने वाले कुछ महीनों में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसको लेकर राज्य में जिस तरह कांग्रेस ने अपनी सक्रियता बढ़ाई है, उसने राज्य के महागठबंधन में हलचल पैदा कर दी है। खासकर, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार की बढ़ती भूमिका पार्टी की चुनावी रणनीतियों और बिहार में उसकी भविष्यवाणी की दिशा में कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रहे हैं। कांग्रेस का यह कदम खासतौर पर राजद और तेजस्वी यादव के लिए असहजता का कारण बन सकता है। इसे नजरअंदाज भी किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि 28 सितंबर 2021 को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी जॉइन करने के बाद कन्हैया कुमार ने अब तक बिहार में महज तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं। हालांकि, कन्हैया का जुड़ाव बिहार कांग्रेस के साथ महज एक साधारण राजनीतिक संबंध नहीं प्रतीत होता है। कन्हैया की एंट्री ने राज्य की राजनीति में कई तरह के बदलावों की संभावनाएं पैदा की हैं। खासकर, राजद और तेजस्वी यादव के लिए यह एक असहज स्थिति उत्पन्न कर रहा है। यहां एक बात पर गौर करने की जरूरत है कि कन्हैया कुमार की चुप्पी उन्होंने अपने सहयोगी दल राजद के बारे में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बनाए रखी, जो इस बात का संकेत देती है कि वह किसी प्रकार के संघर्ष से बचते हुए अपने कार्यों को गंभीरता से अंजाम देना चाहते हैं, हालांकि कन्हैया कुमार का बिहार कांग्रेस में प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस उन्हें एक सक्षम नेता के रूप में स्थापित कर पाएगी या नहीं ? पार्टी की रणनीति को लेकर कई प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। 16 मार्च से शुरू होने वाली ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा में कन्हैया कुमार को एक अहम भूमिका में देखा जाएगा। हालांकि, पार्टी ने उन्हें इस यात्रा का आधिकारिक चेहरा नहीं घोषित किया है, फिर भी यह यात्रा कांग्रेस के लिए एक बड़ा अवसर हो सकती है, जिससे वह अपने जनाधार को फिर से मजबूत कर सके।
बिहार में महागठबंधन की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव राजद और जेडीयू के गठबंधन के समीकरणों को किस प्रकार प्रभावित करेगा। पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए खुद को महागठबंधन से अलग स्वतंत्र रूप से स्थिति बनाने की कोशिश की है। राहुल गांधी की बिहार यात्रा, जिसमें उन्होंने राज्य में कांग्रेस के जनाधार को मजबूत करने का आह्वान किया, इस बात का संकेत है कि कांग्रेस अब अपने पुराने सहयोगियों के साये से बाहर निकलने के लिए तैयार है।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पटना में जो बयान दिया था कि कांग्रेस अगर बिहार में अपने कदम पूरी ताकत से रखे तो वह राज्य में 90 सीटें जीत सकती है, जो यह बताता है कि कांग्रेस अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए महागठबंधन के भीतर स्वतंत्र रूप से अपने रास्ते पर चलने की कोशिश करेगी। इस बयान के बाद बिहार कांग्रेस के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। बिहार कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के ‘रेस वाले घोड़े’ पर दांव लगाने की बात कही, जो पार्टी के मजबूत चुनावी दावे को स्पष्ट करता है। कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता महागठबंधन में कई सवाल खड़े करती है। बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर असहमति और आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति साफ तौर पर देखी जा रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 19 सीटें ही मिली थीं, जबकि पार्टी की मांग 70 से कम सीटों पर राजी नहीं होने की है। ऐसे में, अगर सीटों का बंटवारा फिर से विवादास्पद बनता है, तो यह महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
राजद और कांग्रेस के रिश्ते हमेशा से ही जटिल रहे हैं। जहां एक ओर राजद ने कांग्रेस को 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटें दी थीं, वहीं कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने महागठबंधन की सफलता को प्रभावित किया। इसके बाद कांग्रेस ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए हैं। कन्हैया कुमार की एंट्री और कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता ने महागठबंधन के भीतर असहजता को जन्म दिया है, लेकिन राजद के नेता इस स्थिति को लेकर किसी प्रकार के तनाव से इनकार करते हैं। राजद के नेताओं ने कहा कि कांग्रेस और राजद के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है और कांग्रेस का मज़बूत होना महागठबंधन को और सशक्त बनाएगा।
बिहार में कांग्रेस को अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। पार्टी का आधार वोट सवर्णों, दलितों और मुसलमानों के बीच फैला हुआ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का वोट बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ था। हालांकि, मुसलमानों का वोटिंग पैटर्न पिछले कुछ समय में बीजेपी को हराने वाले उम्मीदवारों की ओर बढ़ा है, जिससे महागठबंधन में कांग्रेस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके अलावा, बिहार के अन्य क्षेत्रीय दलों जैसे विकासशील इंसान पार्टी और भाकपा (माले) की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। इन दलों ने अपनी सीटों को बढ़ाने की योजना बनाई है, जिससे कांग्रेस को भी सीटों के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता, कन्हैया कुमार की एंट्री और पार्टी के नेताओं का महागठबंधन से बाहर अपनी छवि बनाने की कोशिश, बिहार में पार्टी के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर रही है। अगर, कांग्रेस अपनी स्थिति को स्वतंत्र रूप से मजबूत कर पाती है, तो इसका असर महागठबंधन की राजनीति पर भी पड़ेगा, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को अपनी संगठनात्मक मजबूती, सीटों का सही बंटवारा और चुनावी रणनीतियों को बेहतर तरीके से लागू करना होगा। आखिरकार, बिहार कांग्रेस के लिए अगला चुनाव एक बड़ा चुनौतीपूर्ण दौर साबित हो सकता है, जहां उसे अपने सहयोगी दलों से सटीक तालमेल और अपनी चुनावी रणनीतियों को संतुलित करना होगा।