रमजान का पहला अशरा: खुदा की रहमत का अद्भुत वरदान, मो जलालुद्दीन अंसारी ने दिया गहन संदेश
संवाददाता/जामताड़ा
समाजसेवी सह जमीयत उलेमा जामताड़ा जिला के महासचिव हाफिज मो जलालुद्दीन अंसारी ने रमजान के पाक महीने की विशेष महत्ता पर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यह महीना मोमिनों के लिए खुदा की अजमत, रहमत और बरकतों से लबरेज है। अंसारी का कहना है कि अल्लाह ने इस मुबारक महीने को तीन अशरों में बाँट दिया है, जिसमें हर अशरा एक अनूठा संदेश लेकर आती है।
पहला अशरा – खुदा की रहमत का पर्व:
अंसारी ने बताया कि रमजान के पहले दस दिनों में, जिसे पहला अशरा कहा जाता है, खुदा की रहमत का जबरदस्त नाजिल होना देखा जाता है। इस अवधि में मोमिनों को अल्लाह की अत्यधिक मेहरबानी का अनुभव होता है, जिससे उनके जीवन में बरकत और उजाला फैल जाता है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक हदीस के अनुसार, पहला अशरा मुबारक रहमत वाला है – यही कारण है कि इस अवधि में इबादत, नमाज, कुरान की तिलावत, इफ्तार व सेहरी की समयबद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
दूसरा और तीसरा अशरा – माफी और पनाह का संदेश:
अंसारी ने आगे समझाया कि रमजान के दूसरे दस दिन, यानी दूसरा अशरा, मोमिनों के अपने गुनाहों की सच्ची माफी माँगने का अवसर है। वहीं, तीसरे अशरे में, यानी 21वें से 30वें दिन तक, मोमिन जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह माँगते हैं। यह क्रमिक बाँट हमें बताता है कि रमजान न केवल रहमत का महीना है, बल्कि इसमें अपने आप को सुधारने और अल्लाह से सच्ची दुआ करने का भी विशेष महत्व है।
रमजान – वक्त की पाबंदी का तोहफा:
अंसारी ने जोर देकर कहा कि रमजान का हर पल अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस महीने में समय पर नमाज अदा करना, कुरान शरीफ की तिलावत करना, इफ्तार व सेहरी का सही समय पर सेवन करना, सोना और जागना – ये सभी आदतें मोमिनों को अनुशासित बनाती हैं। उनका मानना है कि यह पाबंदी सिर्फ रमजान तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि पूरे साल में अपनाई जानी चाहिए, ताकि हर दिन अल्लाह के करीब रहने का अवसर मिले।
अंतिम संदेश:
हाफिज मो जलालुद्दीन अंसारी ने बताया कि रोजा रखने की इबादत में अल्लाह से सीधा सम्पर्क होता है, जिसे केवल नमाज या जकात में नहीं मापा जा सकता। रमजान में तरावीह की नमाज के साथ-साथ अतिरिक्त नफिल नमाजें पढ़कर और कुरान शरीफ का नियमित पाठ कर मोमिन अपनी आत्मा को तरोताजा कर सकते हैं। यह पाक महीना मोमिनों के लिए आत्मिक जागरण और सामाजिक एकता का भी संदेश लेकर आता है, जिससे वे बुराइयों से दूर रहकर नेक कामों में जुट जाते हैं।
इस प्रकार, रमजान का पहला अशरा खुदा की रहमत का पर्व है, जो मोमिनों को न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि उन्हें अपनी जीवनशैली में सुधार और अनुशासन की ओर प्रेरित भी करता है।