चुनाव आयोग को निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई करने की जरूरत
देवानंद सिंह
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा हरियाणा सरकार पर यमुना के पानी में ज़हर मिलाने के आरोप के बाद दिल्ली की सियासत गर्म हो गई है। दरअसल, इस आरोप में उन्होंने यह कहा था कि यदि दिल्ली जल बोर्ड के इंजीनियरों ने समय रहते पानी को रोक न लिया होता तो दिल्ली में सामूहिक नरसंहार हो सकता था। केजरीवाल के इस बयान को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि केजरीवाल का बयान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले में प्रतिक्रिया दी है और केजरीवाल के बयान को भारतीय संस्कृति और चरित्र का अपमान बताया। उन्होंने कहा, पानी पिलाना भारतीय समाज में एक धर्म है और इस तरह के आरोप ना केवल हरियाणा के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए अपमानजनक हैं। वहीं, चुनाव आयोग ने केजरीवाल से यह स्पष्ट किया है कि उन्हें अपने आरोपों का समर्थन करने के लिए सबूत पेश करने होंगे। चुनाव आयोग द्वारा दिए गए आदेश के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि यदि, केजरीवाल अपने आरोपों का सबूत देने में असफल रहते हैं, तो क्या चुनाव आयोग उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगा? क्योंकि आदर्श आचार संहिता के तहत अगर आरोप बिना किसी आधार के साबित होते हैं, तो चुनाव आयोग केजरीवाल को चुनाव प्रचार करने से रोक सकता है।
इस मामले की गंभीरता इस बात से और बढ़ जाती है कि केजरीवाल ने हरियाणा सरकार पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने यमुना के पानी में अमोनिया का स्तर बढ़ा दिया, जिससे पानी पीने योग्य नहीं रह गया था। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार, हर साल सर्दियों के दौरान यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है और बोर्ड का दावा है कि वे इस पानी को शुद्ध करने के लिए तकनीकी उपायों का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में दिसंबर के महीने में यमुना में अमोनिया का स्तर अत्यधिक बढ़ गया था, जिससे यह साबित होता है कि पानी में अमोनिया का अधिकतम स्तर था, लेकिन इस स्थिति को लेकर दिल्ली सरकार और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है, जबकि दिल्ली सरकार के अधिकारी इसे एक सामान्य घटना मानते हैं, बीजेपी और हरियाणा सरकार इसे गलत और आरोपित बताते हैं।
इस मुद्दे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है। बीजेपी ने केजरीवाल के बयान को एक सुनियोजित साजिश बताते हुए कहा कि इससे लोगों में डर और भ्रम फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके साथ ही बीजेपी का दावा है कि चुनाव आयोग को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने भी इस विवाद में कूदते हुए हरियाणा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके अनुसार, बीजेपी दिल्ली की जनता को पानी के संकट में डालकर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है। आतिशी का कहना है कि हरियाणा सरकार ने जानबूझकर यमुना के पानी को जहरीला बना दिया ताकि दिल्ली के जल बोर्ड को समस्या का सामना करना पड़े।
ऐसा लगता है कि यह विवाद केवल दिल्ली और हरियाणा के बीच के राजनीतिक द्वंद्व का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह पानी जैसे अहम संसाधन पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का भी प्रतीक बन गया है। दिल्ली में पानी का संकट एक पुरानी समस्या रही है और यमुना नदी का पानी दिल्ली की प्रमुख जल आपूर्ति का स्रोत है। ऐसे में, यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ने को लेकर हुआ यह सियासी घमासान और भी जटिल हो गया है। दिल्ली सरकार का आरोप है कि बीजेपी चुनावी रणनीति के तहत पानी की आपूर्ति को प्रभावित कर रही है, जिससे दिल्लीवाले पानी के संकट का सामना करें। दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने इन आरोपों को नकारते हुए इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए फैलाए गए झूठ के रूप में प्रस्तुत किया है।
हम सब जानते है कि पानी एक ऐसा संसाधन है, जो न केवल जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है। जब पानी की आपूर्ति प्रभावित होती है, तो यह न केवल नागरिकों के जीवन को खतरे में डालता है, बल्कि सामाजिक संघर्षों का भी कारण बनता है। ऐसे में, इस मुद्दे पर राजनीति करना, न केवल राज्य सरकारों के लिए बल्कि देश की जनता के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
केजरीवाल का आरोप कि अगर दिल्ली में मिलाया गया पानी इस्तेमाल होता, तो यह सामूहिक नरसंहार का कारण बन सकता था, एक बेहद गंभीर और संवेदनशील बयान था। इसने केवल पानी की गुणवत्ता को लेकर बहस को जन्म नहीं दिया, बल्कि यह आरोपित किया कि क्या यह कदम किसी की जान से खेलने जैसा था। इस तरह के बयान से सामाजिक ताने-बाने पर प्रभाव पड़ सकता है और दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ सकता है।
राजनीतिक बयानबाजी को यदि इसी प्रकार बढ़ाया जाता है, तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। चुनाव आयोग का दायित्व बनता है कि वह ऐसे आरोपों की सत्यता की जांच कर सख्त निर्णय ले, ताकि कोई भी पक्ष बिना प्रमाण के आरोप न लगा सके और जनता में अव्यवस्था का माहौल न बने। इस विवाद ने न केवल दिल्ली और हरियाणा सरकार के बीच की राजनीति को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाता है कि चुनावी माहौल में कभी-कभी नेताओं द्वारा दिए गए बयानों का कितना गंभीर सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव हो सकता है। चुनाव आयोग के लिए यह समय है कि वह इस मामले में निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई करें ताकि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं को जवाबदेह ठहराया जा सके।