अति-आत्मविश्वास में लिए गए फैसलों ने डुबोई भाजपा की नैया
शीर्ष नेताओं द्वारा पूरी ताकत झौंकने के बाद जीत के स्वाद से रह गई दूर
चुनाव के पहले तक किसी को नहीं था ऐसी हार का अंदाजा
रही बात कोल्हान टाइगर की तो अगर जयराम महतो की पार्टी को 39565 वोट नहीं मिलते तो टाइगर के चुनाव परिणाम भी कुछ और होते क्योंकि यह वोट महतो जाति के ही माने जाते हैं भाजपा ने आयातित नेताओं को बड़ी तरजीह देकर अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मारी है चंपई सोरेन अपनी बेटे व सिपहसालार सोनाराम बोदरा की सीट भी नहीं बचा पाए घाटशिला में चर्चा है कि भाजपा कोल्हान में हार की समीक्षा अगर करती है तो कहीं ना कहीं चंपई के प्रेस सलाहकार चंचल गोस्वामी की भूमिका भी सामने आएगी मतगणना की एक दिन पूर्व कोऑपरेटिव कॉलेज में जो भाव दिखे थे वह भाजपा का चरित्र कम से काम नहीं है
राष्ट्र संवाद संवाददाता
*जमशेदपुर, 25 नवंबर :* चुनाव का परिणाम आप सबके सामने हैं। भाजपा की ऐसी हार होगी, यह झारखंड चुनाव के दो माह पहले तक किसी को भी अंदाजा नहीं था। मजे की बात यह है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा चुनाव में पूरी ताकत झौंकने के बाद इस तरह का परिणाम आया। निश्चित रूप से इसकी समीक्षा होनी चाहिए।
वैसे तो भाजपा के हारने के बहुत सारे कारण हैं, लेकिन
सबसे अहम कारण जो नजर आता है, वह आयातित नेताओं को तरजीह देना व टिकट बंटवारा था। टिकट बंटवारे के समय भाजपा के जमीनी कार्यकताओं को महत्व न देकर दूसरे पार्टियों के नेताओं को पार्टी में मिलाकर टिकट दिया गया, जिससे रायशुमारी और सर्वे रिपोर्ट का कोई महत्व नहीं रहा। इस कारण कार्यकर्ताओं में विद्रोह का माहौल बना और लगभग सभी ऐसे नेता हार गए I
दूसरा बड़ा कारण रहा, मुख्य मुद्दे से अलग हटना। जैसे चार, पांच माह पहले तक भाजपा का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विधि व्यवस्था ठीक नहीं होना था। और मधु कोड़ा की पत्नी पिता कोड का भाजपा में आना भी कोल्हान में चर्चा का विषय रहा याद हो कि भ्रष्टाचार के लिए भाजपा हेमंत सोरेन को जेल भेजी थी, लेकिन चुनाव में इन मुद्दों को छोड़कर मुख्य रूप से घुसपैठियों पर आ गए, लेकिन यह मुद्दा कोई असर नहीं दिखा पाया।
हार का तीसरा कारण था मइया योजना और इसके काट में गो गो योजना लाना, जो लोगों को बहुत अपील नहीं कर पाया, उसमें जल्दीबाजी में फॉर्म भरवाने का काम भी लोगों में असर नहीं डाल पाया। वहीं, झारखंड के नेताओं को पीछे छोड़कर बाहर के नेताओं को जनता के सामने प्रोजेक्ट करना भी बड़ा बैंक फायर साबित हुआ। दरअसल, लोगों को लगा कि भाजपा में यहां के स्थानीय नेताओं का कोई वैल्यू नहीं है।भाजपा के आदिवासी नेताओं का अपने समुदाय से कनेक्ट नहीं होना भी हार के लिए बहुत अधिक जिम्मेदार था
इसके विपरीत हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन आदिवासी समुदाय से बेहतर कनेक्ट हुये, जिसका परिणाम सबके सामने है। इसके अलावा 1932 के खतियान के मुद्दे पर झारखंड के मूल वासियों से भी झामुमो ने अच्छा कनेक्ट किया, जबकि भाजपा की इस मुद्दे पर नीति स्पष्ट नहीं रही।
चुनाव के बीच में केंद्रीय एजेंसी के द्वारा छापेमारी करवाना भी भाजपा के लिए बड़ा हार का कारण रही, जिसका जनता में खराब संदेश गया।
इसके अलावा संगठन मंत्री के द्वारा संगठन में सभी समुदायों के काम करने वाले कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं दिया गया। इससे आम कार्यकर्ताओं में यह संदेश गया कि भाजपा में केवल एक जाति विशेष का पूछ है। यहां के आदिवासी और हमलोग जैसे मूलवासियों का पूछ नहीं है। इससे झामुमो को यहां के आदिवादियों और मूलवासियों को अपने तरफ आकर्षित करने का भरपूर मौका मिला I
*रही बात कोल्हान टाइगर की तो अगर जयराम महतो की पार्टी को 39565 वोट नहीं मिलते तो टाइगर के चुनाव परिणाम भी कुछ और होते क्योंकि यह वोट महतो जाति के ही माने जाते हैं भाजपा ने आयातित नेताओं को बड़ी तरजीह देकर अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मारी है चंपई सोरेन अपनी बेटे व सिपहसालार सोनाराम बोदरा की सीट भी नहीं बचा पाए घाटशिला में चर्चा है कि भाजपा कोल्हान में हार की समीक्षा अगर करती है तो कहीं ना कहीं चंपई के प्रेस सलाहकार चंचल गोस्वामी की भूमिका भी सामने आएगी मतगणना की एक दिन पूर्व कोऑपरेटिव कॉलेज में जो भाव दिखे थे वह भाजपा का चरित्र कम से काम नहीं है*