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    नारायण आईटीआई लुपुंगडीह में एक मुंडा जनजाति के लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा का जयंती मनाई

    Devanand SinghBy Devanand SinghNovember 15, 2024No Comments3 Mins Read
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    नारायण आईटीआई लुपुंगडीह में एक मुंडा जनजाति के लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा का जयंती मनाई

     

    आज नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा जी का जयंती मनाई गई एवं उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डॉक्टर जटाशंकर पांडेजी ने कहा कि बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।

     

     

    इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए। बिरसा मुंडा को उनके पिता ने मिशनरी स्कूल में यह सोचकर भर्ती किया था कि वहाँ अच्छी पढ़ाई होगी लेकिन स्कूल में ईसाईयत के पाठ पर जोर दिया जाता था।सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह ‘उलगुलान’।

     

     

    आदिवासी पुनरुत्थान के जनक बिरसा मुंडा धीरे-धीरे बिरसा मुंडा का ध्यान मुंडा समुदाय की गरीबी की ओर गया। आदिवासियों का जीवन अभावों से भरा हुआ था। और इस स्थिति का फायदा मिशनरी उठाने लगे थे और आदिवासियों को ईसाईयत का पाठ पढ़ाते थे। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गरीब आदिवासियों को यह कहकर बरगलाया जाता था कि तुम्हारे ऊपर जो गरीबी का प्रकोप है वो ईश्वर का है। हमारे साथ आओ हमें तुम्हें भात देंगे कपड़े भी देंगे। उस समय बीमारी को भी ईश्वरी प्रकोप से जोड़ा जाता था।20 वर्ष के होते होते बिरसा मुंडा वैष्णव धर्म की ओर मुड़ गए जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थे उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते और लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुनते और उनकी बात मानते थें। आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है। वो आदिवासियों को धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कहते और साथ ही साथ मिशनरियों के कुचक्र से बचने की सलाह भी देते। धीरे धीरे लोग बिरसा मुंडा की कही बातों पर विश्वास करने लगे और मिशनरी की बातों को नकारने लगे।

     

     

     

    बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें ‘धरती आबा’ कहा जाने लगा। लेकिन आदिवासी पुनरुत्थान के नायक बिरसा मुंडा, अंग्रेजों के साथ साथ अब मिशनरियों की आँखों में भी खटकने लगे थे। अंग्रेजों एवं मिशनरियों को अपने मकसद में बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक लगने लगे।भगवान बिरसा मुंडा की वीरता और संघर्ष से काफी प्रभावित होकर धरती आबा पर फिल्म बनाने की पूरी तैयारी पूरी कर ली गयी है। साल 2024 के मार्च महीने में भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू से फिल्म की शूटिंग शुरू करने की बात कही गई है।1900ई को बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और रांची जेल में बिरसा की मृत्यु हैजे से हो गयी ‘बिरसा मरे नहीं, अपितु अमर हो गए। जब जब आदिवासी विद्रोह के बारे में हम बात करेंगे, बिरसा मुंडा का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाएगा।आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है। इस अवसर पर मुख्य रूप से मौजूद रहे ऐडवोकेट निखिल कुमार, सुधीष्ट कुमार, शांति राम महतो,पवन कुमार, अजय कुमार, प्रकाश महतो, कृष्णा पद महतो, गौरव महतो , शशि भूषण महतो, आदि मोजद रहे।

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