*_विश्व आदिवासी दिवस (World Indegeneous People’s day)_*
————————————- हर वर्ष की भांति *राजकीयकृत+2उच्च विद्यालय बागड़ेहरी,अंचल* *कुंडहित के प्रांगण में एक भव्य सांस्कृतिक अनुष्ठान के द्वारा बड़े ही धूमधाम से **विश्व आदिवासी दिवस* “को मनाया गया।
इस महत्वपूर्ण दिवस के उपलक्ष्य में सर्वप्रथम विद्यालय के *प्राचार्य डॉ मिथिलेश कुमार पांडेय तथा विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री सुशील* *कुमार मरांडी जी* ने समवेत रूप से *भगवान बिरसा मुंडा* जी के तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ किया । तत्पश्चात विद्यालय के समस्त विद्वत शिक्षक/शिक्षिकाओं ने बारी बारी से भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए अपना श्रद्धा सुमन अर्पित किया । फिर विद्यालय के शिक्षक श्री सुखेन मन्ना जी ने मंच संचालन का दायित्व लेते हुए इस ऐतिहासिक,गौरवपूर्ण दिवस के संबंध में संथाली में अपनी बात *”आपे जतोकु जोहार,आबू तिहिंदो विश्व आदिवासी दिवस मनाउलेगी हेयकानाले”* से अपनी बात रखते हुए विस्तारपूर्वक बारीकियों से सभी के समक्ष अपना विचार प्रस्तुत किया ।
*विश्व की सबसे बड़ी मानक संस्था UNO के संयुक्त राष्ट्र महासभा(United Nations General Assembly-UNGA) के* *द्वारा 9 अगस्त 1994 को पारित International day of: the world Indigenous* *people’s को पूरे विश्व में आज की तिथि में लगभग 92 देशों के 476 मिलियन लोग एकसाथ इस दिवस को मनाते है* । अर्थात आज से लगभग तीन दशक पूर्व से ही 9 अगस्त को हर वर्ष विश्व आदिवासी दिवस मनाकर हम ” *दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देते हैं,उनकी रक्षा करते है और पर्यावरण संरक्षण जैसे अति जरूरी ग्लोबल मुद्दों के प्रति उनके अप्रतिम योगदान को स्वीकार भी करते है ।* प्रकृति प्रेमी आदिवासी जिन्हें हम *मूलवासी,देशज,जनजाति, गिरीजन,बर्बर, एबोरिजिनल(Aboriginal),* *इंडिजिनस(Indigeneous)* आदि नामों से जानते या पुकारते है। मूलत:वे प्रकृति प्रेमी तो अवश्य है। जिसके कारण वे पर्यावरण के समस्त घटक जैसे- पेड़ पौधे,पशु पक्षी,नदी, नाले, पहाड़,चांद सितारें आदि से बेहद लगाव भी रखते है,उनकी रक्षा करते हैं और उनसे हमेशा जुड़े रहना पसंद भी करते है । परंतु आज इस विकसित विश्व समाज में विकास के जितने भी पैमाने है उनसे बढ़कर उन्होंने चावल और लोहा जैसी दो आवश्यक व अनमोल वस्तुएं पूरे संसार के बीच में लाकर मानव विकास के मामले में एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके लिए पूरे विश्व के मानवजन आज उनके आभारी है ।
पर्यावरण के संरक्षक व प्रकृति प्रेमी आदिवासी का नाम इतिहास के पन्नों में *आजादी के आंदोलन* से लेकर *भारत पाकिस्तान में युद्ध* की बात हो या अपने ही देश समाज में *सामाजिक शोषण या कुरीतियों* के विरुद्ध आंदोलन चलाने की ही बात क्यों न हो या *अंतर्राष्ट्रीय स्तर अपने हक- हुकूक* के लिए अपनी आवाज बुलंद करनी की बात ही क्यों न हो सभी जगह अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया है । हमारे प्रदेश के ही ऐसे अनेक महापुरुष जैसे भगवान बिरसा मुंडा,तिलका मांझी, सिद्धू,कान्हु,चांद,भैरव, डाo रामदयाल सिंह मुंड ( आदिवासियों के आवाज पदमश्री अवर्डेड),अल्बर्ट एक्का ( परमवीर चक्र विजेता),दिशोम गुरु, जयपाल सिंह मुंडा,सुशीला कामद, सिमोन उरांव(पर्यावरणविद पदमश्री अवार्डेड)आदि सैकड़ों हस्तियों के नाम गिनाए जा सकते है । पूरे विश्व समाज में आदिवासियों के इस ऐतिहासिक व अतुलनीय योगदान को विद्यालय परिवार के द्वारा आज के अनुष्ठान में चर्चा व परिचर्चाएं की गई । पूरे सांस्कृतिक अनुष्ठान में विद्यालय के समस्त छात्र/ छात्राएं चाहे आदिवासी या गैर आदिवासी ही क्यों न हो,सभी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया ।आदिवासियों के पारंपरिक वेशभूषा, वाद्ययंत्र आदि के माध्यम से नृत्य व संगीत के द्वारा पूरे विद्यालय का वातावरण आनंद से सराबोर हो गया । इस भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम को संचालन करने में विद्यालय के शिक्षक श्री संजय कुमार, श्री दीपक कुमार, श्री दुलाल चंद्र भंडारी, श्री रमेश पंडित, श्री देवव्रत सिंह, सुश्री सुष्मिता मरांडी, सुभद्रा रानी साहा,श्री संतोष चौधरी,श्री पथिक कविराज ,श्री नंदन कुमार,श्री सुबोध कुमार, लिपिक श्री मृण्मय मंडल,श्री उत्तम चौधरी का योगदान अत्यंत ही सराहनीय व प्रशंसनीय रहा । इसके अलावा विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों, माता समिति के सदस्या अनिता चौधरी,मिरुदी सोरेन,चिंता बाउरी आदि पूरे कार्यक्रम में मौजूद रहें। कार्यक्रम के अंत में सभी ने मिलकर झारखंडी आदिवासियों के महापुरुषों जैसे भगवान बिरसा मुंडा अमर रहें, डा रामदयाल सिंह मुंडा अमर रहे, सिद्धू कान्हु अमर रहे, अलबर्ट एक्का अमर रहे आदि के नारे लगाए गए ।