‘अदालत खेला कर गया..
और हम, वाह-वाह कर रहे..!!’
चुनाव आयुक्तों के चयन के मसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाये गए फेसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा है। जनता तो जनता, तमाम विपक्षी दल तक इसकी सराहना और आला अदालत की जय-जय करने से बाज नहीं आ रहे। क्योंकि, उन्हें ऐसा लगता है कि आला अदालत के इस फैसले से ‘प्रधानमंत्री मोदी’ कमजोर पड़ जाएंगे और उनका मैजिक ‘फुस्स व शिथिल’ पड़ जाएगा..! जबकि, सच्चाई यही है कि, न तो इस फैसले से प्रधानमंत्री मोदी कमजोर पड़ने जा रहे, और ना ही, उनका मैजिक!
मेरे द्वारा ऐसा लिखे जाने पर आपसबों को थोड़ा आश्चर्य जरूर हो रहा होगा, कि यह क्या बकवास है? मित्रवर, यह बकवास नहीं है, बल्कि पूरी विनम्रता के साथ, हम यह बताने की विनम्र कोशिश कर रहे हैं कि, हमसब, किसी भी अदालती फैसले को बहुत ही सीधे तरीके से समझने की गलती कर बैठते हैं। जबकि, थोड़ा सब्र रखते और समय देते हुए समझने की कोशिश करें, पंक्तियों में सन्निहित ‘शाब्दिक पेंच’ को समझा जा सकता है। हां, इतना जरूर स्वीकार किया जा सकता है कि भाषा की ‘अतिसामान्य समझ’ रखनेवाले और कानूनी भाषा की बारिकीयों और पेंच को न समझ पानेवाले लोगों के लिए यह थोड़ा क्या, बहुत ही दुष्कर कार्य है। ईमान से!
अब मैं फैसले से जुड़ी उन पंक्तियों पर आता हूं, जिसके जरिए यह समझा जा सकता है कि ‘आला अदालत’ कैसे अपना काम बड़ी चालाकी से कर गया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि, ‘यह नियम तब तक कायम रहेगा, जब तक संसद इस मुद्दे पर कोई कानून नहीं बना लेता।’ अब मैं आपसबों से एक बात जानना चाहता हूं, कि अगर मोदी सरकार, इस मुद्दे पर कोई कानून बनाना चाहे, तो उसे किसी भी सदन में ( निचली या ऊपरी), कोई दिक्कत होने जा रही है क्या? और फिर, हमारी वर्तमान राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति ‘के. आर.नारायणन’ जैसा जोखिम उठाने का माद्दा रखतीं हैं क्या?
यहां यह स्मरण कराना जरूरी समझता हूं कि, बहुत ज्यादा दिन तो नहीं हुए, जब कृषि विधेयक तमाम विरोध के बावजूद संसद के दोनों सदनों से पारित होते हुए कानून का रूप अख्तियार कर लिया था। हालांकि, उसका हश्र बाद में क्या हुआ, और सरकार को किस तरीके से कितना शर्मसार होना पड़ा, वह अलग बात है, जिस पर अब ज्यादा चर्चा करना उचित नहीं समझता। इसे पारित कराने के दरम्यान मोदी सरकार ने, न तो संविधान के अनुच्छेद 100 की परवाह की, और ना ही, विधेयक पारित होने के बाद तक किसी भी विपक्षी पार्टियों ने अनुच्छेद 100 के उल्लंघन को संविधान के अनुच्छेद 122 के तहत आला अदालत में चुनौती देना उचित समझा.. ! और तो और, इसी आला अदालत ने, इस मसले पर स्वतः संज्ञान लेने की जहमत तक नहीं उठाई..!! क्यों भाई? आखिर, अदालतों का गठन किस लिए हुआ था, यह भी अदालत को हम ही बताएंगे क्या..??