स्वतंत्रता संग्राम की पहली पंक्ति के नेता थे रामदहिन ओझाः रामबहादुर राय
नई दिल्ली:उत्तर प्रदेश का बलिया प्राचीन काल से ही प्रतिरोध की भूमि रहा है। चाहे बात पौराणिक काल की हो, या 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की, या फिर 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” बलिया ने हमेशा उदाहरण प्रस्तुत किया है। 1857 के संग्राम के नायक मंगल पांडेय इसी जमीन के थे, तो 1942 में बलिया के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से बलिया को आजाद करा लिया था। इसीलिए इसे “बागी बलिया” कहा जाता है। इसी बलिया के प्रतिरोध के स्वर के प्रतिनिधि हैं शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा। गांधी जी के अनुयायी रामदहिन ओझा संभवतः पहले पत्रकार थे, जो असहयोग आंदोलन में शहीद हुए थे। इन्हीं रामदहिन ओझा पर प्रभात ओझा द्वारा लिखी और नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक “शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा” का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में किया गया। इस अवसर पर आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्री पवन कुमार गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार श्री प्रताप सोमवंशी, आईजीएनसीए के डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा और लेखक प्रभात ओझा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन आईजीएनसीए के मीडिया कंट्रोलर अनुराग पुनेठा ने किया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ शहीद रामदहिन ओझा पर शॉर्ट फिल्म के प्रदर्शन से हुआ। इसके बाद पुस्तक का लोकार्पण किया गया और वक्ताओं ने पुस्तक और शहीद रामदहिन ओझा पर अपने विचार प्रस्तुत किए। मुख्य अतिथि श्री पवन कुमार गुप्त ने श्री रामदहिन ओझा के नाम से शुरुआत की और कहा कि इस नाम में सुगंध है भोजपुर की। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी स्मृति खो गई है। हम अपने को ही पहचानना भूल गए हैं। हम अपने वीर लोगों को भूल गए हैं, बस दो-चार नाम याद हैं भारत के कोने-कोने में छोटी से छोटी जगह में वीर बलिदानी हुए हैं। उन्होंने कहा कि ‘इतिहास’ और ‘हिस्ट्री’ में फर्क होता है। ‘हिस्ट्री’ राजाओं द्वारा लिखा जाता है और ‘इतिहास’ साधारण लोग लिखते हैं। यह पुस्तक ‘इतिहास’ है।
श्री रामबहादुर राय ने कहा कि “शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा” एक दुर्लभ पुस्तक है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में रामदहिन ओझा का जीवन और रचना संसार है। स्वतंत्रता संग्राम की पहली पंक्ति के नेता थे रामदहिन ओझा। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रभात ओझा ने बहुत अच्छी शैली में एकदम संतुलित तरीके से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। गौरतलब है कि प्रभात ओझा शहीद रामदहिन ओझा के पौत्र हैं।
श्री प्रताप सोमवंशी ने कहा कि 1857 और 1942 के बीच की, मंगल पांडेय और चित्तु पांडेय के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी थे रामदहिन ओझा। उन्होंने मात्र 30 वर्षों के अपने अपने जीवन में बहुत कुछ किया। पुस्तक के लेखक और शहीद रामदहिन ओझा के पौत्र प्रभात ओझा ने कहा कि इस पुस्तक को लिखते समय उन्होंने श्रुति परम्परा और जो थोड़े-बहुत दस्तावेज मिले, उनका सहारा लिया है। लेकिन पुराने लोगों से सुनी गई बातों को लिखते समय भी उन्होंने प्रामाणिकता का पूरा ध्यान रखा है। प्रो. प्रतापानंद झा ने सभी अतिथियों और आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।