स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की १३५ वीं जयंती सह पारिवारिक मिलन
एवं सांस्कृतिक समारोह – २०२४ का आगाज,स्वामी सहजानंद सरस्वती जी जैसा निर्भीक तथा निस्वार्थ नेता की खलती है कमी
वेदान्त और मीमांसा के पंडित, अथक परिश्रमी, राष्ट्रवादी, अग्रणी सिद्धांतकार, संगठित किसान आंदोलन के जनक नौरंग राय का जन्म २२ फरबरी १८८९ में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में हुआ था।बचपन से ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा।१९०७ ई. में काशी जाकर स्वामी अच्युतानंद जी से विधिपूर्वक दशनामी दीक्षा लेकर नौरंग राय से दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती कहलाए।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में गति पकड़ा तो सहजानंद जी उसके केन्द्र में थे। उन्होंने अंग्रेजी राज्य के खिलाफ लोगों को खड़ा किया।
दीपू सिंह की अध्यक्षता में स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की १३५वीं जयंती पर स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान, कदमा के द्वारा माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
माल्यार्पण में मुख्य रूप से जय कुमार, सियाराम सिंह, बी. के. प्रसाद, आर. के. सिंह, सुजय कुमार, संजीव कुमार, राकेश, राजीव , हरेन्द्र पांडे, बाबूलाल, गोपाल, रौशन, आदि उपस्थित थे।
जब वे जनता से मिल रहे थे तो वे किसानों की हालत से रुबरु हुए। स्वामी जी का मन ने संघर्ष की ओर उन्मुख हुआ। स्वामी जी ने रोटी को ही भगवान कहा। जमींदारी के विरोध में आंदोलन कर किसानों के सर्वमान्य नेता कहलाए।
जो श्रेष्ठ होते हैं वे जाति, धर्म, सम्प्रदाय और लैंगिक भेद-भाव से ऊपर होते हैं।
२६ जून १९५० को पंचतत्व में विलीन हो गए। राष्ट्र कवि दिनकर जी ने लिखा – आज दलितों का संन्यासी चला गया।
आज प्रत्येक राजनीतिक दल के पास किसान सभा है, की संगठन भी हैं लेकिन स्वामी सहजानंद सरस्वती जी जैसा निर्भीक तथा निस्वार्थ नेता दूर दूर तक दिखाई नहीं देता।