शैलेन्द्र पान्डेय शैल एफबी वॉल से
हम उत्सवधर्मी लोग हैं दोस्तो ..मुश्किलों का भी जश्न मना लेते हैं और शायद इसीलिए हर मुश्किल को धत्ता बताते हुए पुनः तन के खड़े हो जाते हैं ..इस मुश्किल में हमारी ख़ुद की लड़ाई यही है कि हम फिलवक्त के लिहाज़ से अपने घरों में रह कर इस जंग के मुताल्लिक़ जारी निर्देशों का पालन करते हुए अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते रहें ..इसमें कोई शक़ नहीं कि हम भी जीतेंगे और हमारा मुल्क़ भी जीतेगा ..
इसी हवाले से एक ताजी ग़जल का मतला और दो तीन शेर ..
मुश्किल बहुत बड़ी है मगर मुस्कुराइये
सबके ही सर पड़ी है मगर मुस्कुराइये
रखिए भी एहतियात मगर ख़ौफ़ कुछ नहीं
बेशक कठिन घड़ी है मगर मुस्कुराइये
जिंदा हैं हम भी और अभी जी रहे हैं आप
ये जि़न्दगी कड़ी है मगर मुस्कुराइये
घर सा हुवा है घर ये कई मुद्दतों के बाद
हाँ भीड़ कुछ बढ़ी है मगर मुस्कुराइये …
…शैलेन्द्र पान्डेय शैल …