महिलाओं की सुरक्षा का सवाल ?
बिशन पपोला
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में महिला वैटेनरी डॉक्टर प्रियंका रेड्डी की रेप के बाद हत्या की घटना ने सारे देश को हिलाकर रख दिया है। इस घटना ने एक फिर साबित कर दिया है कि हमारे देश में महिलाएं किसी भी रूप में महफूज नहीं हैं। और न ही पुलिस का रवैया हमारे देश में सुधरने वाला है। इसीलिए लोगों के पास एक ही विकल्प रह जाता है कि वे आक्रोशित होकर सड़कों पर उतरे। इस घटना के बाद भी यही तस्वीर देश के अंदर देखने को मिल रही है। ऐसी तस्वीरें दि“ी में निर्भया कांड के बाद भी देखने को मिली थी। इसके बाद ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए थे। लगा था कि लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से डरेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। लगातार महिलाओं के खिलाफ रेप व हत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं।
दि“ी, हैदराबाद ही नहीं, बल्कि देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं रहता है, जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा नहीं हो रही है। पिछले तीन-चार दिनों के दौरान महिला वैटनरी डॉक्टर प्रियंका रेड्डी की रेप के बाद हत्या के अलावा चड़ीगढ़ में ऑटो चालक द्बारा नाबालिग के साथ रेप, बड़ोदरा के एक पार्क में मंगेतर के साथ बैठी लड़की से मारपीट के बाद गैंगरेप और रांची में एक लॉ स्टूडेंट से दर्जनभर लड़कों द्बारा बलात्कार की घटना को भी अंजाम दिया गया। इन्हीं घटनाओं से आक्रोशित अनु दुबे नाम की लड़की अकेले संसद भवन के सामने प्रदर्शन भी करने लगी और जनप्रतिनिधियों से ऐसी दर्दनाक घटनाओं को लेकर सवाल पूछने लगी, लेकिन दि“ी पुलिस को उनका यह तरीका नागवार गुजरा तो उसने उसे उठाकर थाने में रखा, जहां महिला कांस्टेबलों ने उसे नाखुनों से नोंच डाला।
ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या इस देश में महिलाएं, बेटियां ऐसे ही असुरक्षित रहेंगी और उनके खिलाफ होने वाली घटनाओं के बाद क्या देश की एक बेटी जन-प्रतिनिधियों से सवाल पूछने का हक भी नहीं रख सकती है। यह बात समझ से परे होती जा रही है कि देश में सख्त कानूनों के बाद भी इस तरह की दरंद्गी आसानी से हो जा रही है और उसके बाद भी जन-प्रतिनिधियों और पुलिस का रवैया लापरवाहीपूर्ण रहता है, जो इस बात को दर्शाता है कि हम महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं। जिस देश में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ जैसे अभियान चलाने के बाद भी लोग इतने दर्दनाक कैसे हो सकते हैं कि मासूम बेटी को नोंचते हुए उन्हें जरा-सी भी दया नहीं आई। इतनी बड़ी दरंद्गी दिखाने वक्त क्यों उन्होंने इतना तक सोचने की जहमत नहीं उठाई कि स्वयं उनके घर में भी मां-बेटियां हैं। लोग इतने हैवान कैसे हो सकते हैं। ऐसी घटनाओं पर कितनी भी बहस क्यों न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि बदलते दौर में नई पीढ़ी ने सामाजिक मर्यादाओं का सम्मान बिल्कुल भी हाशिये पर धकेल दिया है। यही वजह है कि सख्त कानून बनाने के बाद भी लोगों में जरा भी डर नहीं है। वे आसानी से महिलाओं और बेटियों के खिलाफ हैवानियत दिखा रहे हैं। निश्चित ही ऐसी घटनाएंं महिलाओं के प्रति हमारी सोच पर सवाल तो उठाती ही हैं, बल्कि सिस्टम की नाकामी को भी दर्शाती हैं। इसके लिए तेजी से बदलता परिवेश और इंटरनेट क्रांति का दुप्रयोग भी बहुत अधिक जिम्मेदार है, क्योंकि इंटरनेट क्रांति और स्मार्टफोन की सुविधा के नाम पर पोर्न या वीभत्स यौन चित्रण आसानी से लोगों तक पहुंच रहा है। पहले यह सब उच्च व मध्यम वर्ग तक पहुंच रहा था, लेकिन इस दौर में इसकी पहुंच आसानी से हर वर्ग तक पहुंच रही है। इसका असर यह हो रहा है कि समाज की यौन प्रवृत्ति बद से बदतर होती जा रही है और लोग दंरद्गी की हद तक पहुंचने से पहले एक बार भी नहीं सोच रहे हैं। छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के साथ भी रेप जैसी वीभत्स घटनाएं घट रही हैं। कठुआ में 8 वर्षीय बच्ची के साथ हुई दरंद्गी आज भी सबके जेहन में होगी, लेकिन इंटरनेट की दुनिया में वह कृत्य भारत के पोर्न साइटों पर ट्ेंड कर रहा था।
वहीं, कानपुर में चार नाबालिग लड़कों द्बारा 6 साल की मासूम के साथ बलात्कार की घटना भी काफी चर्चित हुई थी। बताया गया कि आरोपियों ने इन घटनाओं को पोर्न वीडियो देखते हुए अंजाम दिया था। ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाओं को केवल निचले स्तर के लोग ही अंजाम दे रहे हैं, बल्कि साधु संतओं से लेकर, बड़े-बड़े अधिकारी, जज, वकील, शिक्षक, डाक्टर, मंत्री, फिल्म कलाकार आदि भी ऐसी घटनाओं को आसानी से अंजाम दे रहे हैं। बदलते इस दौर में महिलाओं और बेटियों के खिलाफ घटनाएं कम नहीं, बल्कि और भी ज्यादा बढ़ी हैं। हम भले ही व्यवहारिक व मानसिक तरक्की की बात करते हों, लेकिन इसी तरक्की ने हमारे व्यवहार को इतना खतरनाक बना दिया है कि हम अपनी सोच में दृढ़ता को बिल्कुल भी नहीं ला पा रहे हैं। इसके अलावा इंटरनेट आदि की सुविधा का अविवेकपूर्ण प्रयोग भी हमारी इस दृढ़ता को कमजोर करता जा रहा है। यही वजह है कि लोग आसानी से दरंद्गी जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।
इसीलिए महज इतने में ही इतिश्री नहीं मानी जानी चाहिए कि हमने ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए सख्त कानून बना दिए हैं, बल्कि हमें अपनी मानसिक दृढ़ता को दर्शाना होगा। हमें अपने अंदर आध्यात्मिक सोच को बढ़ावा देना होगा, जिससे हम हैवानियत जैसी सोच पर विजय पा सकें। इसके लिए जरूरी है कि हम इंटरनेट आदि का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से करें और ऐसे वीडियो और साहित्य को देखने व सुनने से बचें, जिसमें अश्लीलता हो। तभी हम बेटियों और महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान कर सकते हैं।
महिलाओं की सुरक्षा का सवाल ?
Previous Articleनाला विधायक रविंद्र नाथ महतो ने लोगों की समस्याओं से हुये अवगत
Next Article नक्सलियों के साए पर भारी पड़ा मतदाताओं का जोश