बिशन पपोला
नागरिकता संशोधन बिल 2०19 पर केंद्र की मोदी सरकार की कैबिनेट द्बारा मुहर लगाने के बाद बिल लोकसभा में भी ध्वनि मत से पारित हो गया है। अब बिल की परीक्षा राज्यसभा में होनी है। सरकार उम्मीद लेकर चल रही है कि बिल राज्यसभा में भी पास हो जाएगा। विपक्ष के भारी विरोध के बाद भी बिल पास हो गया, इसके पीछे कारण यह था कि सरकार के पास इसके लिए पूरा समर्थन प्रा’ था। विपक्षियों ने इस बिल की तुलना कश्मीर से आर्टिकल 37० हटाए जाने से की, लेकिन संसद में विरोध नहीं चला और सरकार बिल को पास कराने में पूर्ण रूप से सफल रही।
क्या है नागरिक संशोधन बिल
नागरिक संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों में बदलाव लाने के लिए है। इस बिल के संशोधन के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों को बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकेगी।
नागरिक संशोधन बिल से जुड़े मुख्य तथ्य
1- नागरिक संशोधन विधयेक में गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है, जो पिछले एक साल से लेकर छह साल तक भारत में रह रहे हैं। इसमें पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थी शामिल होंगे, जिनमें हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग शामिल होंगे। नागरिक संशोधन विधेयक 2०19 के तहत सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव का प्रस्ताव है।
2- इस अधिनियम के तहत जिन राज्यों में इनर लाइन परमिट-आईएलपी लागू है और नॉर्थ ईस्ट के चार राज्यों में छह अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों को नागरिकता संशोधन में छूट मिल जाएगी।
3- भारत में लागू नागरिक संहिता एक्ट 1955 के तहत नागरिकता हासिल करने की अवधि 11 साल है। नागरिक संहिता संशोधन बिल 2०19 में उक्त एक्ट में ढील देने का प्रस्ताव है, जिस प्रस्ताव के तहत नागरिकता हासिल करने की अवधि 11 साल से कम कर एक से छह साल तक किया जाना है। नए संशोधन के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को 11 साल के बजाय एक से छह वर्षों में ही भारत की नागरिकता मिल सकेगी।
अवैध प्रवासियों के लिए यह हैं प्रावधान
अवैध प्रवासियों को या तो जेल में भेजा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट- भारत में प्रवेश अधिनियम 192० के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। पर केंद्र सरकार ने 2०15 और 2०16 में 192० और 1946 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को छूट प्रदान कर दी है। यानि अब इन धर्मों से ता“ुक रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बिना भी रहते हैं तो उनका न तो जेल में भेजा जा सकता है और न ही निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उन लोगों को हासिल है, जो 31 दिसंबर, 2०14 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं।
पहले भी लोकसभा में हो चुका था पेश
नागरिक संशोधन बिल को मंजूरी दिलाने को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार पहले भी सक्रिय थी, क्योंकि इससे पहले भी लोकसभा में 19 जुलाई 2०16 को यह बिल पेश किया गया था। इसके बाद 12 अगस्त 2०16 को इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था। समिति की रिपोर्ट आने के बाद 8 जनवरी 2०19 को लोकसभा में पास किया गया था, लेकिन विरोध के चलते राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका।
दोनों सदनों में पास होना होता है जरूरी
कोई भी बिल अगर कैबिनेट की बैठक में पास हो जाता है तो संसदीय प्रक्रियाओं के अनुसार विधयेक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास होना होगा। अगर, विधेयक लोकसभा में पास हो जाता और राज्यसभा में पास नहीं हो पाता और लोकसभा का कार्यकाल समा’ हो जाता है तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है। इसके बाद भी उस विधेयक को दोनों ही सदनों में पास कराना होगा। यह विधयेक राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था और इसी बीच 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समा’ हो गया था, इसीलिए इस विधयेक को फिर से दोनों सदनों में पास कराना जरूरी होगा।
विरोधियों का तर्क
केंद्र की बीजेपी सरकार नागरिक संहिता अधिनियम में बदलाव को ऐतिहासिक मान रही हो, लेकिन इसका व्यापक विरोध भी हो रहा है। विरोधियों की तरफ से इस संशोधन को अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम छह धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। बकायदा, इस संशोधन को 1985 के असम करार का उ“ंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें सन् 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने का बात शामिल थी। असम में बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार चला रहा असम गण परिषद् भी नागरिकता संशोधन बिल को स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहा है। असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया भी जारी है, लेकिन केंद्र सरकार द्बारा नागरिक संशोधन बिल लागू हो जाने के बाद राष्ट्ीय नागरिक रजिस्टर-एनआरसी के प्रभावहीन होने की संभावना भी है।
कानून का इतिहास
भारत के संविधान के भाग-4 के अनुच्छेद-44 में समान नागरिक संहिता का उ“ेख किया गया है। इसमें तय किया गया है कि समान नागरिक कानून को लागू करना ही हमारा लक्ष्य होगा। भारत की सर्वोच्च अदालत- सुप्रीम कोर्ट भी कई बार नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में पहल कर चुका है और इस संबंध में केंद्र सरकार के विचार जानने की तरफ तत्पर दिखाई देता रहा है। समान नागरिक संहिता वाले धर्मनिरपेक्ष देशों में केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया में ऐसे देशों की संख्या बहुत ज्यादा है।
समान नागरिक संहिता का अर्थ
समान नागरिक संहिता का मतलब एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। यानि अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग नागरिक कानून न होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि देश में रहने वाला चाहे किसी धर्म व क्षेत्र का क्यों न हो, उस पर यह लागू होगा। भारत का संविधान राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में उ“ेखित सभी नागरिक कानूनों को लागू करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है, चूंकि इस तरह का कानून अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है। भारत में गोवा ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां यह लागू है।
नागरिकता संशोधन बिल: अब राज्यसभा में होगी असली परीक्षा
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