कलाकार- वरुण धवन, आलिया भट्ट, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रॉय कपूर, माधुरी दीक्षित,संजय दत्त, कुणाल खेमू
निर्देशक- अभिषेक वर्मन
मूवी टाइप- ऐक्शन,ड्रामा,रोमांस
अवधि- 2 घंटा 46 मिनट
धर्मा प्रोडक्शन की मल्टीस्टारर फिल्म कलंक की कहानी 1940 के दशक की दास्तां बयां करती है. बात करें कलंक के बैकड्रॉप की तो यह हुसैनाबाद नाम के एक काल्पनिक शहर पर आधारित है. कुछ रिश्ते कर्जों की तरह होते हैं, उन्हें निभाना नहीं चुकाना पड़ता है’. निर्माता करण जौहर और निर्देशक अभिषेक वर्मन की फिल्म कलंक का यह संवाद फिल्म के निचोड़ को बयान करता है.
कहानी- कहानी आजादी से कुछ वक्त पहले के हुसैनाबाद की है जो कि एक मुस्लिम बहुल इलाका है. बलराज चौधरी का किरदार निभा रहे संजय दत्त अपने महल में बेटे आदित्य रॉय कपूर यानि देव और बहू सत्या (सोनाक्षी सिन्हा) संग रहते हैं. कैंसर से पीड़ित सत्या के पास जिंदगी के बस कुछ ही दिन बचे हैं और वह चाहती हैं कि उनकी मौत के बाद उनके पति अकेले नहीं रहें. वह देव की रूप (आलिया भट्ट) से शादी करवाना चाहती है. रूप अपनी बहनों का भविष्य बचाने के लिए आदित्य रॉय कपूर यानि देव चौधरी से शादी करने के लिए राजी भी हो जाती हैं. अब रूप इस रिश्ते को बस किसी तरह ढो रही हैं.रूप बहार बेगम (माधुरी दीक्षित) के कोठे पर गाना सीखने जाती है, जहां उसकी मुलाकात हीरामंडी नामक मोहल्ले में लोहार के रूप में काम करनेवाले जफर (वरुण धवन) से होती. दिलफेंक जफर रूप से नजदीकियां बढ़ाकर प्यार करने लग जाता है. निर्देशक अभिषेक वर्मन की कहानी बहुत ही उलझी हुई है. फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत ही धीमा है. निर्देशक ने बंटवारे से पहले के माहौल में किरदारों को स्थापित करने में बहुत ज्यादा वक्त लगाया है. स्क्रीनप्ले बहुत ही कमजोर है, जो कहानी को बोझिल कर देता है.