इष्ट मंत्र, गुरु मंत्र ,सद्गुरु संपर्क ,साधना, सेवा, त्याग, स्वाध्याय, सत्संग एवं संपूर्ण समर्पण ही साधक को मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर देगा
कर्म चक्र ही मनुष्य के जन्म,जीवन , मृत्यु और पुनर्जन्म का कारण है
जमशेदपुर 4 जुलाई 2020:
जमशेदपुर उसके आसपास के इलाकों से लगभग 5,000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी प्रथम संभागीय तीन दिवसीय सेमिनार के दूसरे दिन घर पर बैठकर लैपटॉप मोबाइल एवं अन्य तरह के अत्याधुनिक साधनों से सेमिनार का लाभ उठाया
साधकों के जीवन रक्षा को ध्यान में रखते हुए
साधकों के मानसाध्यात्मिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए लाइव वेबकास्टिंग से तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार का आयोजन किया आज 4 जुलाई सेमिनार के दूसरे दिन आनंद मार्ग प्रचारक संघ के सेमिनार के ट्रेनर *आचार्य* *रुद्रानंद अवधूत , ऑनलाइन* ( *live webcasting) लाइव वेबकास्टिंग से शनिवार को ऑनलाइन साधकों और जिज्ञासु को संबोधित करते हुए आचार्य रूद्रानंद अवधूत ने कर्म और कर्मफल विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सृष्टि लीला कर्म द्वारा ही विधृत है। वस्तु की अवस्थान्तर प्राप्ति या उसके आपेक्षिक स्थान परिवर्तन को कर्म कहते हैं। कर्म दो तरह का होता है, दैहिक कर्म और मानसिक कर्म। मूल कर्म को प्रत्ययमुलक कर्म कहते हैं एवं कर्मफल का भोग जिस कर्म के द्वारा होता है उसे संस्कारमुलक कर्म कहते हैं। कर्म चक्र ही मनुष्य के जन्म,जीवन , मृत्यु और पुनर्जन्म का कारण है। अभुक्त संस्कार के भोग के लिए मनुष्य विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। संस्कार भोग से बचने के लिए कर्म योग ही समाधान है। संस्कारों से मुक्ति या कर्म बंधन से छुटकारा के लिए तीन उपाय बतलाए गए हैं:- फलाकांक्षा त्याग , कर्तृत्वाभिमान ,त्याग एवं सर्वकर्म ब्रह्म में समर्पण। एक साथ इनका अनुशीलन करना आवश्यक है। अकर्म ,विकर्म एवं निष्काम कर्म में निष्काम कर्म को ही प्रश्नय देना चाहिए। संस्कार क्षय करने के व्यावहारिक उपायों की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि इष्ट मंत्र, गुरु मंत्र ,सद्गुरु संपर्क ,साधना, सेवा, त्याग, स्वाध्याय, सत्संग एवं संपूर्ण समर्पण ही साधक को मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर देगा।
वस्तु की अवस्थान्तर प्राप्ति या उसके आपेक्षिक स्थान परिवर्तन को कर्म कहते हैं।