क्या यूपी में कांग्रेस-सपा गठबंधन एनडीए को दे पाएगा चुनौती….?
देवानंद सिंह
आने वाले दिनों में देश में लोकसभा चुवाव होने हैं, इन चुनावों के मद्देनजर देश का सबसे बड़ा राज्य होने के नाते उत्तर प्रदेश की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि इस राज्य में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जो सीटें केंद्र की सत्ता तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। इसीलिए राजनीतिक पार्टियों को पूरा फोकस यूपी पर है। बीजेपी ने जहां चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ देकर प्रदेश के किसान वोटरों को अपने पाले में करने का दांव चला है, वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने भी गठबंधन कर लिया है। दोनों पार्टियों के बीच यूपी में 80 सीटों को लेकर हुई डील के तहत कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि सपा 63 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। सपा अपने कोटे से कुछ छोटे दलों को भी सीटें दे सकती है।
दरअसल, अखिलेश यादव ने चुनाव में एनडीए को हराने के लिए पीडीए का फॉर्मूला दिया था। पीडीए यानी पिछड़ा वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में ‘पीडीए’ पर दांव लगाया है। सपा की उम्मीदवारों की लिस्ट में ओबीसी, दलित और मुस्लिम प्रत्याशी शामिल है। वहीं, पीएम मोदी कई मौकों पर चार जातियों की बात कर चुके हैं। जातिगत राजनीति को लेकर पीएम मोदी ने कहा था कि उनके लिए 4 जातियां अहम हैं-नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और गरीब परिवार। ऐसे में सवाल ये है कि यूपी में कांग्रेस का साथ पाने के बाद अखिलेश यादव का पीडीए पीएम मोदी की 4 जातियों के आगे कितना टिक पाएगा? अगर जमीनी स्थिति देखें तो एक बड़ी आबादी को साधने की राहुल गांधी और अखिलेश याद के प्रयासों के बावजूद माहौल बीजेपी के पक्ष में ज्यादा दिखता है, क्योंकि बीजेपी के पास अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण से बना माहौल है।
दूसरी ओर, पीएम मोदी की राष्ट्रीय छवि बीजेपी को फायदा पहुंचाती है। वहीं, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि हिंदुत्व के रक्षक नेता की है, जिसका लाभ भी मिलना तय है। यहां एनडीए ने छोटे दलों को साधकर अपनी ताकत मजबूत कर ली है। इसके पलट विपक्ष अपने घर में मचे भगदड़ से त्रस्त है। वहां हफ्ते भर में चार-चार झटके लगे। चौधरी चरण सिंह को मोदी सरकार ने ‘भारत रत्न’ दे दिया, तो उनके पोते और आरएलडी चीफ जयंत चौधरी ने अखिलेश से गठबंधन तोड़ने का पूरा मन बना लिया, हालांकि, अभी बीजेपी-आरएलडी या सपा तीनों में से किसी ने ऑफिशियल अनाउंसमेंट नहीं किया है। दरअसल, अखिलेश की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन का मुकाबला उस एनडीए से है, जिसे 2019 के चुनाव में बीजेपी को 49.6% वोट मिले थे, जबकि अपना दल को 1.2% मिले।
यानी एनडीए को 50.8% वोट हासिल हुए। दूसरी तरफ महागठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी को 18% वोट मिले थे, BSP को 19.3% और राष्ट्रीय लोकदल को 1.7% वोट मिले। यानी समूचे गठबंधन को 39% हासिल हुए। वहीं, यूपीए में कांग्रेस को 6.3% वोट हासिल हुए थे, लेकिन अब बदले हालात में गठबंधनों का चरित्र बदल गया है। पिछले चुनाव के आधार पर मौजूदा गठबंधन का वोट जोड़ें तो एनडीए में बीजेपी, अपना दल और संभावित तौर पर एनडीए में शामिल होने जा रही आरएलडी के वोट जोड़कर 52.5% हो जाते हैं, जबकि दूसरी तरफ, इंडिया ब्लॉक में शामिल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के वोट जोडकर 24.3% होते हैं। यानी एनडीए पिछले चुनावों के आधार पर इंडिया ब्लॉक की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा मजबूत दिखती है।
पिछले चुनावों का समीकरण तो विपक्ष के लिए अच्छी तस्वीर पेश नहीं करता, बावजूद इसके अखिलेश यादव अपने पीडीए यानी ‘पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक’ की हांक लगाकर बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, राहुल गांधी भी तकरीबन हर मंच से 73% आबादी (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) के हित और हक की बात कर रहे हैं, लेकिन देखने वाली बात होगी कि आगामी लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक किसे दिल्ली की सत्ता तक ले जाते हैं।