जिसने छापा, उस पे छापा
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जिसने छापा, उस पे छापा
लोकतंत्र का विकट तमाशा
सच्चाई में ताप बहुत है
उसे दबाना, एक हताशा
सच, डंडे से नहीं दबेगा
यह सत्ता की व्यर्थ पिपासा
तलवारों की धार कुंद जब
कलम जगाती जन-जिज्ञासा
लोक चेतना जगती जब जब
तब शासक में घोर निराशा
आमजनों के मूल प्रश्न पर
दे झूठी क्यों रोज दिलासा
आमलोग हक लेंगे लड़ के
टूटी नहीं सुमन की आशा
सादर
श्यामल सुमन