पार्षदों के इस्तीफे से दिल्ली में ‘आप’ की साख को और लगेगा बट्टा
देवानंद सिंह
दिल्ली की राजनीतिक फिजाओं में शनिवार को उस वक्त एक बड़ा उलटफेर दर्ज हुआ जब आम आदमी पार्टी के 15 निगम पार्षदों ने न केवल पार्टी से इस्तीफा दे दिया, बल्कि ‘इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी’ (IVP) के नाम से एक नए राजनीतिक मंच की भी घोषणा कर दी। इस घटनाक्रम ने न केवल ‘आप’ की निगम में पकड़ को कमजोर किया है, बल्कि दिल्ली की शहरी राजनीति में एक नए मोर्चे की दस्तक भी दे दी है।
इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी के गठन की घोषणा आदर्श नगर के वरिष्ठ पार्षद मुकेश गोयल के नेतृत्व में की गई। गोयल न केवल एमसीडी में आम आदमी पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक रहे हैं, बल्कि पूर्व में निगम स्थायी समिति के अध्यक्ष और सदन के नेता जैसे महत्वपूर्ण पदों को भी संभाल चुके हैं। उनके इस कदम को पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे असंतोष, अधिकारों की अनदेखी और शहरी विकास के मुद्दों पर विफलता के विरुद्ध एक ‘राजनीतिक विद्रोह’ माना जा सकता है।
मुकेश गोयल सहित जिन पार्षदों ने पार्टी छोड़ी, उन्होंने इसके पीछे मुख्यतः तीन कारण बताए, पहला, निगम की कार्यप्रणाली में ठहराव, दूसरा पार्षदों को विकास कार्यों के लिए फंड न मिलना और तीसरा सदन की कार्यवाही में टकराव की राजनीति का बोलबाला। गोयल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कहा कि हमने ढाई साल पहले लोगों के हितों और दिल्ली के विकास को केंद्र में रखकर ‘आप’ के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन मौजूदा नेतृत्व अब न विकास चाहता है, न लोकतांत्रिक संवाद। इस कथन के ज़रिए उन्होंने न केवल पार्टी के नेतृत्व पर हमला बोला, बल्कि उस निराशा को भी उजागर किया, जो दिल्ली के चुने गए जनप्रतिनिधियों के भीतर धीरे-धीरे गहराती जा रही थी।
इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी को लेकर मुकेश गोयल और उनके सहयोगियों का दावा है कि यह पार्टी नगर निगम की राजनीति को जनकल्याण और विकास की पटरी पर लौटाएगी। उन्होंने संकेत दिया कि IVP किसी एक पार्टी की विरोधी नहीं है, बल्कि दिल्ली के लिए काम करने वाली ताकतों का समर्थन करेगी। हिमानी जैन ने कहा, “हम उस पार्टी का समर्थन करेंगे, जो दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी।” यह वक्तव्य राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संभावित गठबंधन की संभावना और नगर निगम में शक्ति संतुलन की नई दिशा की ओर इशारा करता है।
इस परिस्थिति में, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस नए मोर्चे ने अभी तक स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि वह भाजपा या कांग्रेस के साथ है या नहीं, लेकिन बयान यह ज़रूर दर्शाते हैं कि वे AAP के मौजूदा रवैये से नाराज़ हैं और वैकल्पिक शक्ति केंद्र के रूप में उभरना चाहते हैं। इस घटनाक्रम के बाद आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या 113 से घटकर 98 हो गई है। यह आंकड़ा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि दिल्ली नगर निगम में सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए 126 सीटों में से कम से कम 64 सीटों का समर्थन आवश्यक होता है। आप के लिए संकट सिर्फ संख्याओं का नहीं, बल्कि नैतिकता और संगठनात्मक एकता का भी है।
पार्टी के भीतर से उठे इस असंतोष ने संगठनात्मक नेतृत्व के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े किए हैं। आप, एक समय दिल्ली में वैकल्पिक राजनीति की प्रतीक बनी थी, अब सत्ता के गलियारों में उसी ‘केंद्रीकृत नेतृत्व’ और ‘अंतरंग घेरे’ की आलोचना का शिकार हो रही है, जिसके विरोध से उसने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।हिमानी जैन के बयान, “यह संख्या और बढ़ सकती है,” इस बात की चेतावनी है कि आप में असंतोष अभी थमा नहीं है। यदि, पार्टी नेतृत्व ने भीतर के संवाद को सक्रिय नहीं किया, तो आने वाले समय में और भी पार्षद पार्टी छोड़ सकते हैं या बगावत कर सकते हैं।
यह भी स्पष्ट है कि यह सिर्फ कुछ सीटों की गणित का सवाल नहीं है, बल्कि एक ऐसी चुनौती है, जो पार्टी के बुनियादी ढांचे, नेतृत्व की पारदर्शिता और उसके मूल विचार ‘जन सेवा की राजनीति’ पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी का गठन दिल्ली की राजनीति में तीसरे मोर्चे के संभावित उभार को दर्शाता है। अभी तक दिल्ली की राजनीति मुख्य रूप से भाजपा और आप के बीच द्विध्रुवीय रही है। कांग्रेस धीरे-धीरे हाशिये पर चली गई है और अब IVP का आना इस स्थिति को चुनौती देने वाला कदम हो सकता है, खासकर स्थानीय निकायों में, जहां क्षेत्रीय मुद्दों और चेहरों की भूमिका ज्यादा निर्णायक होती है।
यदि, IVP अपने गठन के बाद ठोस नीति एजेंडा और संगठनात्मक ढांचा प्रस्तुत कर पाती है, तो यह नगर निगम की राजनीति को नई दिशा दे सकती है। वहीं, यदि यह केवल एक असंतुष्ट गुट के अस्थायी जमावड़े तक सीमित रही, तो यह प्रयास अल्पकालिक साबित होगा। आम आदमी पार्टी को जो राजनीतिक झटका इन 15 पार्षदों के इस्तीफे से लगा है, वह केवल संख्या का सवाल नहीं, बल्कि पार्टी की भीतरी राजनीति और कार्यशैली पर गहरा संकेत है। यह दर्शाता है कि सत्ता में आने के बाद यदि जनप्रतिनिधियों की आवाज़, क्षेत्रीय विकास और संवाद का अभाव होता है, तो एक वैकल्पिक मंच उभर सकता है।
इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी का भविष्य भले ही अभी स्पष्ट न हो, लेकिन इसकी उपस्थिति दिल्ली नगर निगम में एक चेतावनी की तरह है कि सत्ता में रहते हुए संवाद, विकास और सहयोग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आप को चाहिए कि वह इस घटनाक्रम से सबक ले और निगम, पार्टी तथा जनता के बीच संतुलन साधे, अन्यथा आने वाले समय में यह असंतोष पार्टी की व्यापक राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। यह सिर्फ एक पार्टी का संकट नहीं, बल्कि दिल्ली जैसे विशाल और जटिल शहरी केंद्र की स्थानीय लोकतंत्र व्यवस्था का भी प्रतिबिंब है, जहां हर पार्षद की भूमिका और अधिकार जनता की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने से जुड़ी होती है। यदि, इस स्तर पर असंतोष उभरता है, तो यह पूरे राजनीतिक तंत्र को झकझोर सकता है।