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    Home » शहादत से बलिदान का आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करता है सिख: कुलबिंदर
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    शहादत से बलिदान का आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करता है सिख: कुलबिंदर

    dhiraj KumarBy dhiraj KumarDecember 16, 2025No Comments4 Mins Read
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    शहादत से बलिदान का आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करता है सिख: कुलबिंदर

    अंग्रेजी कैलेंडर, नानकशाही, विक्रम संवत के घालमेल से बचने की जरूरत

    जमशेदपुर। क़ौमी सिख मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता कुलबिंदर सिंह ने सिख गुरुओं के सिद्धांत, मूल्यों, दर्शन का हवाला देते हुए कहा कि शहादत पर शोक जताने की कोई परंपरा अथवा उदाहरण नहीं है। चार बेटों की शहादत पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था, चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार, अर्थात क्योंकि उन्होंने धर्म और सच्चाई के लिए अपने प्राण दिए, और उनके इस बलिदान से हज़ारों सिखों में जोश और धर्म की लौ जली है। यह व्यक्तिगत दुःख से ऊपर उठकर राष्ट्र और धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है।
    गुरु अर्जन देव जी गुरु तेग बहादुर एवं चार साहिबजादों की शहादत से ही प्रेरणा लेकर मुगलों अंग्रेजों का विरोध बलिदान देकर करते रहे हैं।
    वही कुलबिंदर सिंह के अनुसार साहिबजादों की शहादत एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिवस को लेकर भ्रांति का कारण विक्रम संवत, मूल नानकशाही, नानकशाही कैलेंडर और अंग्रेजी कैलेंडर की तिथियां में बिना समझ के घालमेल करना होता है।
    गुरु गोबिंद सिंह जी ने पटना में शुक्ल पक्ष के सात पौष 1723 (22 दिसंबर 1723) को अवतार लिया। 2025 के अंग्रेजी साल में शुक्ल पक्ष सात पौष 06 जनवरी 2025 को आया तथा अब 27 दिसंबर 2025 को है।
    मूल नानकशाही कैलेंडर में पांच जनवरी स्थाई रूप से तय हुई परंतु गुरु गोविंद सिंह जी की जन्मस्थली तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब बिहार और अबचल नगर प्रस्थान स्थल तख्त श्री हजूर साहब नांदेड महाराष्ट्र पूर्व की भांति विक्रम संवत का ही प्रयोग करता रहा। पंथिक एकता के लिए मूल नानकशाही कैलेंडर में संशोधित कर विक्रम संवत के अनुसार तिथि तय करने का फैसला हुआ।
    यही कारण है कि सिख संसद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी इस फैसले को मान रही है और तख्त श्री अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज ने संदेश दिया है कि 27 दिसंबर को ही प्रकाश पर्व है परंतु अपनी आवश्यकताओं के अनुसार आगे पीछे मनाया जा सकता है। पंजाब में 4 जनवरी को प्रकाश पर्व मनाया जाएगा वहीं दिल्ली बिहार महाराष्ट्र में 27 दिसंबर को ही प्रकाश पर्व का आयोजन होगा।
    दो बड़े साहबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह की शहादत विक्रम संवतः शुक्ल पक्ष आठ पौष 1762 ( 21 दिसंबर 1704) और छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी की शहादत विक्रम संवत के शुक्ल पक्ष 13 पौष 1762 (26 दिसंबर 1704) हुई।
    विक्रम संवत को आधार बनाए तो 28 दिसंबर 2025 को बड़े साहिबजादों की तथा एक जनवरी 2026 को छोटे साहिबजादों और माता गुजरी की शहादत दिवस है।

    क्या है विक्रम संवत कैलेंडर
    राजा विक्रमादित्य की शकों पर विजय और सूर्य व चंद्रमा की गतियों पर आधारित चंद्र-सौर पंचांग प्रणाली है। जो 57 ईसा पूर्व में शुरू हुआ।भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भागों में त्योहारों व धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयोग होता है, जिसमें हर तीन साल में एक अतिरिक्त माह (अधिक मास) जोड़ा जाता है ताकि चंद्र और सौर चक्रों में संतुलन बना रहे।

    क्या है नानकशाही कैलेंडर
    यह सौर कैलेंडर है, जो गुरु नानक देव जी के नाम पर है और “बारह माहा ” पर आधारित है, जो सूर्य की स्थिति और ऋतुओं के साथ तालमेल बिठाता है, ताकि त्योहारों और सिख गुरुओं की जन्म-शताब्दियों की तिथियां हर साल स्थिर और निश्चित रहें, जिससे भ्रम दूर हो और सिख पहचान मजबूत हो. लेकिन गुरु अर्जन देव जी की शहादत की तिथि तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व को लेकर मतांतर हुआ और फिर संशोधित नानक शाही कैलेंडर बनाया गया। इस पर भी पूरी तरह पांचों तख्तों की सहमति नहीं बन पाई है।

    अंग्रेजी ग्रेगोरियन कैलेंडर
    दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला नागरिक कैलेंडर है। ईसा मसीह के जन्म से इसकी शुरुआत है। जूलियस सीजर को श्रेय है, जिसे 1582 में पोप ग्रेगरी तेरह ने जूलियन कैलेंडर में सुधार करके लागू किया था ताकि पृथ्वी के वास्तविक सौर वर्ष (लगभग 365.2422 दिन) के साथ कैलेंडर को ठीक किया जा सके। जिससे लीप वर्ष के नियमों में बदलाव और कैलेंडर से 10 दिन हटाकर इसे सटीक बनाया गया।

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