रस्ता कठिन कलम का भाई
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जब जब कलम बनी है चारण तब तब एक कमाल हुआ
कल-कल, छलछल, निर्मल गंगा का पानी भी लाल हुआ
कहीं पे लालच, कहीं पे डर से कलम जहां भी झुकती है
पढ़कर ये इतिहास को समझो देश वही कंगाल हुआ
कलम के जिम्मे है समाज की रखवाली करते रहना
और जगाना लोगों को भी जब जब खड़ा सवाल हुआ
कलम रो रही आज देखकर बदली हुई सियासत को
जो फकीर सा इस रस्ते पर चलकर मालामाल हुआ
रस्ता कठिन कलम का भाई सोच समझकर थाम इसे
लोक-जागरण कर कितनों का हाल सुमन बेहाल हुआ
सादर
श्यामल सुमन