संघ के कर्नाटक-मंथन में नये संकल्प-नयी दिशाएं
-ललित गर्ग-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक अपने स्थापना के शताब्दी वर्ष प्रवेश के पावन एवं ऐतिहासिक अवसर पर बेंगलुरु में सफलतापूर्णक एवं ऊर्जामय माहौल में संपन्न हुई, जिसमें औरंगजेब विवाद, तीन-भाषा फॉर्मूला, परिसीमन और बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर चर्चा ने एक अपूर्व वातावरण का निर्माण किया। जिसमें दुनिया में शांति और समृद्धि लाने के तर्क पर एक सौहार्दपूर्ण और संगठित हिंदू समाज के निर्माण का आह्वान किया गया। इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत, महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और भाजपा महासचिव बीएल संतोष सहित आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के प्रमुखों ने भाग लिया। आरएसएस की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिन्दू समाज में राष्ट्रीयत्व भाव जागृत करने, हिन्दुओं को संगठित करने एवं हिन्दू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के उद्देश्य से हुई और इन सौ वर्षो में न केवल इन लक्ष्यों को हासिल किया गया है बल्कि अनेक रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों एवं योजनाओं के साथ अपनी एक स्वतंत्र एवं अलग छवि का निर्माण किया है। इस वर्ष की वार्षिक बैठक न केवल विशेष बल्कि नवीन संकल्पों की वाहक बनी है, क्योंकि बैठक ने सकारात्मक क्रांतिकारी विचारों से न केवल राष्ट्र में सक्रिय नकारात्मक एवं अराष्ट्रीय ताकतों को सख्त संदेश दिया गया बल्कि पडौसी बांग्लादेश-पाकिस्तान-चीन आदि देशों की कुचेष्टाओं के लिये ललकारा भी गया एवं सावधान भी किया गया है। अठहत्तर वर्ष की देहरी पर खड़े होकर राष्ट्र के अतीत को देखा-परखा जाए तो ऐसा लगता है कि अब राष्ट्र का कायाकल्प हो रहा है। मूलभूत आस्थाओं एवं राष्ट्रीयता के दृढ़ीकरण के साथ देश में जो नई चेतना आई है, वह संघ जैसे शक्तिशाली संगठन का जीवंत साक्ष्य है। राष्ट्रीयता, स्व-पहचान, स्वदेशी-भावना, हिन्दू-संस्कृति के ऊर्जा के अक्षय स्रोतों की खोज में जो प्रयत्न किया जा रहा है, वह अभूतपूर्व है। जन-आकांक्षा के अनुरूप राष्ट्र को जिस युगीन परिवेश में प्रस्तुति दी जा रही है, वह असाधारण है। इन सब परिवर्तनों-परिवर्धनों एवं राष्ट्र को सशक्त करने के बावजूद संघ की सादगी का सौन्दर्य निराला है और कर्नाटक बैठक इसी सादगी के सौन्दर्य के अनूठेपन को लिये हुई थी।
दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ने अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सभी स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि वे पूरे समाज को सज्जन शक्ति के नेतृत्व में एकजुट कर, दुनिया के सामने एक संगठित और सामंजस्यपूर्ण भारत का आदर्श प्रस्तुत करें। इसमें बैठक में मुख्य रूप से कहा गया है कि भारत एक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति वाला देश है और इसमें एकजुट दुनिया बनाने का अद्भुत ज्ञान एवं सक्षमता है। आरएसएस ने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य पूरी मानवता को विभाजन और विनाश की प्रवृत्तियों से बचाना है और सभी जीवों के बीच शांति और एकता की भावना को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, आरएसएस ने हिंदू समाज को अपने वैश्विक उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए संगठित और सामूहिक जीवन की आवश्यकता पर बल दिया है, जो ‘धर्म’ पर आधारित आत्मविश्वास से भरा हो। साथ ही बैठक में पारित प्रस्तावों में यह भी कहा गया कि सभी प्रकार के भेदभावों को खारिज कर, एकजुट आचरण और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को अपनाते हुए हमें एक आदर्श समाज का निर्माण करना चाहिए। यह समाज भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिकता से भी परिपूर्ण होगा, जो समाज की समस्याओं का समाधान करेगा और चुनौतियों को कम करेगा। इस वर्ष की बैठक का हर बोल अनमोल है, हर चरण एक मंजिल है, हर संकल्प नये भारत-सशक्त भारत की दिशा है और हर क्रिया एक सन्देश है। संघ का जीवन और दर्शन, विचार और सोच अन्तरमन को कुरेदने वाली ऐसी प्रेरणा है जो जागृत अवस्था में सोने वाले लोगों का झकझोर देती है।
इस बैठक की खास बात यह रही है कि इसमें संघ की तरफ से भाजपा के बारे में सीधे सवालों से दूरी बनाए रखी गयी। हालांकि, परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण के राज्यों में सीटें कम नहीं होने को लेकर भाजपा को संदेश भी दे दिया। परिसीमन को लेकर संघ ने साफ कहा कि दक्षिणी राज्यों का लोकसभा में अनुपात वही रहेगा। इसके साथ ही संघ ने तीन-भाषा फार्मूले पर संतुलित रुख बनाए रखा गया। ऐसे समय में जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार त्रिभाषा फार्मूले को लेकर असमंजस में हैं, आरएसएस ने इस विवाद को दरकिनार करते हुए मातृभाषा, व्यक्ति के निवास स्थान की क्षेत्रीय भाषा तथा करियर की भाषा, जो अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा हो सकती है, के उपयोग की वकालत की है। संघ ने महाराष्ट्र में मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर चल रहे विवाद को लेकर मुगल शासक की तीव्र एवं तीखी आलोचना की। खास बात यह देखने को मिली कि संघ की तरफ से औरंगजेब की आलोचना के साथ ही उसके भाई दारा शिकोह का जश्न भी मनाया, क्योंकि दारा शिकोह सामाजिक सद्भाव में विश्वास करने वाला व्यक्ति था। दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भारत के मूल्यों के खिलाफ जाने वाले लोगों को आदर्श बनाया गया था। औरंगजेब ‘भारत के लोकाचार’ के खिलाफ था और अगर वैसी ही ‘आक्रमणकारी मानसिकता’ अभी भी मौजूद है तो यह देश के लिए खतरा है। जो इस भूमि की सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने की कुचेष्ठा भी है। निश्चित ही इस तरह कोई विकृत संस्करण या नैरेटिव प्रस्तुत करना चाहता है, तो उसका मुकाबला किया ही जाना चाहिए।
कर्नाटक बैठक की टंकार में संघ ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। ‘बांग्लादेश के हिन्दू समाज के साथ एकजुटता से खड़े होने का आह्वान’ शीर्षक वाले एक प्रस्ताव में अंतरराष्ट्रीय ताकतों और ‘अमेरिका में डीप स्टेट’ के प्रयासों का उल्लेख किया गया। संघ ने स्पष्ट किया कि बांग्लादेश में हिंदुओं की जिम्मेदारी भारत की है और ‘हम इस कर्तव्य से बच नहीं सकते।’ निश्चित ही धार्मिक संस्थानों पर व्यवस्थित हमलों, क्रूर हत्याओं, जबरन धर्मांतरण और हिन्दुओं की संपत्तियों को नष्ट करने के चक्र ने बांग्लादेश में हिन्दू समुदाय के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। इसलिये संघ द्वारा धार्मिक असहिष्णुता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के इन कृत्यों की कड़ी निंदा की गई है और वैश्विक समुदाय से निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है। इस बैठक ने हिन्दुओं को आश्वस्त किया कि बांग्लादेश में हिंदुओं के भविष्य में कोई मुश्किल स्थिति आती है, तो हम पीछे नहीं हट सकते। अगर ऐसी स्थिति आती है, तो हम उसका समाधान करेंगे। भाजपा के नये अध्यक्ष के चयन को लेकर भी संघ ने स्पष्ट किया कि भाजपा के नए अध्यक्ष के चयन को लेकर उसका पार्टी के साथ कोई मतभेद नहीं है। संघ ने कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से भाजपा पर निर्भर है। भाजपा की प्रक्रिया चल रही है, सदस्यता पूरी हो चुकी है और विभिन्न स्तरों पर समितियों का गठन हो चुका है। आने वाले दिनों में भाजपा अध्यक्ष का चुनाव होगा। इससे पहले चर्चा चल थी कि भाजपा और आरएसएस किसी उपयुक्त उम्मीदवार पर सहमत नहीं हो पाए हैं, जिससे दोनों संगठनों के बीच टकराव की अटकलें लगाई जा रही हैं।
कर्नाटक बैठक से एक बार फिर पुरजोर तरीके से उजागर हुआ कि संघ हिन्दू सनातन संस्कृति को भारत के जन-जन के मानस में प्रवाहित करने का सफल एवं सार्थक कार्य करने को प्रतिबद्ध है। ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिये भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ अपने स्वयंसेवकों द्वारा समाज के बीच जाकर करने का प्रयास करता है और यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति एवं समरसतापूर्ण जीवन स्थापित करने के लिये एक जरूरी आवश्यकता है। पिछले आठ दशकों में लगातार हिन्दू-संस्कृति को कमजोर करने की राजनीतिक चालों को भी संघ ने समय-समय पर आड़े हाथ लिया है। दरअसल हिन्दू धर्म नहीं, विचार है, संस्कृति है। हिन्दू राष्ट्र होने का अर्थ धर्म से न होकर हिन्दू संस्कृति के सर्वग्राही भाव से है। हिन्दू संस्कृति उदारता का अन्तर्निहित शंखनाद है क्योंकि पूरे विश्व में यह अकेली संस्कृति है जो बहुविचारवाद यानी सभी धर्म, विचार एवं संस्कृतियों को स्वयं में समेटे हैं। कर्नाटक बैठक हिन्दू संस्कृति के वृहद स्वरूप का ही सौपान बनी है।