शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग से और बढ़ेगा तनाव
देवानंद सिंह
भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध सामान्य होने के बजाय और भी जटिल होते जा रहे हैं। जिस तरह बांग्लादेश ने भारत से अपने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है, उससे न केवल तनाव की गुंजाइश और बढ़ गई है, बल्कि इस मामले का राजनीतिक, कूटनीतिक और कानूनी पहलुओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है। शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश और भारत के संबंधों में भरोसा अब तक नहीं लौट पाया है, जो अत्यंत चिंताजनक कहा जाएगा।
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी पिछले महीने बांग्लादेश गए थे, उससे उम्मीद की जा रही थी कि दोनों देशों के रिश्तों में कुछ नरमी आएगी, लेकिन नरमी तो दूर, अब कड़वाहट बढ़ने के चांसेज और बढ़ गए हैं, इसीलिए बांग्लादेश की मांग को भारत के लिए असहज करने वाली बात कहा जाएगा। यह बात उल्लेखनीय है कि शेख़ हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं, जिसे उन्होंने निभाया भी है। ऐसे हालात में भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, क्योंकि इस वक्त बांग्लादेश का माहौल पूरी तरह से बिगड़ा हुआ है। बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है, क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं।
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक रहीं हैं, क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं। बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ़ शेख़ हसीना प्रतीक बनी हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मक़सद यही है कि शेख़ हसीना उनके क़ब्ज़े में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें। शेख़ हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना होगा, जो बिल्कुल भी उचित नहीं लगता। बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है, जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है। इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में, उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का भी अधिकार नहीं है। ऐसे में, यह भी स्पष्ट है कि भारत शेख़ हसीना का प्रत्यर्पण नहीं कर सकता है। बांग्लादेश ने भारत से ऐसी मांग राजनीतिक कारणों से की है। यह बात भी उल्लेखनीय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रत्यर्पण संधि है, उसमें राजनीतिक प्रत्यर्पण शामिल नहीं है।
ऐसा लग रहा है कि बिना मतलब के बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से टकराव बढ़ाने का मन बनाया हुआ है। यह बात साफ है कि बांग्लादेश का यह रुख़ किसी की ग़लत सलाह पर आधारित है। बांग्लादेश के इस्लामी नेता भारत से अच्छे संबंध नहीं चाहते हैं और वहां की अंतरिम सरकार इन नेताओं के दबाव में काम कर रही है। भारत को पता था कि इस तरह की मांग कभी न कभी आएगी। बांग्लादेश को भी पता होगा कि भारत इसके लिए तैयार नहीं होगा। यह महज़ औपचारिकता से ज़्यादा कुछ भी नहीं लगता है। भारत की प्रतिक्रिया इस मांग पर काफी महत्वपूर्ण होगी। यदि, भारत शेख़ हसीना को प्रत्यर्पित करने का निर्णय लेता है, तो यह किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं होगा। भारतीय राजनीति में भी यह गंभीर विवादों को जन्म देगा, क्योंकि भारत को भी लगातार बांग्लादेश बनाने की कोशिश हो रही है। ऐसे में, निश्चित रूप से शेख़ हसीना को प्रत्यर्पित करने का मामला काफी संवेदनशील कहा जाएगा।
यह बात उल्लेखनीय है कि भारत और बांग्लादेश के रिश्तों का इतिहास बहुत ही विविधतापूर्ण और संवेदनशील है। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बांग्लादेश की स्वतंत्रता में योगदान दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते रहे हैं, हालांकि समय-समय पर कुछ मुद्दे उत्पन्न होते रहे हैं, इस तरह की तनाव की स्थिति कभी नहीं आई। भारत और बांग्लादेश के बीच सीमाओं, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और प्रवासी मुद्दों पर संवाद होते रहते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के बीच व्यक्तिगत रूप से अच्छे रिश्ते रहे हैं और 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते ने दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत किया था।
यह संभव है कि बांग्लादेश का यह कदम कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए हो। शेख़ हसीना के खिलाफ आरोप बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति से जुड़े हो सकते हैं और यह मांग राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा हो सकती है, क्योंकि बांग्लादेश में आगामी चुनावों के मद्देनजर विपक्षी दलों और अन्य संगठनों का यह प्रयास हो सकता है कि शेख़ हसीना पर कानूनी दबाव बढ़ाया जाए, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो। कूटनीतिक दृष्टिकोण से, यह भी संभव है कि बांग्लादेश ने भारत से इस मुद्दे पर बातचीत के लिए दबाव बनाने की कोशिश की हो, ताकि बांग्लादेश में घरेलू विवादों को हल किया जा सके। इस परिस्थिति में, भारत के लिए चुनौतियां दो स्तरों पर हैं। पहला, कूटनीतिक दृष्टिकोण से और दूसरा, घरेलू राजनीति से संबंधित। कूटनीतिक रूप से, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि बांग्लादेश के साथ रिश्ते मजबूत बने रहें। भारत को यह समझना होगा कि शेख़ हसीना का नेतृत्व बांग्लादेश में स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है और उनके खिलाफ कोई भी कदम बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना जा सकता है।
कुल मिलाकर, शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग एक जटिल और संवेदनशील मामला है, जो भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। दोनों देशों को इस मामले को कूटनीतिक दृष्टिकोण से हल करने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखी जा सके। भारतीय और बांग्लादेशी नेताओं को अपने राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ एक दूसरे के संवेदनशील मुद्दों का भी ध्यान रखना होगा। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका निर्णय बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में न देखा जाए और दोनों देशों के रिश्तों में कोई और तनाव न बढ़े।