परिस्थितियां मनुष्य के जीवन पर अमिट छाप छोड़ती हैं कभी-कभी परिस्थितियों से लड़कर व्यक्ति बिखर जाता है और कभी-कभी परिस्थितियों से लड़कर निखर जाता है
डॉ भुवन मोहिनी का जीवन भी इसी प्रकार परिस्थितियों से लड़ कर निखरा हुआ ,उल्लास और आभा से परिपूर्ण हुआ । चंद्रकलाओं समान अर्द्ध ऊर्ध्व जीवन लहरों से लड़ कर काव्य रचनाओं के उन्मुक्त आकाश में विचरण कर रहा है । डॉ भुवन मोहिनी का जन्म 1982 जुलाई 5 को गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ , पिता श्री पुरुषोत्तम लाल भट्ट तथा माता श्रीमती मीरा भट्ट काव्य रसिक और साहित्य शिक्षा में दीक्षित थे । राजस्थान प्रांत के एक छोटे से कस्बे नुमा आदिवासी गांव प्रतापगढ़ में हुआ ।
माता-पिता की साहित्यिक अभिरुचि का प्रभाव आप पर बाल्यकाल से ही रहा। प्रारंभिक शिक्षा कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्रतापगढ़ में हुई तथा ग्रेजुएशन भी प्रतापगढ़ के सरकारी कॉलेज से की कला में रुचि के कारण शिक्षा के दौरान ही आपने कई पुरस्कार जीते 1998 स्माल साइंटिस्ट का अवार्ड आपके खाते में आया मेधावी होने के कारण आप हमेशा प्रतियोगिता का हिस्सा रहीं । वाद विवाद में आपने राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीते 2003 में श्री अटल बिहारी बाजपेई पुरस्कार दिया ने जीता ।
कहते हैं संघर्ष ही जीवन है शायद इसी उक्ति को सार्थक किया है डॉ भुवन मोहिनी 2005 में पत्रकारिता में स्वर्ण पदक 2007 में हिंदी में स्वर्ण पदक उनकी उच्च शिक्षा और मानसिक स्तर की उच्चता को दशार्ता है ।आपने पीएचडी में दाखिला लिया उसी दौरान आपका विवाह कौशल आमेटा से हुआ। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की । पीएचडी का विषय कृष्णा अग्निहोत्री के उपन्यासों में सामाजिक व राजनीतिक चेतना रहा । राजस्थान में साहित्यकारों में कृष्णा जी पर यह उनका पहला शोध था जो सराहनीय रहा । सीधे-साधे परिवार में पली-बढ़ी और एक शिक्षित परिवार में ब्याही डॉक्टर भुवन मोहिनी मंच की दुनिया से बिल्कुल अनभिज्ञ थी लेकिन लेखन में उनका दखल बहुत पुराना था डॉ भुवन मोहिनी के लेख कविताएं और कहानियां समय-समय पर प्रकाशित होती रहती थी 2015 मार्च में डॉ भुवन मोहिनी के जीवन में अचानक मंचीय दुनिया सामने आई और जैसा कि मूल स्वभाव था डॉ भुवन मोहिनी ने पीछे हटने के बजाय इसे स्वीकारना उचित समझा तब से अनवरत उनकी कवि सम्मेलनीय यात्रा चल रही है विगत 4 वर्षों में डॉक्टर भुवन मोहिनी ने देश मे अपना विशिष्ट स्थान बना लिया जहां कविता पर केवल श्रृंगार की छाप लगी थी उसे ह्यूमरस कर लोगों तक पहुंचाने वाली देश की पहली कवियत्री हैं साहित्य कलाओं के साथ मंचीय शैली में डॉ भुवन मोहिनी आज किसी भी मंच की सफलता की परिचायक मानी जाती हैं नैतिक पतन से लेकर संस्कृति के उत्थान तक की यात्रा उनकी कविताएं करवाती हैं भारतीय नारी के चरित्र की उन्होंने कभी सावित्री कभी द्रोपदी कभी सीता तो कभी दामिनी के माध्यम से वक्त वक्त पर उकेरा नायक नायिका के किस्सों से रोमांचित करने से लेकर बेटी व माँ जैसे विषयों पर सार्थक कविता आपकी पहचान है हिंदी उर्दू और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं पर आपका बराबर से दखल है हिंदी को लेकर आपने कई बार अपनी कविताओं को सात समंदर की पार की यात्राएं करवाई वर्तमान में इंदौर में निवास कर रही आदरणीय डॉक्टर भुवन मोहिनी की काव्य यात्रा निरंतर जारी है।