राष्ट्र संवाद नजरिया : अगर राजा डरकोप है तो विपक्ष भी बेशर्म है !
देवानंद सिंह
संसद में हंगामा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। संसद सुरक्षा पर चूक मामले के बाद जिस तरह पक्ष और विपक्ष के बीच की तकरार ने जोर पकड़ा है, उससे यही साबित होता है कि न तो सरकार विरोध झेलना चाहती है और न ही विपक्ष अपनी बेकार की मांगों को लेकर विरोध करना बंद करना चाहता है। इसका असर यह हो रहा है कि संसद सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। आलम यह है कि मंगलवार को निलंबित किए गए सांसदों को मिलाकर अब तक निलंबित हुए सांसदों की संख्या 141 पर पहुंच गई है, जिसमें 95 लोकसभा और 46 राज्यसभा के सांसद हैं, हालांकि पहले भी इस की कार्रवाई होती रही है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को निलंबन कभी नहीं हुआ, इससे पहले 15 मार्च 1989 को लोकसभा से 63 सांसदों को निकाला गया था। ये सांसद इंदिरा गांधी हत्याकांड की जांच करने वाले आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश करने की मांग को लेकर हंगामा कर रहे थे। इस चालू सत्र में विपक्षी सांसद संसद में ‘सुरक्षा चूक’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मौजूदगी में गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे थे। कुछ सांसदों ने अमित शाह से इस्तीफा देने की भी मांग की थी। विपक्ष मान रहा है कि मोदी सरकार ‘मनमानी’ पर उतर आई है। वो बेहद अहम बिलों को बगैर बहस के मनमाने ढंग से पारित कराना चाहती है, इसीलिए वो सदन में विपक्षी सांसदों को नहीं देखना चाहती है। मोदी सरकार ‘विपक्ष मुक्त’ देश की बात इसीलिए करती है ताकि अपनी ‘मनमानी’ कर सके. कांग्रेस ने इसे संसद और लोकतंत्र पर ‘हमला’ बताया है।
विपक्ष का कहना है कि सरकार ‘विपक्ष मुक्त’ संसद चाहती है ताकि अहम बिलों को मनमाने ढंग से पारित करा सके। सरकार संसद की सुरक्षा को नजरअंदाज कर लोगों का ध्यान भटकाने का काम कर रही है। इस तरह से सांसदों के निलंबन की कार्रवाई करने से सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है, वह संसद में सांसदों को बोलने के अधिकार को छीनना चाहती है, इसीलिए लगातार सांसदों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की जा रही है।
निश्चित तौर पर जिस तरह से संसद की सुरक्षा चूक व अन्य मुद्दों को लेकर संसद में हंगामा चल रहा है, उससे बड़ी अजीब-सी स्थिति पैदा हो गई है, क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए कतई अच्छा नहीं है। पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक विरोध ठीक है, लेकिन इस तरह संसद की कार्रवाई को बाधित करना किसी भी रूप में उचित नहीं है, क्योंकि संसद में जनता से जुड़े मुद्दे उठते हैं, अगर, जनप्रतिनिधि ही प्रतिशोध की राजनीति करेंगे तो यह लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है।
निहायत ही एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितना एक मजबूत सरकार का होना जरूरी होता है, उतना ही मजबूत विपक्ष का भी होना जरूरी होता है, अगर विपक्ष मजबूत नहीं होगा तो निश्चित तौर पर सरकार निरंकुश हो जाएगी। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होता है, इसीलिए विपक्ष के लिए जरूरी है कि वह उस मर्यादा को बिल्कुल भी क्रॉस न करे, जिससे संसद जनता की हितों की बात करने वाली जगह न रहकर केवल हंगामे की जगह बनकर रह जाए। वहीं, यह बात सरकार पर भी लागू होती है कि वह विरोध झेलने की आदत डाले। सरकार में रहने वाली पार्टी को विरोध झेलते हुए विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए, यही एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की परंपरा होती है।
ऐसा न हो कि सांसदों का सीधे तौर पर निलंबन कर दिया जाए, अगर, संसद में विपक्षी सांसद ही नहीं रहेंगे तो सरकार के प्रतिनिधि किससे बहस करेंगे। ऐसी परिस्थिति में सरकार अपनी मनमर्जी करेगी, जो बिल्कुल भी उचित नहीं है। यानि दोनों तरफ सामंजस्य बिठाने का प्रयास होना चाहिए, जिससे जनता की समस्याओं पर उचित बहस हो सके। विपक्ष को विरोध भी करना है तो उसका एक तरीका होना चाहिए, जिस तरह चेयर को अपमानित करने का काम विपक्षी सांसदों द्वारा बार-बार किया जाता है, वह उचित नहीं है। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने
मंगलवार को जिस तरह से राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री की, वह किसी भी रूप में उचित नहीं था, कम-से-कम चेयर का सम्मान हर किसी सांसद को करना चाहिए, खासकर विपक्षी सांसदों को, तभी संसद और लोकतंत्र गरिमा बनी रहेगी और जनता भी इस बात के लिए संतुष्ट रहेगी कि उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि उनकी समस्याओं को लेकर गंभीर हैं। अन्यथा हम यह कह सकते हैं कि
अगर राजा डरकोप है तो विपक्ष भी बेशर्म है !