शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, चाईबासा द्वारा हिंदी दिवस की पखवाड़ा पर एक संगोष्ठी का आयोजन
जमशेदपुर 20 सितंबर। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास चाईबासा टोली की हिंदी दिवस की पखवाड़ा पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ तीन बार ओंकार ध्वनि के साथ हुआ। अथिति परिचय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास जमशेदपुर विभाग संयोजक डॉ कविता परमार ने कराया। कार्यक्रम का प्रस्तावना दीपेंद्र जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह न्यास विगत 2008 से शिक्षा बचाओ आंदोलन से प्रारंभ हुआ। इसके अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा और सचिव अतुल कोठारी हुए जिनके संयुक्त प्रयास से न्यास का काम दस विषय, तीन आयाम और तीन विभाग के साथ कार्य प्रारंभ किया। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि जमशेदपुर विभाग के विभाग प्रमुख पंकज कुमार मिश्र ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा नीति 2020 के महत्व और क्रियान्वयन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मातृभाषा अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है। इसके द्वारा मन के भावों की अभिव्यक्ति की जाती है।वहीं इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पूर्व विभागाध्यक्ष कोल्हान विश्वविद्यालय के डॉ. रागिनी भूषण ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं भारतीय भाषा मंच विषय पर सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा एक सीखने और सिखाने की परंपरा है यह केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व पीवीसी, एसकेएमयू, दुमका के डॉक्टर हनुमान प्रसाद शर्मा ने उक्त विषय पर अपना विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की टोली हर क्षेत्र में बननी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में हमारा देश प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है, तक्षशिला व नालंदा विश्वविद्यालय इसके सशक्त प्रमाण हैं। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के महत्व वह क्रियान्वयन पर विस्तार से प्रकाश डाला। अध्यक्षीय आशीर्वचन पद्मावती जैन सरस्वती शिशु विद्या मंदिर चाईबासा के अध्यक्ष रामधन मिश्र ने दिया। उन्होंने कहा कि हमारा देश विभिन्न भाषाओं से प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। भाषा और ज्ञान के क्षेत्र में भारत की तुलना कोई अन्य देशों से नहीं किया जा सकता है। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. कविता परमार और धन्यवाद ज्ञापन नरेश राम ने किया। डॉ कल्याणी कबीर द्वारा शांति मंत्र के बाद कार्यक्रम की समाप्ति हुई। इस कार्यक्रम में कुल 52 विद्वतजन एवं शिक्षाविद आभासी माध्यम से उपस्थित रहे। इस संगोष्ठी में मुख्य रूप से डा. कल्याणी कबीर, डॉ रंजीत प्रसाद, सुजीत वर्मा, कृष्ण कुमार सिंह , अरविंद कुमार पांडेय, अमरकांत झा, दिलीप कुमार गुप्ता, डॉ श्वेता शर्मा, मंजू सिंह, श्रीमन त्रिगुण आदि उपस्थित थे। इस संगोष्ठी का समापन शांति मंत्र के साथ हुआ।