नीतीश के सवर्ण विधायक तो सबसे बुरे फंसे! एक तो पवार इफेक्ट ऊपर से वोटरों के छिटकने का डर
बिहार में राजनीतिक हलचल जब भी तेज होती है तो सियासत एक करवट बदल लेती है। हालांकि अभी उस तरह की हलचल नहीं दिख रही है
पटना: एनसीपी में हुई भारी टूट के बाद बिहार में जेडीयू की चाल थोड़ी थम गई है। इस राजनीतिक भूचाल से विपक्षी एकता के लिए भागदौड़ कर रहे नीतीश कुमार के पांव भी एक अणे मार्ग में थम गए। यह एक खास वजह भी बनी कि नीतीश कुमार ने उन विधायकों से भी वन टू वन बात की, जिन्हें मिलने का समय भी नहीं मिल पाता था। दरअसल जदयू के अधिकांश विधायक एनडीए के जनाधार वाले क्षेत्र से आए हैं। राजद के विरुद्ध उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका राजद नेताओं से प्रताड़ित जनता और एनडीए के समर्थक वोट की रही है। सत्ता में बने रहने को लेकर अभी भले साथ हैं पर जब चुनाव में जाएंगे तो उनकी असल जरुरत यानी एनडीए वोट बैंक की होगी।
नीतीश के सवर्ण विधायक मुश्किल में?
नीतीश कुमार अगर राजद के जंगल राज के विरुद्ध 15 साल तक खड़े रहे तो इसमें सवर्ण वोटरों की भूमिका प्रमुख थी। बाकी के भी वोटर कुशासन से ऊबे हुए थे। वो सुशासन और विकास चाहते थे। लेकिन अब महागठबंधन में जाने के बाद सत्ता पर राजद का रंग चढ़ गया। अचानक से क्राइम में वृद्धि हो गई। रसातल में जा चुका अपहरण उद्योग, धमकी, रंगदारी के मामले हावी हो गए। वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार के प्रभाव में अधिकारी विधायकों की नहीं सुनते हैं। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री से मिल कर अपनी बात रखी। पर हश्र क्या हुआ ये सबने देख लिया।
इस चर्चा में चार भूमिहार विधायक भी शामिल
परवत्ता विधायक संजीव सिंह, ये पहले सूचक हैं जिन्होंने अगवानी सुल्तानगंज पुल पर सही टिप्पणी करते प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को जानकारी दी थी, पर हुआ कुछ नहीं। सदन में भी प्रश्नकाल के जरिए सवाल उठाया, मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ। सवाल यह है कि चुनाव नजदीक आने वाले हैं। इन्हें अपने वोटरों को जवाब देना है। अपने विकास कार्यों का जवाब देना है। ऐसे में ये नेता अपने आधार वोट की राजनीति करने को मजबूर हैं। ऐसे में न तो एनडीए का वोट मिलेगा और न राजद के आधार वोट ही।मटिहानी विधायक राज कुमार सिंह हों या बरबीघा के विधायक सुदर्शन की राजनीतिक जमीन भूमिहार वोटरों पर ही टिकी है। बेगूसराय में भूमिहार वोटर ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजू कुमार सिंह गत चुनाव में LJP से लड़े थे और जदयू के उम्मीदवर बोगो सिंह को हरा कर सदन में आए थे। पहली बार विधायक बने। लेकिन फिर JDU में शामिल हो गए। अब तो इनकी भी समस्या यही है। बरबीघा में भी भूमिहार बहुल क्षेत्र है, जहां हरिजन वोटर अक्सर भूमिहार के साथ रहते हैं। चौथे विधायक हैं पंकज मिश्रा, ये रुन्नी सैदपुर से विधायक हैं। इनकी भी परेशानी वही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे मानते हैं कि ‘जदयू के भीतर ऐसे विधायक संशय में तो हैं। इनकी जीत के खास वोट बैंक के तहत हुई है। और वह है सवर्ण वोट और नीतीश कुमार के समर्थक वोट। अब इनका साथ उस राजद के साथ है जिनके खिलाफ ये ताउम्र विरोध की राजनीति करते रहे है। अब महागठबंधन के साथ आने पर बहुत कुछ बदलाव तो आयेगा। उप चुनाव का ही परिणाम देख लें जहां नीतीश कुमार के राजद से हाथ मिलाने के बाद कई बूथों पर कुर्मी वोटरों से हाथ धोना पड़ा। सच्चाई भी यही है कि राजद कभी भी जदयू का नेचुरल एलायंस नहीं रहा है।’