कालूपहाड़ी में कलश यात्रा के साथ सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ हुआ
फतेहपुर
भव्य एवं पारंपरिक वेश में मंगलवार से फतेहपुर प्रखंड अंतर्गत खामारवाद पंचायत के कालूपहाड़ी गाँव में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा अनुष्ठान के तहत कलश यात्रा गाजे-बाजे के साथ निकाली गई । तिलाकी धार्मिक ठाकुर पोखर में पुजारी त्रिलोचन्द्र पाण्डेय द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कलश पूजन कराई। इसके बाद 351 महिलाओं ने पोखर से कलश में पवित्र जल उठाया और धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो और जयकारों लगाकर कलश यात्रा बजरंगवली मंदिर परिसर से शुरू हुई और काली मंदिर,दुर्गा व गाँव के गली से होते हुए वापस मंदिर पहुंची। इसी दौरान यात्रा में 351 कन्यों और महिला श्रद्धालु पीत वस्त्र पहन कर व सिर पर कलश धारण कर चल रही थी। और इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं और वैष्णवों ने भक्ति में लीन होकर हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे,जय भारत माता,जय श्रीकृष्ण और राधारानी की जय जैसे जयघोष लगाए। इसी मौके पर गाजे-बाजे और भजनों पर भक्त झूमते रहें और रंग गुलाल उड़ते रहें। इस क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय हो उठा और जयकारों का गुंजायमान होता रहा। पुजारी के द्वारा ठाकुर पोखर से कलश में पवित्र जल भरकर वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार विधिपूर्वक कलश स्थापना की। इसी दौरान पश्चिम बंगाल के नवद्धीप (नदिया) धाम के कथावाचाक श्याम सुंदरचक्रवर्ती महाराज एवं पुजारी के नेतृत्व में कथा आयोजन स्थल से पवित्र जलस्त्रोत से जल भरने के साथ शुरू हुई और कलश यात्रा में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चों भी शामिल रहीं। पवित्र जलस्त्रोत ठाकुर पोखर से कलश को भर कर लाने के बाद कथा आयोजन स्थल पर धार्मिक विधि एवं मंत्रोच्चरण के साथ स्थापित किया गया। आरती के साथ शुरू किए गए श्रीमद् भागवत कथावाचक श्याम सुंदर चक्रवर्ती महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम इसकी महिमा से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि विश्व में सभी कथाओं में ये श्रेष्ठ मानी गई है। जिस स्थान पर इस कथा का आयोजन होता है, वो तीर्थ स्थल कहलाता है। इसका सुनने एवं आयोजन कराने का सौभाग्य भी प्रभु प्रेमियां को ही मिलता है। ऐसे में अगर कोई दूसरा अन्य भी इसे गलती से भी श्रवण कर लेता है, तो भी वो कई पापों से मुक्ति पा लेता है। इसलिए सात दिन तक चलने वाली इस पवित्र कथा को श्रवण करके अपने जीवन को सुधारने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। अगर कोई सात तक किसी व्यवस्तता के कारण नहीं सुन सकता है, तो वह दो तीन या चार दिन ही इसे सुनने के लिए अपना समय अवश्य निकालें। तब भी वो इसका फल प्राप्त करता है, क्योंकि ये कथा भगवान श्री कृष्ण के मुख की वाणी है, जिसमें उनके अवतार से लेकर कंस वध का प्रसंग का उल्लेख होने के साथ साथ इसकी व्यक्ति के जीवन में महत्ता के बारे में भी बताया गया है। इसके सुनने के प्रभाव से मनुष्य बुराई त्याग कर धर्म के रास्ते पर चलने के साथ साथ मोक्ष को प्राप्त करता है। चक्रवर्ती महाराज ने बताया कि इस कथा को सबसे पहले अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने सुना था, जिसके प्रभाव से उसके अंदर तक्षक नामक नाग के काटने से होने वाली मृत्य़ु का भय दूर हुआ और उसने मोक्ष को प्राप्त किया था। मौके पर सैकड़ों ही संख्या में ग्रामीणों एवं श्रद्धालु उपस्थित थे ।