जमशेदपुर:भाजपा में हाशिए पर भूमिहार :भाग 1
देवानंद सिंह
प्रधानमंत्री मोदी हैट्रिक की ओर कदम बढ़ा चुके हैं विपक्ष के पास कोई चारा नहीं बचा है चुनाव के समय कितनी भी बातें हो परंतु चुनावी राजनीति में जातीय राजनीति की अहम भूमिका होती है राष्ट्रीय राजनीति में धीरे-धीरे अगड़ों की भूमिका गौण होती जा रही है खासकर भूमिहार जाति की पहले हम इस कड़ी को आगे बढ़ने से पहले जमशेदपुर भाजपा की बात करेंगे फिर बात होगी कांग्रेस की
चुनावी वर्ष में प्रवेश करते ही जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी अपने अधिकतम तापमान की ओर बढ़ रहा है भाजपा हर जगह पहले गोल मारकर परिणाम अपनी ओर खींचने में अग्रसर दिख रही है चाहे वह प्रत्याशी घोषित करने का मामला हो या चुनावी प्रबंधन हेतु बैठक करने का इसके पीछे खड़ी मातृ संगठन आरएसएस भी कहा चुकने वाली है वह भी मैदान में खुलकर आ गई है परंतु जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है कार्यकर्ताओं का रोष भी साफ झलकने लगा है चर्चाओं का दौर जारी है।
जिम्मेदारी या दायित्व पाने की होड़ अपने चरम सीमा पर है राजनीति को कभी सामाजिक या जातीय ताना बाना से अलग नहीं किया जा सकता अतः चर्चा है कि प्रत्याशी संयोजक और प्रभारी सभी ओबीसी श्रेणी से आते हैं इसका दबी जुबान से विरोध होने पर जिला अध्यक्ष ब्राह्मण जाति से दे दी गई परंतु नये जिलाध्यक्ष सुधांशु ओझा कुछ सोच समझ पाते, ओबीसी वर्ग की तिकड़ी ने प्रबंध समिति बना डाली (हालांकि अभी होल्ड पर है)
सालों साल पार्टी कार्यों में मेहनत करने वाले जिला पदाधिकारी या कार्यकर्ता हाशिए पर चले गए और गणेश परिक्रमा करने वाले कार्यकर्ता अपने को समिति में पाकर खुश हो गए दबी जुबान से कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की चर्चा चौक चौराहे पर चर्चा का विषय बनने लगा है बात केवल कार्यकर्ताओं की नहीं है जातीय समीकरण पर भी नजर अगर डालें तो साफ-साफ दिखेगा कि भूमिहार जाति के लोग जो हमेशा राजनीति का केंद्र बिंदु हुआ करते थे आज के दौर में पिछड़ रहे हैं भाजपा के परम्परागत वोटर होने के बावजूद इस जाति के कार्यकर्ताओं को घोर अपमान का सामना करना पड़ रहा है।
लोकसभा में घोषित प्रत्याशियों की सूची में एक भी प्रत्याशी भूमिहार जाति से नहीं है जबकि झारखंड में भूमिहार जाति की संख्या कई लोकसभा को प्रभावित करते हैं।
झारखंड संगठन में भी केवल एक नाम लेने के लिए है उसी को जारी रखते हुए प्रबंध समिति में दो नामों को डाला गया है। (अभी होल्ड )
एक दिन पहले बने पदाधिकारी को समिति में स्थान मिल जाता है पर भूमिहार होने के कारण वर्षों से संगठन कार्य कर रहे पदाधिकारी को चुनावी कार्य करने के योग्य नहीं समझा जाता।
जीत की हैट्रिक लगाने का प्रयास करने वाले विद्युत वरण महतो को इन सब घटनाओं पर नजर रखकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि नाम नहीं छापने के सर्त पर एक कार्यकर्ता ने कहा कि आधारहीन नेताओं के चंगुल में घिरे सांसद को भगवान ही बचाए ।
जारी