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    Home » क्या संघ और बीजेपी के रिश्तों में आने लगा है बदलाव ?
    Breaking News Headlines संपादकीय

    क्या संघ और बीजेपी के रिश्तों में आने लगा है बदलाव ?

    Devanand SinghBy Devanand SinghMarch 30, 2025No Comments5 Mins Read
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    क्या संघ और बीजेपी के रिश्तों में आने लगा है बदलाव ?
    देवानंद सिंह
    भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का संबंध हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। दोनों के बीच की जटिलता और सहजीवी रिश्ते की गतिशीलता पर समय-समय पर चर्चा होती रही है। संघ को बीजेपी का ‘अभिभावक’ माना जाता है, जो पार्टी के हर महत्वपूर्ण फैसले में अपनी मौजूदगी महसूस कराता है, लेकिन क्या इस संबंध में कुछ बदलाव आ रहे हैं? क्या संघ और बीजेपी के बीच अब तक कोई समझौता नहीं हो पाया है? यह सवाल आजकल राजनीतिक गलियारों में गरमाया हुआ है, खासकर बीजेपी अध्यक्ष पद के चुनाव में हो रही देरी को लेकर।

    बीजेपी अध्यक्ष पद का चुनाव जब से टला है, राजनीतिक हलकों में इस पर चर्चा और कयास तेज़ हो गए हैं। आमतौर पर पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव समय पर होता है, लेकिन इस बार कुछ विशेष कारणों से यह चुनाव टलता जा रहा है। इस देरी के पीछे एक प्रमुख कारण यह माना जा रहा है कि संघ और बीजेपी के बीच किसी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। संघ के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबाले ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि बीजेपी के आंतरिक मामलों में संघ कोई हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन इसके बावजूद दोनों के बीच इस चुनाव को लेकर मंथन चल रहा है। संघ की भूमिका हमेशा से बीजेपी के लिए मार्गदर्शन जैसी रही है, लेकिन अब बीजेपी की ताकत और स्वतंत्रता इतनी बढ़ चुकी है कि वह अपनी दिशा खुद तय करती है।

    बीजेपी के भीतर चुनावी संगठन से जुड़ी प्रक्रियाओं के चलते अध्यक्ष पद पर चुनाव में देरी हुई है, लेकिन इसकी वजह केवल तकनीकी ही नहीं है। संघ की पसंद-नापसंद और नामों पर विचार विमर्श, ये सभी सवाल बीते कुछ समय से बीजेपी के लिए चुनौती बने हुए हैं। संघ की नज़रें हमेशा बीजेपी की कार्यशैली और नीतियों पर होती हैं, लेकिन अब बीजेपी में यह तर्क भी सामने आ रहा है कि पार्टी का आकार बड़ा हो चुका है, और उसकी ताकत सिर्फ संघ पर निर्भर नहीं रह गई है।

    जब दत्तात्रेय होसबाले से बीजेपी के पिछले 11 साल के शासन के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब था कि आंकलन देश के लोगों ने किया है। संघ देश से अलग नहीं है। यह बयान संघ के राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें वह पार्टी की नीतियों पर बारीकी से नजर रखता है, लेकिन उसे निष्कलंक रूप से आलोचना करने से भी बचता है। होसबाले ने यह स्पष्ट किया कि यदि सरकार से कोई बड़ी चूक होगी, तो संघ उसे सामने लाएगा, लेकिन वर्तमान में उनकी राय यह है कि सरकार के कार्य ठीक चल रहे हैं।

    इससे यह भी स्पष्ट होता है कि संघ और बीजेपी का रिश्ते एकतरफा नहीं हैं। संघ के पास एक तंत्र है, जहां सरकार की गतिविधियों पर समय-समय पर चर्चा की जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संघ बीजेपी के हर निर्णय में भागीदार होता है या उसकी नीतियों को निर्धारित करता है। हाल ही में बेंगलुरु में आयोजित आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की बैठक में जब संघ से बीजेपी से जुड़े सवाल पूछे गए, तो संघ के प्रतिनिधियों ने सावधानी से जवाब दिए। संघ की यह राजनीति सतर्कता को दर्शाती है कि संघ अब अपने और बीजेपी के रिश्ते को अधिक सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं करना चाहता। जब सवाल बीजेपी के अभिभावक की भूमिका को लेकर उठते हैं, तो संघ इसका सटीक तरीके से जवाब देता है।
    संघ और बीजेपी का रिश्ता कभी पूरी तरह से निर्भरता का नहीं रहा। संघ को बीजेपी के मुद्दों में सीधा दखल देने का अधिकार नहीं है, लेकिन इसके बावजूद दोनों के बीच एक सहजीवी रिश्ता स्थापित हुआ है। संघ अपने स्वयंसेवकों के जरिए बीजेपी को चुनावों में समर्थन देता है, और बीजेपी की सफलता में संघ की ज़मीनी कड़ी का बड़ा हाथ है। यही कारण है कि दोनों एक दूसरे के बिना काम नहीं कर सकते।

    हालांकि, यह सच है कि बीजेपी अब पहले से अधिक स्वतंत्र हो चुकी है, और उसकी ताकत केवल संघ पर निर्भर नहीं है। पार्टी की कार्यशैली और नीति निर्धारण में संघ का योगदान जितना पहले था, अब उतना नहीं रह गया है, लेकिन दोनों के बीच यह रिश्ता इस समय इस पर निर्भर करता है कि कितनी स्वतंत्रता और कितनी सहमति एक-दूसरे को दी जाती है।
    समय-समय पर संघ और बीजेपी के नेताओं के बयानों से यह साफ होता है कि दोनों के रिश्ते में उतार-चढ़ाव आए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच सार्वजनिक मुलाकातों में जो खामोशी रही है, वह भी इस बात को दर्शाती है कि दोनों के रिश्तों में अभी भी कुछ मुद्दों पर संकोच हो सकता है, लेकिन संघ और बीजेपी का यह रिश्ता पूरी तरह से टूटने वाला नहीं है, क्योंकि दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता है।

    बीजेपी के बढ़ते आकार और शक्ति के बावजूद, संघ अपनी ताकत बनाए हुए है और वह राजनीतिक फैसलों में अपने स्थान की पहचान नहीं खो सकता। इसलिए, आने वाले समय में दोनों के रिश्ते में बदलाव हो सकता है, लेकिन यह बदलाव संघर्ष के रूप में नहीं होगा, बल्कि यह एक समझौते और बातचीत से समाधान पाएगा। संघ और बीजेपी का संबंध एक परिवार की तरह है। जैसे परिवार में कभी बहस होती है और कभी मतभेद होते हैं, वैसे ही इन दोनों के बीच भी मतभेद होते रहेंगे। हालांकि, अंत में यह परिवार एकजुट रहता है, और यही संघ और बीजेपी का रिश्ता भी होगा।

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