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    Home » योग की अंतराष्ट्रीय स्विकार्यता भारत के लिए गौरव की बात
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    योग की अंतराष्ट्रीय स्विकार्यता भारत के लिए गौरव की बात

    Devanand SinghBy Devanand SinghJune 20, 2022No Comments4 Mins Read
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    योग की अंतराष्ट्रीय स्विकार्यता भारत के लिए गौरव की बात

    मंडल पुरी

    21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाएं जाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र द्वारा के द्वारा तब लिया गया, जब सयुक्त राष्ट के समक्ष भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा इसके व्यापक महत्व को देखते हुए इस प्राचीन प्रचलित परंपरा को जिसका प्रदुर्भाव भारत वर्ष में हुआ था इस विद्या के जनक भारतीय ऋषि मुनि रहे हैं !
    इसे एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के उद्देश्य के साथ ही इसे वैश्विक पटल पर स्थापित करने के उद्देश्य से योग को अंतराष्ट्रीय मान्यता देकर वर्ष मे एक दिन योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव भारत के द्वारा लाया गया था,
    क्योंकि योग एक ऐसा विषय है जिसका कोई धर्म विशेष से कोई नाता नही है बस इसका महत्व एक मनुष्य के जीवन और उसकी शारीरिक विकास और स्वास्थ से जुड़ा हुआ है!

    और योग पुरे विश्व में किसी न किसी रूप में हर देश और हर समाज का अंग है!
    अगर हम अपने या किसी भी संप्रदाय का पूजन विधि जैसे सनातन मे या अन्य समुदाय में कई ऐसे पूजन विधि हैं जो कहीं न कहीं उसका ऐसा वैज्ञानिक कारण हैं जो हमारे शरीर के संरचना और उसपर उस क्रिया के बाद पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव से जुड़ा हुआ है !
    ये सभी क्रियाओं का खोज, प्रयोग और परिणाम प्राचीन काल में ही हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा खोज लिया गया है! यह हमारे ऋषि मुनियों का कठोर साधना का प्रतिफल है!

    स्पष्ट है की जिस विषय को विज्ञान आज समझ पाया उसे हमारी परंपरा और प्राचीनता ने बहुत पहले ही गर्भ में छिपा रखा था जो आज हम सब के सामने है!

    जिसका नाम योग विद्या है!

    फिर भी कुछ बन्धु इस स्वास्थ जनक योग को भी विवादित बनाने का प्रयास करते रहते हैं!
    और अक्सर इसे धर्म विशेष यानी सनातन धर्म से ही जोड़ने का प्रयास करते रहते हैं जो की बिल्कुल गलत है!

    हमारी खोज जुड़ाव आदि बातों से यह प्रमाणित है की योग का जनक निश्चित ही हमारी परंपरा ही रहा है इसका उद्भव सनातन धर्म से ही है लेकिन इसे केवल सनातन धर्म से ही जोड़कर हम इसका महत्व को कमतर कर रहे हैं!

    इसे व्यापक बनाना है तो इसे धर्म के बंधन से अलग मानवता और इसके रक्षार्थ बंधन में जोड़ना होगा!

    इस योग के धागे में हमें सभी को पिरोना होगा! और काफी हद तक भारत इसमें कामयाब भी रहा है!

    वैसे योग को धार्मिक रंग देकर योग का विरोध करने वालो की कमी नही थी हमारे समाज और देश में भी!

    उनका ऐसा मानना था की सूर्य नमस्कार जैसी क्रिया या योग की की क्रिया उनकी भावनाओं और धर्म के अनुकूल नही है लेकिन “जब इसे अंतराष्ट्रीय योग दिवस के रूप मे मान्यता मिला उस समय पुरे संयुक्त राष्ट्र का व्यापक समर्थन भी इस प्रस्ताव पर मिला!

    कई इस्लामिक देशों ने भी इसका समर्थन किया , ये काफी है उनलोगों के लिए जो लोग इसके लाभ को दरकिनार करते हुते, इसमे धार्मिक रंग ढूंढने में लगे थे!

    साथ ही भारत वर्ष के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा लाये गए प्रस्ताव पर इस तरह से एकतरफा वैश्विक समर्थन मिलना कहीं न कहीं सयुंक्त राष्ट्र के पटल पर निश्चित ही भारत की कूटनीतिक और नैतिक रूप से बड़ी जीत के रूप में देख सकते थे!
    2014 के तत्कालीन परिस्थितियों में भारत वर्ष योग दिवस के माध्यम से पुरे विश्व में अपनी सांस्कृतिक और वैदिक प्राचीन महत्व पर एक संदेश देने में कामयाब हो गया!
    साथ ही अपना प्राचीन परंपरा का झण्डा ऊंचा करने में कामयाब हो गया!
    और अपनी प्राचीनकालीन महत्व के सार्थकता को साबित भी किया!

    योग विद्या की जननी भारत ही रही है उसे विश्व ने कैसे स्वीकार किया है! सर्वविदित है!

    हम सभी लोगों से यह आग्रह करते हैं और अपेक्षा रखते हैं,
    हैं की आप योग के महत्व को समझे और इसके लाभ और इसके अभ्यास को अपने जीवन का अंग बनाने का प्रयास करेंi
    हम निरोग तो रहेंगे हम अपनी वैदिक धरोहर को भी बचाने में कामयाब हो जायेंगे, पुरी तरह से भारत वर्ष के सभी विद्यालयों में योग की शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए और लोगों को भी आगे आकर योग को आत्मसात करना चाहिए, इसके महत्व को पहचानना चाहिए और इसे अपने जीवन में उतारता चाहिय

    लेखक मंडल पुरी ,सामाजिक कार्यकर्ता हैं

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