आतंकवाद के विरुद्ध भारत की निर्णायक प्रतिक्रिया
देवानंद सिंह
पाकिस्तान की शह पर जिस तरह आतंकियों ने पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों की हत्या की थी, भारत ने जिस तर्ज पर उसके जवाब में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया है, उससे पाकिस्तान को यह सबक लेना ही होगा कि उसे हर हाल में आतंक की फैक्ट्री चलाना बंद करना होगा।
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से जो माकूल उत्तर दिया है, वह अत्यंत जरूरी था। इस सैन्य कार्रवाई ने न केवल सीमा पार स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि यह संदेश भी स्पष्ट कर दिया कि भारत अब केवल जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा, बल्कि अग्रसक्रिय रणनीति अपनाएगा।
यह ऑपरेशन 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक की कड़ी में तीसरा बड़ा सैन्य कदम है, जिसने स्पष्ट रूप से भारत की नई रक्षा नीति को उजागर किया है कि आतंक का स्रोत जहां भी है, वहीं चोट दो। ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान व दुनिया को एक साथ कई स्तरों पर संदेश दिया है। भारत अब केवल हमलों के बाद कार्रवाई नहीं करेगा, बल्कि संभावित खतरों को खत्म करने के लिए पहले कदम उठाएगा, इससे पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई में मौजूद आतंकी ठिकानों की सुरक्षा कमजोर हुई है। इस ऑपरेशन से दुनिया को यह संदेश गया कि भारत ने सैन्य कार्रवाई के बावजूद संयम और सटीकता का प्रदर्शन किया। इससे उसकी वैधता बनी रहती है, खासकर तब जब वह आतंक को सीमा पार से पनपने की शिकायत करता है।
वहीं, आंतरिक मोर्चे पर भारत के नागरिकों और सैनिक बलों में एक भरोसा उत्पन्न हुआ है कि देश अब रक्षात्मक नहीं, आक्रामक नीति अपनाकर राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है। अमेरिका, फ्रांस और इज़रायल जैसे देशों ने इस ऑपरेशन के प्रति सकारात्मक संकेत दिए हैं, जबकि चीन और तुर्की जैसे देशों ने पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का पक्ष लिया पर खुला समर्थन नहीं किया, जो बदलती भूराजनीतिक परिस्थिति का संकेत है।
यह ऑपरेशन रणनीतिक रूप से प्रभावी रहा, परंतु यह मान लेना कि आतंकवाद इससे पूर्णतः समाप्त हो जाएगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान दोहरी नीति वाला देश है। वह एक ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को आतंक से पीड़ित देश बताता है, दूसरी ओर उसकी सेना और ISI आतंकी संगठनों को संरक्षण देते हैं। जब तक यह तंत्र सक्रिय रहेगा, आतंकी ढांचे का पुनर्निर्माण होता रहेगा।
ऑपरेशन सिंदूर सफल भी रहा और सटीक भी, लेकिन अभी आतंक का पूरी तरह खात्मा करना बाकी है। बालाकोट के बाद जैश-ए-मोहम्मद फिर सक्रिय हो गया था, जिससे यह सिद्ध होता है कि एकल कार्रवाई से स्थायी समाधान संभव नहीं। आतंक पर हर तरफ से चोट पहुंचाना आवश्यक हो जाता है, इसीलिए भारत को सैन्य दृष्टिकोण से लंबी अवधि की ‘Counter-Insurgency Strategy’ अपनानी होगी, जिसमें लगातार निगरानी, खुफिया कार्रवाई और जरूरत पड़ने पर सीमित सैन्य हस्तक्षेप शामिल हो। वहीं, Hybrid warfare (साइबर, सायकोलॉजिकल और ड्रोन आधारित) की ओर भारत को और तेजी से बढ़ना होगा। सीमा पर तकनीकी बाड़ और गश्त को अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित करना आवश्यक होगा।
कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद का राज्य प्रायोजक घोषित कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और दबाव बढ़ाना होगा। FATF (Financial Action Task Force) में पाकिस्तान की निगरानी की अवधि को और कठोर बनवाया जा सकता है।
अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशियाई देशों के साथ रणनीतिक भागीदारी के माध्यम से पाकिस्तान की ‘सामरिक गहराई’ को और कमजोर करना किया जा सकता है। आंतरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से जम्मू-कश्मीर में आतंकी नेटवर्क की आर्थिक कमर तोड़ने हेतु NIA व प्रवर्तन निदेशालय को और अधिकार देना आवश्यक है।
भारत ने 1999 में करगिल युद्ध, 2001 संसद हमले, 2008 मुंबई हमलों के बाद भी सैन्य विकल्पों पर विचार किया था, परंतु रणनीतिक संयम बरता गया, लेकिन 2016 के बाद से भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि ‘रणनीतिक सब्र’ की जगह ‘सक्रिय प्रतिरोध’ ने ले ली है।
ऑपरेशन सिंदूर इसी नीति का ताजा उदाहरण है, जो भारत के सैन्य एवं कूटनीतिक सोच में हुए परिवर्तन को दर्शाता है, इससे भारत ने पाकिस्तान और आतंक के बीच सीधा संबंध स्थापित करते हुए अपनी भू-राजनीतिक हैसियत को और दृढ़ किया है।
ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद के विरुद्ध भारत की आक्रामक नीति का परिचायक है। इसने न केवल आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया, बल्कि भारत की सैन्य दक्षता को भी बखूबी प्रदर्शित किया, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब केवल ‘सहन’ नहीं करेगा। भारत को आगे भी सतत और बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी, जिसमें सैन्य, कूटनीतिक और साइबर पहलुओं को समन्वयित किया जाए। जब तक आतंक का विचार, वित्त और समर्थन संरचना मौजूद है, तब तक खतरा बना रहेगा। अतः भारत को केवल हथियार नहीं, विचारधारा के स्तर पर भी संघर्ष करना होगा। ऑपरेशन सिंदूर केवल एक शुरुआत है, निर्णायक विजय हेतु यह संघर्ष दीर्घकालीन और सतत हो।