देवानंद सिंह
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 7 मई यानी आज बुधवार को मॉक ड्रिल करने के निर्देश दिए हैं। पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच इसे काफ़ी अहम माना जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल, केवल एक आपदा प्रबंधन अभ्यास भर नहीं है, बल्कि यह भारत और पाकिस्तान के बीच गहराते तनाव और संभावित सैन्य टकराव की आशंकाओं की गंभीर पृष्ठभूमि में एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक कदम है। गृह मंत्रालय द्वारा 5 मई को जारी निर्देश में सिविल डिफ़ेंस, होम गार्ड्स, एनसीसी, एनएसएस और युवाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जो दर्शाता है कि सरकार इस अभ्यास को केवल एक औपचारिकता न मानकर संभावित संकट की तैयारी के रूप में ले रही है।
यह मॉक ड्रिल ऐसे समय में हो रही है, जब पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए घातक हमले में 26 नागरिकों की जान गई है और इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों पर डाली जा रही है। इसके बाद से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद ठप हो चुका है और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर आर्थिक व सैन्य मोर्चे पर कई निर्णय लिए जा चुके हैं। इस ड्रिल का मक़सद न सिर्फ़ नागरिक सुरक्षा तंत्र की तैयारियों को परखना है, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश भी है कि देश किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए सजग और सक्रिय है।
गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के तहत यह मॉक ड्रिल ग्रामीण और शहरी, दोनों स्तरों पर आयोजित की जाएगी। इसमें हवाई हमलों की चेतावनी, बिजली कटौती के दौरान व्यवहार, लोगों की सुरक्षित निकासी और आपात स्थिति में कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की कार्यप्रणाली को परखा जाएगा, हालांकि ऐसे अभ्यास तकनीकी रूप से ज़रूरी हैं, परंतु नागरिकों के मन में इसके कारण भय और असुरक्षा की भावना भी उत्पन्न हो सकती है, विशेषकर तब जब मीडिया में युद्ध की आशंकाओं को बल मिल रहा हो।
इसका एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है, जनता को तैयार करने के साथ-साथ शत्रु को यह संकेत देना कि भारत किसी भी परिदृश्य से निपटने के लिए पूर्णतः तैयार है। यह ‘साइकोलॉजिकल डिटरेंस’ का एक साधन भी है, जिससे दुश्मन की किसी भी दुस्साहसी योजना पर अंकुश लगाया जा सके। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न केवल एक मानवीय त्रासदी थी, बल्कि यह भारत-पाक संबंधों में निर्णायक मोड़ भी साबित हुआ। इस हमले ने राजनीतिक नेतृत्व, सुरक्षा एजेंसियों और आम नागरिकों को एक बार फिर यह याद दिला दिया कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा देश पर आंख उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने की बात, इस भावनात्मक क्षण में जनमत को मजबूत करने की रणनीति के रूप में सामने आई है।
भले ही, उनके भाषण में पाकिस्तान या हमले का प्रत्यक्ष उल्लेख न हो, लेकिन उनके शब्दों में निहित संकेत स्पष्ट हैं कि भारत अब अधिक आक्रामक नीति अपनाने की ओर अग्रसर है, विशेष रूप से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनावी वर्ष में ‘राष्ट्रवाद’ की भावना को केंद्र में रखा गया हो। इस बार भारत ने पारंपरिक डिप्लोमैटिक निंदा से आगे जाकर कई ठोस और प्रत्यक्ष कार्रवाई की है। सिंधु जल समझौते को निलंबित करना एक ऐतिहासिक और अप्रत्याशित कदम है। भारत ने पाकिस्तान से सभी प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, डीजीएफटी और डीजी शिपिंग के आदेशों ने इसे और कठोर बना दिया है। यह सिर्फ़ आर्थिक प्रतिबंध नहीं हैं, बल्कि यह पाकिस्तान को आर्थिक और भू-राजनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की स्पष्ट कोशिश है।
इसके प्रत्युत्तर में पाकिस्तान ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप कई कदम उठाए हैं, जैसे भारतीय एयरलाइनों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद करना, वाघा सीमा सील करना और भारतीय नागरिकों के वीजा निलंबित करना। यह साफ़ है कि इस बार दोनों देशों के बीच तनाव केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धरातली कार्रवाई में भी झलक रहा है। भारत-पाक तनाव केवल द्विपक्षीय विषय नहीं रह गया है, इसका प्रभाव क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ रहा है। कश्मीर के एलओसी से सटे इलाकों में मदरसों को खाली कराना, पाकिस्तान द्वारा किया गया एक संकेत है कि वे भी टकराव की आशंका को गंभीरता से ले रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका इस स्थिति में निर्णायक हो सकती थी, लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य, जहां अमेरिका, चीन और रूस सभी अपने-अपने घरेलू व क्षेत्रीय मुद्दों में उलझे हैं, वहां भारत और पाकिस्तान को अपने निर्णयों और प्रतिक्रियाओं के लिए अकेला छोड़ देता है।
भारत में सिविल डिफ़ेंस लंबे समय तक एक निष्क्रिय प्रणाली रही है, जिसे केवल औपचारिक अभ्यासों तक सीमित रखा गया, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में इसकी भूमिका फिर से प्रासंगिक हो उठी है। किसी भी संभावित युद्ध, साइबर अटैक, या आतंकी हमले की स्थिति में नागरिकों की सुरक्षा, व्यवस्थित निकासी, और आपदा के बाद की बहाली में यह तंत्र मुख्य भूमिका निभा सकता है।
मॉक ड्रिल के माध्यम से इन संस्थानों का व्यावहारिक मूल्यांकन होगा, जो यह तय करेगा कि भविष्य में इनकी संरचना को और सशक्त करने की आवश्यकता है या नहीं। इसके साथ ही इसमें छात्रों, युवाओं और स्वयंसेवकों की भागीदारी उन्हें राष्ट्रीय आपातकालीन व्यवस्थाओं के प्रति जागरूक और उत्तरदायी बनाती है।
भारत सरकार द्वारा आयोजित की जा रही यह मॉक ड्रिल, तकनीकी दृष्टि से सुरक्षा अभ्यास ज़रूर है, लेकिन इसका व्यापक राजनीतिक और कूटनीतिक अर्थ भी है। यह भारत की सुरक्षा तैयारियों का आंतरिक परीक्षण तो है ही, पर साथ ही साथ यह एक चेतावनी भी है, न केवल पाकिस्तान को, बल्कि पूरी दुनिया को कि भारत अब किसी भी चुनौती का ‘प्रतिक्रिया’ में नहीं, बल्कि ‘पूर्व-सक्रिय’ होकर सामना करेगा। ऐसे समय में, जबकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने-अपने आंतरिक राजनीतिक दबावों से भी जूझ रहे हैं, ऐसी मॉक ड्रिलें एक रणनीतिक संकेत बन जाती हैं। एक ओर जहां वे जनता को सुरक्षा के लिए प्रेरित करती हैं, वहीं दूसरी ओर ये राजनयिक और सैन्य स्तर पर विरोधी को मनोवैज्ञानिक दबाव में भी डालती हैं, इसलिए 7 मई की मॉक ड्रिल को केवल एक साधारण अभ्यास समझना भूल होगी। यह उस व्यापक रणनीतिक परिवर्तन का प्रतीक है, जिसमें भारत अब ‘रणनीति के मौन’ के स्थान पर ‘दृढ़ता की उद्घोषणा’ को प्राथमिकता देता दिखाई दे रहा है।