पर्यावरण है तो हम हैं
डॉक्टर कल्याणी कबीर
पर्यावरण से मनुष्य का अभिन्न संबंध रहा है । वेदों में कहा गया है कि “पंचतत्व यही अधम शरीरा” यानि हमारा शरीर प्रकृति के पाँच तत्व से मिलकर बना है । क्षिति , जल, पावक , गगन, समीरा — इनसे ही मनुष्य का निर्माण हुआ है । अपने भोजन, पोशाक और आवास के लिए भी हम प्रकृति पर ही निर्भर हैं । इस सच्चाई के बावजूद हम पर्यावरण के संरक्षण की बात को नजरअंदाज कर रहे हैं । यह भौतिकवादी युग और स्वार्थ की पराकाष्ठा है कि हम अपने ही हाथों से अपने भविष्य की हरीतिमा को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं।
हम सबों ने एक क्रूर अनुभव किया है कोविद की विभीषिका के दौरान और उसे दौर ने यह बात हम सबों के समक्ष प्रमाणित कर दी है कि हम जितना प्रकृति और पर्यावरण के नजदीक रहेंगे हमारे जीवन की सुरक्षा उतनी ही सुनिश्चित होगी।
कृत्रिम वातावरण और अप्राकृतिक चीजें हमारी सेहत के साथ तारतम्य नहीं बैठा पाती हैं जबकि जीवन के रोजमर्रा की जरूरत की चीजें जितनी प्राकृतिक होंगी अपने शुद्धतम रूप में होंगी । उनके सेवन से हमारी आयु और हमारा स्वास्थ्य समृद्ध होगा।
देखा जाये तो हमारी संस्कृति की विशेषता ही यही है कि हम प्रकृति को भी साक्षात् ईश्वर मानकर उसकी पूजा करते हैं । सरहुल, कर्मा, छठ ,वटसावित्री पूजा इत्यादि कई ऐसे त्योहार हैं जहाँ प्रकृति के विभिन्न रूपों की हम आराधना करते हैं । प्राचीन काल की बात करें तो अग्नि, पहाड़, नदियाँ, वृक्ष इत्यादि को प्रत्यक्ष ईश्वर की तरह पूजा जाता था । कदाचित् पहले का मानव निरक्षर था पर समझदारी थी उसमें । उनकी विवेकशीलता उसे प्रकृति का सम्मान करने को प्रेरित करती थी । पर विडंबना यह है कि ऐसे इतिहास के वाहक होने के बाद भी आज हमसे पर्यावरण का साथ छूटता जा रहा है । इसके पीछे गलती हम मनुष्यों की ही है जिसने खुद के स्वार्थ से आगे देखना छोड़ दिया है । आज पर्यावरण संरक्षण के लिए हम अथक प्रयास कर रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि यह कोशिश नाकाफी है ।
दरअसल पिछले कुछ दशकों में समय काफी बदला है । ” गंगा तेरा पानी अमृत ” गुनगुनाने वाला समाज गंगा की लहरों में दुनिया भर की गंदगी प्रवाहित कर देता है । पहाड़ों और जंगलों का सफाया कर अट्टालिका तैयार किया जा रहा है ।
अपनी सुविधा के लिए प्लास्टिक का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है जो पर्यावरण के लिए बहुत ही हानिकारक है ।
अगर अतीत में झाँकें तो याद आती है जल से लबलबाती नदियाँ, लहलहाते खेत, स्वच्छ हवाओं की ताजगी, मिट्टी की उर्वरा शक्ति । पर ये सब अब प्रकृति के कैनवास पर धुंधली तस्वीर सी दिख रही है । मानव अपने स्वार्थ में इतना डूब चुका है कि पर्यावरण के दोहन शोषण में लगा है , ये भूलकर कि भविष्य में भी उसे और उसके बच्चों को पर्यावरण की जरूरत होगी । अपने उत्तराधिकारी के लिए हम धन – दौलत की वसीयत छोड़कर जा रहे है पर जीने के लायक पर्यावरण नहीं छोड़ रहे ।हमें इस सच्चाई को याद रखने की जरूरत है कि सिर्फ धन और तकनीकी सुविधा के बदौलत मानव समाज सुरक्षित नहीं रह सकता । आपके पास कितना भी अकूत संपत्ति हो आप पैसे को साँस लेने के लिए प्रयोग नहीं कर सकते न ही पैसे खाकर अपनी भूख – प्यास बुझा सकते हैं । मानव सभ्यता के लिए सबसे जरूरी चीज है प्रकृति का सानिध्य । खेतों से ज्यादा से ज्यादा उपज लेने की चाह में हम फसलों के लिए रसायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं जिससे भूमि की स्वाभाविक नमी कम होती जा रही है और उसकी ऊपज पर भी बुरा असर पड़ रहा है ।
कुछ त्योहार ऐसे हैं जो प्रकृति को ईश्वर के समकक्ष मानकर पूजते हैं पर कुछ त्योहार और हमारे रिवाज प्रकृति के खिलाफ भी हैं।होली के दौरान हर गली मुहल्ले में होलिका दहन करने के बजाय एक ही जगह होलिका जलाना पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से बेहतर होगा । दीपावली के रात की आतिशबाजी भी प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया करती है । साथ ही बारात के समय पटाखे जलाने का शौक भी वायु और ध्वनि को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता ।
प्रदूषण के बढ़ने से वातावरण गर्म होता जा रहा है । पर्वतों पर जमी बर्फ के पिघलने का खतरा है । ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरे विश्व के पर्यावरण पर संकट दिखाई दे रहा है ।
परिणामस्वरूप बाढ, सूखा, भूस्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदा के हम सभी शिकार हो रहे हैं । पर्यावरण के बदलने से एक दिन मानव समुदाय को भुखमरी का सामना भी करना पड़ सकता है । हमें अपनी तर्कहीन परंपराओं और इच्छाओं पर लगाम लगाने की जरूरत है । इससे पहले कि हमें पानी खरीद कर पीना पड़े । शुद्ध वायु के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदना पड़े, हमें सचेत हो जाना चाहिए । अन्तरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम के एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो बहुत जल्दी हमें इस सदी के सबसे भयावह मानवीय संकट से जूझना पड़ेगा । इस चैरिटी संस्था के अनुसार ये परिस्थिति मनुष्य के विकास और स्वास्थ्य दोनों पर ही असर डालेगा ।
इसलिए स्वार्थ के घेरे से निकल कर अब पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाना होगा । पौधरोपण की प्रक्रिया रूकनी नहीं चाहिए । फ्लैट में रहने वाले लोग भी यदि गमलों में छोटे – छोटे पौधे लगाकर रखें तो हरीतिमा का अहसास बना रहेगा । बच्चों के जन्म के समय पौधा लगाएँ और बच्चे में ऐसे संस्कार डालें कि वह आजीवन उस पौधे की देखभाल करे । साथ ही गाँव या पैतृक निवास पर यदि खेत खलिहान हो तो उसकी दशा सुधारें । खेत को खेत ही रहने दें ताकि आने वाली पीढ़ी खेती करने की विधि को जानें और सीखें । औषध पौधे को रोपना भी बहुत अच्छी पहल है । तुलसी, आँवला, नीम, पीपल, ओलाविरा , नींबू के पेड़ कई व्याधियों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं । तकनीकी दुनिया में भी पर्यावरण की महत्ता बरकरार होती है। हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते । कितना भी धन सम्पत्ति हम कमा लें पर भूख मिटाने के लिए अनाज की ही जरूरत होगी । साँस लेने के लिए ऑक्सीजन और प्यास बुझाने के लिए पानी की ही आवश्यकता होगी । इसलिए तरक्की के आसमान में भले ही ऊंची उड़ान भरें पर मिट्टी से भी बावस्ता रहें ।
डॉक्टर कल्याणी कबीर
प्रांत सचिव
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत
झारखंड प्रांत