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    Home » नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते
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    नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते

    Devanand SinghBy Devanand SinghMarch 31, 2025No Comments6 Mins Read
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    (घोर कलयुग की दस्तक)
    नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते

    समाज में कितना पतन बाकी है? यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है? महिला ने जेठ के साथ मिलकर अपने दो वर्ष के बेटे को मरवा दिया। पत्नी ने प्रेमी सँग मिलकर मर्चेंट नेवी मे अफसर पति के टुकड़े-टुकड़े किये। पिता ने नौकर से अपने बेटे की हत्या करवायी। माँ,बाप,भाई, दोस्त,पार्टनर को मारने की खबरें आम हैं। ऐसे अपराध यह दिखाते हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ चुकी है। अपराध और नैतिक पतन की ये घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं हमारी सामाजिक संरचना, पारिवारिक मूल्य और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर संकट है। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि नकारात्मक घटनाएँ समाचारों में ज़्यादा दिखाई देती हैं, क्योंकि वे लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। समाज में आज भी बहुत से लोग हैं जो प्रेम, सहयोग और नैतिकता से भरे हुए हैं। हमें ज़रूरत है कि हम अच्छाई को भी उतना ही महत्त्व दें और समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम करें। इस पतन के कारणों को समझकर समाधान निकालना ज़रूरी है—परिवारों में संवाद बढ़ाना, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना, नैतिक शिक्षा को मज़बूत करना और अपराध रोकने के लिए सख्त क़दम उठाना। हमें यह भी सोचना होगा कि हम किस तरह के मूल्यों को बढ़ावा दे रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसा समाज बना रहे हैं। समाज के पतन को पूरी तरह रोकना कठिन हो सकता है, लेकिन हम सब मिलकर इसे धीमा कर सकते हैं और सही दिशा में मोड़ सकते हैं।

    -डॉ. सत्यवान सौरभ

    आज के समय में जब हम समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर नज़र डालते हैं, तो चारों ओर अपराध, धोखा, हिंसा और नैतिक पतन की ख़बरें देखने को मिलती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि समाज घोर कलयुग के प्रभाव में प्रवेश कर चुका है। पारिवारिक सम्बंधों में विश्वास की कमी, नैतिक मूल्यों का ह्रास और भौतिक सुखों की अंधी दौड़ ने मानवीय संवेदनाओं को कमजोर कर दिया है। समाज में नैतिकता, रिश्तों की अहमियत और मानवीय संवेदनाएँ धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही हैं। हत्या, विश्वासघात, स्वार्थ, लालच और नैतिक पतन की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। यह देखकर ऐसा लगता है कि समाज एक अंधकारमय दौर की ओर बढ़ रहा है। यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है। ऐसे अपराध यह दिखाते हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ चुकी है। यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है। ऐसे अपराध यह दिखाते हैं कि समाज में मानसिक संतुलन, नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों में कितनी गिरावट आ चुकी है। समाज में जिस तरह से नैतिक पतन बढ़ रहा है, वह केवल अपराधों की संख्या नहीं बल्कि पारिवारिक और सामाजिक ताने-बाने के टूटने का संकेत भी देता है।

    समाज में रिश्तों की अहमियत धीरे-धीरे कम होती जा रही है और इसके कई कारण हो सकते हैं। पहले जहाँ रिश्तों में अपनापन, विश्वास और त्याग होता था, वहीं अब स्वार्थ, लालच और दिखावे ने उनकी जगह ले ली है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी और दोस्तों के बीच भी आजकल स्वार्थ और लालच हावी होता जा रहा है। परिवार, जो पहले प्रेम और सहयोग का केंद्र हुआ करता था, अब झगड़ों और आपसी मतभेदों का शिकार बनता जा रहा है। छोटी-छोटी बातों पर हत्या, बलात्कार, लूटपाट और धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। परिवार के सदस्य तक एक-दूसरे के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं। लोग नैतिकता और ईमानदारी को छोड़कर किसी भी तरह से धन और सफलता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं, चाहे उसके लिए उन्हें किसी का शोषण ही क्यों न करना पड़े। पहले लोग जीवन में धैर्य रखते थे, कठिनाइयों को सहन करते थे, लेकिन आजकल गुस्सा और अधीरता लोगों पर हावी हो गई है। छोटे-छोटे विवाद हिंसक रूप लेने लगे हैं। धर्म केवल दिखावे का साधन बनता जा रहा है, जबकि नैतिकता और ईमानदारी की क़ीमत घटती जा रही है। लोग दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन ख़ुद सही राह पर नहीं चलते। पहले संयुक्त परिवार होते थे, जहाँ बुजुर्गों का मार्गदर्शन रहता था। लेकिन अब व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आधुनिकता के नाम पर पारिवारिक मूल्यों में कमी आ रही है। आर्थिक दबाव, रिश्तों में तनाव और व्यक्तिगत इच्छाओं के टकराव से लोग मानसिक रूप से अस्थिर हो रहे हैं, जिससे वे ग़लत फैसले लेते हैं। इंटरनेट पर हिंसा, अपराध और अनैतिकता को कहीं न कहीं सामान्य बना दिया गया है। लोग बिना सोचे-समझे चरम क़दम उठा लेते हैं। स्कूलों और परिवारों में बच्चों को सही और ग़लत का फ़र्क़ कम सिखाया जा रहा है। लालच, ईर्ष्या और व्यक्तिगत स्वार्थ बढ़ रहे हैं। अपराधी जानते हैं कि सजा मिलने में देरी होगी या बचने का रास्ता मिल जाएगा, जिससे अपराधों की संख्या बढ़ रही है।

    समाज में जो घटनाएँ हो रही हैं, उन्हें देखकर यही लगता है कि हम घोर कलयुग के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। जहाँ पहले रिश्ते, प्रेम, सम्मान और नैतिकता को महत्त्व दिया जाता था, वहीं अब स्वार्थ, लालच, क्रोध और हिंसा हावी होते जा रहे हैं। समाज में बढ़ते अपराधों को देखकर ऐसा लगता है कि इंसानियत, सहनशीलता और प्रेम धीरे-धीरे ख़त्म होते जा रहे हैं। लेकिन अगर परिवार, समाज और सरकार मिलकर सही क़दम उठाएँ, तो इस गिरावट को रोका जा सकता है। पारिवारिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने के लिए माता-पिता को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए, उन्हें नैतिक शिक्षा देनी चाहिए और सही-गलत का फ़र्क़ समझाना चाहिए। तनाव, अवसाद और गुस्से से जुड़ी समस्याओं को नज़रअंदाज न किया जाए। ज़रूरत हो तो थेरेपी और काउंसलिंग को अपनाया जाए। अपराधियों को कड़ी सजा मिले और कानूनी प्रक्रिया तेज़ हो, ताकि अपराधियों में डर बना रहे। सकारात्मक कहानियों और नैतिकता से जुड़े कंटेंट को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे समाज में अच्छे मूल्यों की प्रेरणा मिले। स्कूलों में नैतिक शिक्षा, सहानुभूति और सामाजिक मूल्यों पर ज़ोर दिया जाए। समाज में नैतिकता और इंसानियत बनाए रखने के लिए हम सबको अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। यह केवल सरकार या कानून का काम नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को अपने स्तर पर बदलाव लाने की ज़रूरत है।

    घोर कलयुग के इस समय में भी अगर हम अपने कर्मों को सही दिशा में रखें, तो यह अंधकार थोड़ा कम हो सकता है। समाज में नैतिकता और इंसानियत बनाए रखने के लिए हमें ख़ुद से शुरुआत करनी होगी। हम केवल सरकार और कानून व्यवस्था को दोष नहीं दे सकते, बल्कि हमें अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में बदलाव लाने होंगे। घोर कलयुग के इस समय में भी यदि हम अपने कर्मों को सही दिशा में रखें, तो समाज में अच्छाई का पुनर्जागरण संभव है। हमें यह तय करना होगा कि हम इस अंधकार में खो जाना चाहते हैं, या फिर अपने प्रयासों से रोशनी की एक नई किरण लाना चाहते हैं।

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