गाँधी जी एवं राष्ट्रवाद
झारखण्ड केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग ने ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला के क्रम में गाँधी एवं राष्ट्रवाद विषय पर व्याख्यान आयोजित किया। जिसमें वक्ता के रूप में पूर्व राष्ट्रीय महासचिव इंडियन सोसाइटी ऑफ गांधियन स्टडीज तथा स्प्रीचुअल एन्ड वैल्यू एजुकेशन अवार्ड से सम्मानित प्रोफेसर अनिल दत्त मिश्रा जी आमंत्रित रहे। व्याख्यान उद्घाटन में विभागाध्यक्ष तथा डीन डॉ आलोक कुमार गुप्ता ने गाँधी जी के विचारों के प्रति अपना दृष्टिकोण प्रकट किया। उसके बाद प्रो. अनिल दत्त मिश्रा जी ने व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए गाँधी जी के विचारों का एक संग्रह प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने हम पर आधिपत्य नही जमाया बल्कि हम लोगों ने उनको मौका दिया कि वो हम पर राज करें। प्रो अनिल जी ने कहा कि गाँधी जी एक बहुत साधारण व्यक्ति थे, परंतु उनका व्यक्तित्व बहुत ही विस्तारित था, वो हमेशा आगे की सोचते थे। गाँधी जी के व्यक्तित्व को उजागर करते हुए उन्होंने बताया कि गाँधी जी ने शक्ति हीनो को शक्ति प्रदान किया तथा निचले तबके के लोगों को आवाज़ दी व उन्हें बोलना सिखाया। गाँधी जी ने अहिंसा को अपना हथियार बनाते हुए तथा नमक को बारूद बनाते हुए अँग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अपना मोर्चा खोला। आगे उन्होंने बोला कि जो तुम कहते हो सर्वप्रथम अमल खुद से करो। प्रो अनिल जी ने कहा कि हिन्दू मुस्लिम एकता को बरकरार रखने के लिए गाँधी जी ने अपने जीवन को समर्पित किया है।
गाँधी जी का राष्ट्रवाद एक समग्र राष्ट्रवाद था, जिसमें उन्होंने समाज के सभी तबकों को जोड़ने का प्रयास किया। भारतीय राष्ट्रवाद कोई नई संकल्पना नहीं है, जिसे अंग्रेजों ने हमें उपहार में दिया बल्कि राष्ट्रवाद वैदिक काल से हमारे रगों में है। ऐसा गाँधी जी का मानना था।
आगे उन्होंने कहा कि “वो शख्श है ताज़ीम के काबिल, जिसने हवाओं का रुख मोड़ दिया।”
जब गाँधी जी लंदन पढ़ाई के लिए गए तथा दक्षिण अफ्रीका जीवन यापन के लिए गए उसके बाद भारत आने पर अपने अंदर बदलाव लाते हुए मोहन दास करम चन्द गाँधी से वो महात्मा गाँधी हो गए।
उनके अंदर का ये परिवर्तन परिस्थितियों को गंभीरता से समझने के बाद हुआ।
उन्होंने गाँधी जी के बारे में बताते हुए कहा कि जिस तरह से हमें जीने के लिए सांस जरूरी है, उसी तरह मानवता के लिए गाँधी के विचारों की जरूरत है। उन्होंने मानव को मानवता का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने गाँधी जी को एक अच्छे राजनेता के रूप में कोट किया तथा कहा कि वो लोगों के अंदर से भेद भाव को खत्म करके, एकजुट करने में सफल हुए। पुरानी कुरीतियों को तोड़ते हुए महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन में जोड़ने में सफल हुये।
प्रो अनिल जी ने कहा की आजादी के समय कॉंग्रेस को लेकर गाँधी जी का मोह भंग हो चुका था, वो कॉंग्रेस से दूर जाना चाहते थे, क्यों कि कॉंग्रेस अपने आप को असरदार और चुनौतियों से लड़ने में सक्षम नही बना पा रही थी।
अंत में प्रो अनिल जी ने कहा कि गाँधी जी के धर्म को लेकर जनता में अविश्वास था, अन्तोगत्वा सत्य यही है कि गाँधी जी का जन्म एक सनातनी के रूप में हुआ तथा अंत भी सनातनी के रूप में हुआ।
व्याख्यान के अंत में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए व्याख्यान श्रृंखला की संयोजिका डॉ. अपर्णा ने कहा कि गाँधी जी आज के युवा पीढ़ी के लिए ज्यादा प्रासंगिक है, उन्हें उत्सव मनाकर भूल जाने के लिए नही बल्कि अपने प्रतिदिन के जीवन में व्यवहार में लाने की जरूरत है। इस दौरान राज्यसभा सांसद एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. राकेश सिन्हा जी, विभाग के शिक्षक डॉ विभूति भूषण विश्वास, डॉ राजश्री पाढ़ी, डॉ मुबारक अली, शोधार्थी रवि कुमार, दीपांकर डे, हनी राज, सौविक चटर्जी, अमित सिंह एवं अलग-अलग विभागों के छात्र जुड़े रहे।