अशोक शर्मा /जावेद शेख-गुजरात
गुजरात को देश के विकास का मॉडल स्टेट बताया गया था गुजरात मॉडल के नाम पर सत्ता की रोटियां भी सेकी की जा रही है देश के सामने जिसको विकास का मॉडल बनाकर प्रस्तुत किया गया था उसी गुजरात की शिक्षा व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि गुजरात शिक्षा के मामले में बहुत पिछड़ा हुआ नजर आ रहा है गुजरात के 33 जिले में से 20 जिले शैक्षणिक रूप से पिछड़े बताए जा रहे हैं प्राइमरी एजुकेशन को अलग अलग जूथ में बांटने से लेकर फिक्स मेहनताना व्यवस्था और शिक्षाकर्मियों के शिक्षा के अतिरिक्त कार्यभार सौंपने के परिणाम स्वरूप शिक्षा व्यवस्था पिछड़ रही होने का बताया जा रहा है।
गुजरात में प्राइमरी शिक्षा को कुछ खास हिस्सों में बांट दिया गया है सरकारी स्कूल जिसमें जिला परिषद और नगरनिगम के स्कूल और नगर पालिका नगर पालिकाओं द्वारा संचालित स्कूल समाविष्ट होते हैं । इसके अतिरिक्त ग्रांटेड प्राइमरी स्कूल आश्रम शाला जो सरकार के अनुदान से चलाई जाती है। और उद्योगपति ,बिल्डर तथा कारपोरेट सेक्टर के द्वारा बड़े पैमाने पर बहुत ही ऊँची फीस के साथ नॉन ग्रंटेड स्कूल भी चलाई जा रही है। 2020 में 35 हजार के करीब सरकारी स्कूले, 514 अनुदानित (ग्रांटेड )प्राइमरी स्कूल, 100 के करीब आश्रम शाला और 9000 से ज्यादा नॉट ग्रांटेड स्कूल प्राइमरी शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर रही थी।
सरकारी और सरकार के अनुदान से चलने वाली सभी पाठ शालाओं में जो शिक्षाकर्मी है उन्हें नियत पाठ्यक्रम को पढ़ाने के साथ-साथ कई और 30 से ज्यादा प्रकार का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा जाता है। पाठशाला में शिक्षा कार्य करने के अतिरिक्त सौंपे जाने वाले कार्य न करने पर शिक्षा का प्रावधान और दंडनीय कार्यवाही का रौब दिखाकर शिक्षकों से काम लिया जा रहा होने का आक्षेप शिक्षा कर्मियों के द्वारा सुनने को आ रहा है। यही कारण है शिक्षक पाठशाला में छात्रों को सही ढंग से शिक्षा देने में असमर्थ रहते हैं।शिक्षको को सौंपे जानेवाले अतरिक्त कार्यभार के चलते पाठशालाओ में पूरा वक़्त नही दे पाते जिसका सीधा परिणाम शिक्षा की गुणवत्ता पड़ रहा है।और सरकार के आंकड़े भी बताते हैं की गुजरात में शिक्षा का स्तर गिर रहा है
गुजरात गांधीनगर के एक न्यूज़ नेटवर्क के जरिये किया गया सर्वे साफ बता रखा है कि गुजरात में शिक्षा के हालात इतने अच्छे नहीं है जितने अखबार के पन्नों में छपने वाले विज्ञानों पर दिखाए जाते हैं। न्यूज़ नेटवर्क के सर्वे में बताया गया है कि *करीब 22 लाख से ज्यादा छात्र प्राइमरी शिक्षा हासिल कर रहे हैं जिसमें 8 लाख के करीब छात्र मैं पढाई में काफी कमजोर है मतलब करीब 36% छात्र पढ़ाई में पिछड़े हुए पाए गए हैं। 214000 से ज्यादा छात्रों में गणित में बहुत कम समज दिखी। 10% छात्र ऐसे पाए गए हैं जिन्हें ठीक से अपनी मातृभाषा पढ़नी भी नहीं आती*।
सरकार के अनुदान से चलने वाली ग्रांटेड प्राइमरी स्कूल की तादाद पूरे राज्य में केवल 514 हैं। शिक्षकों के कुल पदों की संख्या तीन हजार के करीब है इन 3000 पदों में से 2021में एक हजार पद खाली है ।बड़े आश्चर्य की बात यह है की 2016-17 के बाद से इन पदों पर नियुक्तियां ही नहीं हुई। कर्मचारियों की कमी साथ ही इन पाठशाला में काम करने वाले कर्मचारी गण को सरकारी पाठशालाओ के कर्मचारियों के मुकाबले मिलने वाले लाभों में भी काफी विसंगतता पाई जाती है समान काम वेतन के सिद्धांत का पालन होता हुआ नहीं दिख रहा जिस के चलते सरकार के अनुदान से चलने वाली स्कूल अभी पढ़ाई में पिछड़ रही है अल्टीमेटली प्राइमरी शिक्षा का ढांचा ध्वस्त होता दिख रहा है।
गुजरात सरकार ने बड़े ढोल बाजे के साथ बालिका शिक्षण (कन्या केलवणी) को प्रोत्साहित करने हेतु योजनाएं बनाई थी बड़े-बड़े दावे किए थे। लेकिन सरकार की ये योजना कुछ ज्यादा असर दिखाने से पहले ही बिछड़ने लगी है। छात्राओं की शिक्षा को लेकर जारी हुए रिपोर्ट के मुताबिक छात्राओं की शिक्षा के मामले में गुजरात मौजूदा 33 राज्य में से 19वें स्थान पर है गुजरात में 17 साल की 26% से ज्यादा लड़कियां किसी कारण से स्कूल की पढ़ाई छोड़ देती है। *भारत सरकार के एक मंत्री ने संसद के पिछले सत्र में बताया था कि गुजरात की शिक्षा व्यवस्था बिछड़ने लगी है गुजरात के 61% जिलों में शिक्षा का विकास दर बहुत ही नीचा है और गुजरात के 20 जिले शिक्षा के मामले में बहुत ही पिछड़े हुए हैं। पूरे भारत में शिक्षा के मामले में गुजरात छठवें स्थान पर है* ।
गुजरात में शिक्षा का बजट 30000 करोड़ के करीब है इस बजट का ज्यादातर हिस्सा प्रवेश उत्सव, गुणोंत्सव, स्कूल एनरोलमेंट, कन्यापढ़ाओ, शिक्षा के प्रचार-प्रसार और अपनी सिद्धियां बताने वाले सरकार की ओर से दिए जाने वाले विज्ञापनों पर खर्च हो रहा है ये आरोप लोगो की चर्चा में सुनने को मिल रहा है। कुछ हद तक उठने वाली आवाज सच होने का एहसास भी होता है जब सुनने में आता है की गुजरात की पाठशालाओ में बच्चों को बिठाने के लिए पर्याप्त क्लासरूम नहीं है 2014 में 8388 क्लासरूम कम पाए गए थे जिस तादादा बढ़कर 2017 में 16000 तक पहुंच गई है पाठ शालाओं में कमरों की कमी के यह आंकड़े भी खुद राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए हैं, यही है गुजरात मॉडल का असली रूप।
संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि गुजरात में प्राइमरी शिक्षा का जो चित्र अखबारों में या टीवी के स्क्रीन पर विज्ञापन देकर दिखाया जाता है वह केवल एक आभास और दिखावा है वास्तव में गुजरात के विकास मॉडल के साथ शिक्षा का विकास कहीं कदम से कदम मिलाकर चलता नहीं दिख रहा है।