देवानंद सिंह
इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव दो तरह से काफी महत्वपूर्ण होने जा रहा है। पहला नक्सल प्रभावित एरिया होने की वजह से और दूसरा राजनीतिक कारणों से। खासकर, जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर दूसरा कारण अधिक फिट बैठता है, क्योंकि यहां जिस तरह दो दिग्गज चुनाव मैदान में हैं, उसने आशंकाओं को और बल दे दिया है। इन दो दिग्गज नेताओं में शामिल हैं, स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास और मंत्री सरयू राय। बीजेपी से टिकट कटने के बाद सरयू राय ने जिस तरह से मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है, यह राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। सरयू राय भी रघुवर दास सरकार में ही मंत्री रहे, लेकिन इस बार उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया। राज्य में सरयू राय की जो छवि है, उससे बिल्कुल भी ऐसा आभास नहीं लगाया जा रहा था कि उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा, क्योंकि उनकी छवि बेहद ईमानदार राजनेताओं में होती है। यह कहा जा रहा है कि उनका टिकट कटवाने में मुख्यमंत्री रघुवर दास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, ऐसा कर भले ही रघुवर दास ने पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत रखने की कोशिश की हो, लेकिन सरयू राय ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरकर रघुवर दास से भी बड़ा राजनीतिक दांव खेल डाला।
पहला, उन्होंने बीजेपी से टिकट कटने के बाद भी चुनाव लड़ने के लिए किसी दूसरी पार्टी में जाना उचित नहीं समझा और दूसरा निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरकर उसी पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिस सीट से स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव मैदान में हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने पार्टी से टिकट कटने के बाद भी पार्टी के खिलाफ बगावत न दिखाकर केवल मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ बगावत दिखाई है। उनका ऐसा करने से इस बात की संभावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह पार्टी की खिलाफत कर रहे हैं। लिहाजा, अगर वह पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते भी हैं तो भविष्य में बीजेपी को उन्हें अपने साथ मिलाना पड़े। सरयू राय की राज्य की राजनीतिक में दमदार छवि रही है। बेहद ईमानदार और मिलनसार नेता होने की वजह से लोगों में उनकी अच्छी-खासी छवि है। पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा सीट से उनके बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद इसीलिए भी है, क्योंकि काफी वोटर सीएम रघुवर दास के व्यवहार से भी काफी नाखुश हैं। सीएम रघुवर दास द्बारा कई बार लोगों से दुर्व्यवहार करने की खबरें भी सामने आती रही हैं, ऐसे में लोगों के दिमाग में मतदान के दौरान ऐसी बातें निश्चित रूप से होंगी। लिहाजा, ऐसे लोग सरयू राय को अपना मत दें, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। दूसरा, सरयू राय के खेमे के जो भी लोग संबंधित क्षेत्र में हैं, वे भी बीजेपी के दामन से छुटकारा लेने की कोशिश करेंगे। ऐसी स्थिति में रघुवर दास के लिए बड़ी चुनौती होगी। वैसे भी, इस सीट पर भ्रष्टाचार विरोधी माहौल पूरी तरह से हावी हो गया है। सरयू राय से लेकर दूसरे विपक्षी नेता सरकार पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं। सरयू राय जब सरकार में थे, तो उन्होंने तभी से कई मुद्दों पर सरकार की खिलाफत की थी, खासकर भ्रष्टाचार को लेकर। इसी नाराजगी को लेकर रघुवर दास ने पार्टी से सरयू राय का टिकट कटवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्हें बिल्कुल भी आभास नहीं रहा होगा कि सरयू राय उसी सीट से चुनाव मैदान में उतरेंगे, जिस सीट से वह चुनाव लड़ रहे हैं। इस स्थिति में सरयू राय के मुकाबले रघुवर दास के लिए चुनौती ज्यादा बड़ी है।
इसका दूसरा कारण यह भी है कि विपक्षी दल भी साइलेंट रूप से सरयू राय के समर्थन में हैं। सरयू राय अपने चुनाव अभियान के दौरान पार्टी पर किसी भी तरह का हमला करने से बच रहे हैं। वह महज मुख्यमंत्री व उनके परिवार के सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए प्रचार अभियान कर रहे हैं। यही आरोप विपक्षी दल भी लगा रहे हैं। इसीलिए चौतरफा हमले से रघुवर दास की डगर आसान नहीं दिख रही है। फिर भी, चुनाव को लेकर रोमांच कम होने वाला नहीं है। मतदाता जिसे चाहेंगे, उसके सिर पर पूर्वी जमशेदपुर सीट का ताज पहनाएंगे, पर रघुवर दास जीते या फिर सरयू राय इसके मायने प्रदेश की राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे।