धर्मेंद्र गोस्वामी ने चंपई सोरेन उर्फ कोल्हान टाइगर को पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बना दिया
धीरज कुमार सिंह
अगर आपको कानूनी सलाह लेनी होगी तो आप किसके पास जाएंगे निश्चित रूप से आप किसी अच्छे वकील को ढूंढेंगे जो आपको बेहतर कानूनी सलाह और सहायता उपलब्ध करा सके आपको अगर कहीं निवेश करने की इच्छा होगी तो आप किसी फाइनेंशियल कंसल्टेंट की तलाश करेंगे जो आपके पैसों का ध्यान रखेगा और बेहतर मुनाफा दिलाएगा इसी तरह सरकारें भी अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एडवाइजर बनाती हैं कंसल्टेंट बनाती हैं ताकि उनकी एक्सपर्टीज और अनुभव का लाभ सरकारी नीतियों को बनाने और उनके क्रियान्वयन में किया जा सके और इसलिए सरकारें कृषि, पेयजल स्वच्छता, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों के जानकार लोगों को सलाहकार नियुक्त करती हैं इन सलाहकारों के लिए विशिष्ट योग्यताएं, अनुभव और
उपलब्धियां निर्धारित की जाती है ताकि बेहतर से बेहतर लोगों को सलाहकार के रूप
में नियुक्त किया जा सके. देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री भी अपनी मदद के लिए सलाहकार रखते हैं. इन सलाहकारों में आर्थिक सलाहकार वैज्ञानिक सलाहकार रक्षा सलाहकार तकनीकी सलाहकार और प्रेस सलाहकार आदि होते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई प्रेस सलाहकार नहीं रखा है. लेकिन उन्होंने जो सलाहकार रखे हैं, वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर अधिकारी हैं. लेकिन मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने संजय बारू और पंकज पचौरी को प्रेस सलाहकार रखा था उनके पहले के भी कई प्रधानमंत्रियों ने प्रेस सलाहकार मीडिया सलाहकार आदि रखे थे और राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्रेस सलाहकार मीडिया सलाहकार या सूचना सलाहकार आदि रखते हैं. इन पदों पर पत्रकारों को ही रखने की परंपरा है इंदिरा गांधी के मीडिया सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद थे जो पत्रकार थे और बाद में भारत सरकार की सेवा में आए और योजना जैसी पत्रिका का संपादन किया. वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रेस सलाहकार थे. पत्रकार सुमन दुबे राजीव गांधी के प्रेस सलाहकार रहे प्रधानमंत्री रहते वीपी सिंह ने वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रेमशंकर झा को सूचना सलाहकार बनाया. प्रभात खबर के पूर्व संपादक और अभी राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार थे यह सब जानेमाने पत्रकार थे राज्यों की बात करें तो मुख्यमंत्री भी पत्रकारों को ही प्रेस सलाहकार नियुक्त करते रहे हैं झारखंड में भी बाबूलाल मरांडी से लेकर अर्जुन मुंडा शिबू सोरेन मधु कोड़ा और रघुवर दास ने मुख्यमंत्री रहते पत्रकारों को प्रेस सलाहकार बनाया लेकिन इस परंपरा को तोड़ दिया हेमंत सोरेन ने और और अब पांच महीने के मुख्यमंत्री रहे और अब जेएमएम से रूठे -रूठे चल रहे चंपई सोरेन ने भी हेमंत सोरेन की परंपरा को ही आगे बढ़ाया.
हेमंत सोरेन अभिषेक प्रसाद पिंटू को अपना प्रेस सलाहकार बनाया था जिनकी प्रेस के बारे में समझ जेएमएम प्रवक्ता के नाते बयान जारी करने तक सीमित थी और चंपई सोरेन ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए अपना प्रेस सलाहकार एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया जो एक पूर्व गवैया और निजी कंपनी का कर्मचारी है उसे न मीडिया से कोई लेना देना है ना उसे प्रेस नोट और प्रेस रिलीज के बीच का अंतर पता है ना खबर और विज्ञापन का फर्क मालूम है एक प्राइवेट स्टील फैक्ट्री में काम करने वाले से मुख्यमंत्री रहते चंपई सोरेन ने प्रेस मीडिया के बारे में कौन सी सलाह ली होगी और जमशेदपुर के पत्रकार भी जिस व्यक्ति को ठीक से नहीं जानते उस व्यक्ति ने क्षेत्रीय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया से कैसे तारतम्य बैठाया होगा,
यह चंपई सोरेन ही बता सकते हैं. उस व्यक्ति के मीडिया के जानकार न होने का ही नतीजा है कि आज चंपई सोरेन एक तरह से असहाय दिख रहे हैं. वे जहां भंडारा जीमने गये थे वहां प्रसाद खत्म हो गया था औऱ जब वे बाहर निकले, तो चप्पल गायब थी. पूरी दुनिया में कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन का मजाक बन रहा है, तो इसके लिए ऐसे मीडिया सलाहकार ही जिम्मेदार हैं.
प्रेस सलाहकार का क्या काम है और इस पर बैठा व्यक्ति कैसे सरकार और मीडिया के बीच एक पुल का,. एक कड़ी का काम करता है. इस पर चर्चा आगे करें, उसके पहले एक नजर झारखंड के अब तक के मुख्यमंत्रियों और उनके प्रेस सलाहकारों पर डाल लेते हैं, राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे बाबूलाल मरांडी और उनके प्रेस सलाहकार थे दिलीप श्रीवास्तव नीलू.
वे रांची के आज अखबार समेत दूसरे तमाम मीडिया संस्थानों में संपादक रहे थे. बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हरेंद्र सिंह को प्रेस सलाहकार रखा. हरेंद्र पत्रकारिता की दुनिया में कोई बहुत चर्चित नाम नहीं थे, लेकिन वे अखबारों से जुड़े रहे थे. उस समय तक प्रेस सलाहकार का वेतन बहुत मामूली हुआ करता था. रघुवर दास के कार्यकाल में प्रेस सलाहकार को सचिव का वेतनमान और सुविधाएं दे दी गयीं. अर्जुन मुंडा तीन बार मुख्यमंत्री बने दो बार उन्होंने हरेंद्र सिंह को बनाया और तीसरे टर्म में अंग्रेजी के पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स टेलीग्राफ तथा पायनियर जैसे अखबारों में ऊंचे पदों पर काम चुके सुमन श्रीवास्तव को प्रेस एडवाइजर बनाया. गुरुजी यानी शिबू सोरेन जो हेमंत सोरेन के पिता हैं, तीन बार मुख्यमंत्री बने कम समय के लिए ही बने लेकिन उन्होंने हिमांशु शेखर चौधरी को राष्ट्रीय मीडिया सलाहकार बनाया फिर अगले टर्म में पत्रकार शफीक अंसारी को प्रेस सलाहकार बनाया. मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री बनने पर राष्ट्रीय सहारा के झारखंड ब्यूरो चीफ रहे संदीप वर्मा को अपना प्रेस सलाहकार बनाया. रघुवर दास ने तो दो पत्रकारों को सलाहकार रखा था. इंडिया टीवी के झारखंड ब्यूरो चीफ रहे और सीनियर जर्नलिस्ट योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार और हिंदुस्तान अखबार के ब्यूरो चीफ रहे अजय कुमार को उन्होंने अपना राजनीतिक सलाहकार बनाया बाद में रघुवर दास ने राजनीतिक सलाहकार का पद खत्म कर दिया और योगेश किसलय की जगह अजय कुमार को प्रेस सलाहकार बना लिया. रघुवर दास के बाद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने और उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता अभिषेक प्रसाद पिंटू को प्रेस सलाहकार बना दिया. हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेम सीएम बने और उन्होंने धर्मेंद्र गोस्वामी को प्रेस सलाहकार नियुक्त कर दिया है जो कि टाटा स्टील में जूनियर लेवल कर्मचारी हैं. जिसके बैनर, फ्लायर, बॉक्स और एंकर का पता नहीं, जिन्हें न्यूज, एडिटोरियल और आर्टिकल का भेद नहीं मालूम, न्यूज़ कितने तरह का होता है, बीट क्या होती है, रिपोर्टिंग कैसे होती है, कैसे क्राइसिस मैनेजमेंट होता है, कैसे मीडिया रिलेशंस बनाने हैं,
मीडिया से कैसे फायदा लेना है, मीडिया कंट्रोल किस चिड़िया का नाम है, मुख्यमंत्री और सरकार को कैसे मीडिया में प्रोजेक्ट करना है, इसके अलावा पत्रकारों की क्या समस्याएं होती हैं, उनका सरकार से कैसे निदान कराना है, यह सब किसी निजी कंपनियों में काम करनेवाले व्यक्ति या किसी राजनीतिक कार्यकर्ता को कैसे पता होंगी.
कोई व्यक्ति काबिल हो, तो उसकी काबिलियत के हिसाब से उसको पद देने और उससे काम लेने में किसी को कोई ऐतराज नहीं होता. लेकिन मीडिया एक स्पेशलाइज्ड जॉब है. हर ऐरा-गैरा नत्थू खैरा रातों-रात प्रेस और मीडिया का एक्सपर्ट नहीं हो सकता. इसके लिए बहुत पढ़ाई-लिखाई, अनुभव, ज्ञान, बुद्धि-विवेक और तर्क शक्ति की जरूरत होती है. न्यूसेंस, नॉनसेंस और न्यूज सेंस में फर्क होता है, लेकिन आजकल झारखंड में यह पद अपने करीबी लोगों को उपकृत करने का जरिया बन गया है.
अगर मुख्यमंत्रियों को प्रेस वालों को सलाहकार नहीं बनाना है, तो उन्हें प्रेस सलाहकार का पद खत्म कर देना चाहिए. जैसे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने किसी को प्रेस एडवाइजर नहीं रखा है. वैसे भी प्रेस सलाहकार रखने की जरूरत ही क्या है. विज्ञापन और प्रेस रिलीज जारी करने के लिए तो सूचना जनसंपर्क विभाग से भी काम लिया जा सकता है. और अगर अपने करीबी लोगों को उपकृत करना है, तो उन्हें कोई और पद देकर भी काम चलाया जा सकता है. उसमें प्रेस एजवाइजर लिखने की क्या जरूरत है.