नई दिल्ली. कोरोना की दो लहरों का असर दिखना शुरू हो गया है. केंद्र सरकार ने अपने खर्चों में बीस फीसदी कटौती कर दी है. कोरोना का असर केवल यहीं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ये लंबे समय तक परेशान करेगा. कम से कम 2026 तक केंद्र सरकार के कर्मियों को अपनी जेब ढीली रखने के लिए तैयार रहना चाहिए. 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अध्याय चार में खर्च घटाने के लिए जो सिफारिशें दी गई हैं, केंद्र सरकार उन्हीं के हिसाब से आगे बढ़ रही है. मुद्रास्फीति का परिदृश्य 2026 तक सहज हो पाएगा. इस अवधि में किसी अन्य वेतन आयोग की अनुशंसा या पेंशन एवं वेतन में सामान्य महंगाई भत्ता और वेतन वृद्धि को छोड़कर, भारी बढ़ोतरी होने की उम्मीद नहीं की जाती है. यानी कुछ ‘स्पेशल’ नहीं मिलेगा.
पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल होने का इंतजार न करें कर्मचारी
केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण की पहली लहर शुरू होते ही कर्मियों के वेतन भत्तों में होने वाली वृद्धि पर रोक लगा दी थी. इसके चलते कर्मियों को 18 माह से महंगाई भत्ता तक नहीं मिला है. पेंशनर्स, महंगाई राहत मिलने की राह देख रहे हैं. दूसरे खर्चों में भी कटौती की जा रही है. कर्मचारी संगठन, सरकार पर लगातार यह दबाव डाल रहे हैं कि पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू की जाए. एनपीएस, कर्मियों के हित में नहीं है. इससे कर्मियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. दूसरी तरफ, सरकार ने खर्च में कटौती की घोषणा कर यह संकेत दे दिया है कि कर्मचारी, पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल होने का इंतजार न करें. विशेष वेतन भत्तों को लेकर कर्मचारी कोई उम्मीद न रखें. पेंशन फंड रेगुलेटर द्वारा नेशनल पेंशन सिस्टम में बदलाव की योजना तैयार की जा रही है. सरकार का प्रयास है कि नेशनल पेंशन सिस्टम में इस तरह के बदलाव हों, ताकि कर्मचारी इसके प्रति आकर्षित हों. वे पुरानी पेंशन व्यवस्था का ख्याल दिमाग से निकाल दें. कर व्यवस्था में बदलाव करने के अलावा सिस्टमैटिक विड्रॉल प्लान तैयार करना और वार्षिकी सूचकांक को महंगाई से जोडऩा, आदि सुविधाएं शुरू हो सकती हैं. इससे एनपीएस वाले कर्मियों को अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद बढ़ जाएगी.
पेंशन और वेतन को लेकर वित्त आयोग की सिफारिशें आयोग की रिपोर्ट में लिखा है, पेंशन और वेतन का आकलन करते हुए हमने सरकार के राजस्व प्रवाह पर संभावित दबाव तथा विशेष रूप से गैर विकासात्मक व्यय में सख्त राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने की आवश्यकता को ध्यान में रखा है. विगत में वेतन आयोगों की अनुशंसाओं को कार्यान्वित करने के फलस्वरूप, संघ सरकार के राजस्व व्यय एवं दोनों के संदर्भ में उसके पेंशन एवं वेतन भुगतानों में उतार चढ़ाव देखे गए हैं. वेतन आयोगों के प्रभाव या रक्षा पेंशनभोगियों के वन रैंक वन पेंशन जैसे एकबारगी नीति निर्णयों के प्रभाव को छोड़कर, पेंशन और वेतन पर संघ सरकार के व्यय में वृद्धि सामान्य तौर पर उसके सकल राजस्व व्यय की तुलना में कम हुई है. 2021 से 2026 की अवधि में कोई अन्य वेतन आयोग की अनुशंसा या पेंशन एवं वेतन में, सामान्य महंगाई भत्ता और वेतन बढ़ोतरी को छोड़कर, भारी वद्धि होने की उम्मीद नहीं की जाती है. यह परिदृश्य पांच वर्ष तक जारी रह सकता है. भारत सरकार ने अपने कर्मियों के लिए महंगाई भत्ता और पेंशनर्स के लिए महंगाई राहत पर जनवरी 2020 से जुलाई 2021 तक रोक लगा रखी है. केंद्र ने यह स्पष्ट किया है कि रोक हटने के बाद इन भुगतानों की बहाली उत्तरव्यापी प्रभाव से की जाएगी.
सरकार को प्रतिबद्ध खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी केंद्र सरकार ने पिछले साल भी खर्च में कटौती करने के लिए कुछ उपाय किए थे. इस बार भी ओवरटाइम, यात्रा भत्ता, आपूर्ति व राशन की लागत आदि के खर्च में 20 फीसदी की कटौती कर दी है. आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के निर्णयों के आधार पर 2019-20 की तुलना में 2020-21 के दौरान वेतन बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है. राजस्व पर भारी दबाव के मद्देनजर, केंद्र सरकार अपने खर्च में कटौती करेगी, ताकि महंगाई एवं अन्य भत्तों के कारण बढ़ोतरी को प्रतिसंतुलित किया जा सके. इसके अनुसार, 2020-21 और 2021-22 के दौरान वेतन में एक फीसदी तथा पेंशन में 1.5 फीसदी की वृद्धि दर का आकलन किया है. उसके बाद ही अवधि के लिए कर्मियों की वार्षिक वेतन वृद्धि, कर्मियों एवं पेंशनभोगियों के लिए महंगाई भत्ता/राहत तथा कार्यबल में क्षयण के कारण मानकीय तौर पर आकलित बदलावों को ध्यान में रखते हुए वेतन में 5 फीसदी और पेंशन में 5.5 फीसदी की वृद्धि का मूल्यांकन किया है. आयोग द्वारा यह उम्मीद की जाती है कि कार्यदक्षता पर विशेष बल देते हुए सरकारी कार्यबल पर खर्च किए जा रहे व्यय को विवेकशील तरीके से युक्तियुक्त बनाया जाएगा. इससे व्यय उपलब्ध संसाधनों के भीतर ही रहेगा.