आखिर कब छंटेगा अंधेरा ?
देवानंद सिंह
विजयादशमी के दिन झारखंड से एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसको देखकर राजनीतिक पंडितों से लेकर पूरे कोल्हान की जनता स्तब्ध रह गई। दरअसल, मौका था जमशेदपुर के एग्रिको मैदान में आरएसएस द्वारा आयोजित विजयादशमी उत्सव का कार्यक्रम और यह चौंकाने वाली तस्वीर थी, इस कार्यक्रम में बीजेपी के पूर्व दो बागी नेताओं की उपस्थिति। एक थे बीजेपी के पूर्व नेता और वर्तमान में निर्दलीय विधायक सरयू राय और दूसरे नेता थे, बीजेपी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले। ये दोनों नेता उस कार्यक्रम में शामिल हुए, जिसमें केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी मौजूद थे। पूर्व बागी नेताओं का इस कार्यक्रम में शामिल होना इसीलिए चौंका रहा था, क्योंकि इनका रघुवर दास से 36 का आंकड़ा है।
सरयू राय वही नेता हैं, जिन्हें रघुवर दास ने ही झारखंड की राजनीति में इंट्री दिलाई थी, लेकिन पिछली विधानसभा में उन्हीं सरयू राय ने रघुवर दास के खिलाफ बगावत कर बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था, और चुनाव में बीजेपी के खिलाफ इतने कांटे बोए कि इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी को झारखंड की सत्ता गंवानी पड़ी थी। यानि, जिन नेताओं की वजह से झारखंड में बीजेपी सत्ता से दूर हुई थी, उन्हीं नेताओं की आरएसएस के कार्यक्रम में कैसे उपस्थिति हो गई,
यह इस प्रकरण का सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। क्या आरएसएस बीजेपी को सत्ता पर काबिज करने के लिए इस हद तक कैसे जा सकती है। पहले जहां वह हिंदुओं के नाम पर राजनीति करती आई है, उसे अब क्यों मस्जिद में जाने की जरूरत पड़ रही है ? इतना ही नहीं, आरएसएस को अब उन नेताओं की शरण में जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है, जिन्होंने झारखंड में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए सबसे अधिक कांटे बोए। सरयू राय और अमरप्रीत सिंह काले जिस तरह आरएसएस के कार्यक्रम में बैठे थे,
उससे कहीं भी यह नहीं लग रहा था कि आरएसएस को पूर्व में उनके द्वारा बोए गए कांटों से कोई फर्क पड़ा है। इन दो पूर्व बागी नेताओं के मंच पर उपस्थित होने से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास खामोश और असहज दिख रहे थे, जबकि सरयू राय और अमरप्रीत सिंह काले केंदीय मंत्री अर्जुन मुंडा से लगातार गुफ्तगू करते नजर आए, लेकिन जिस तरह से रघुवर दास असहज और खामोश नजर आए, वह किसी तूफान से पहले की खामोशी नजर आ रही थी। वास्तव में, यह सवाल निश्चित तौर पर उठता है कि आखिरकार आरएसएस ने किस लिहाज से सरयू राय और अमरप्रीत सिंह काले को कार्यक्रम में बुला लिया, क्या उसे यह बिल्कुल भी आभास नहीं था कि ये दोनों वही नेता हैं, जिन्होंने बीजेपी के कद्दावर नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री को हर मंच पर बदनाम किया और अब भी कर रहे हैं?
इतना ही नहीं, ये वही नेता हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में हराने के लिए कांटे बोए थे। फिर भी, इन्हें कार्यक्रम में इतने तब्बजो के साथ बुलाया कि केंदीय मंत्री अर्जुन मुंडा उनसे लगातार गुफ्तग्गू कर रहे थे और रघुवर दास खामोश थे।
आखिर, आरएसएस क्या साबित करना चाहती है। क्या आरएसएस में भी सत्ता का नशा इस कदर छा गया है कि वह अब किसी भी हद तक जा सकती है ? जहां पहले मंदिर के नाम पर राजनीति करती थी, अब उसे मस्जिद में भी जाने की जरूरत पड़ रही है। और उन नेताओं से भी दोस्ती का हाथ बढ़ाना पड़ रहा है, जिन्होंने उसके लिए गड्ढा खोदा। ऐसे में, खुद को सबसे बड़ा राष्ट्र भक्त मानने वाले आरएसएस के मूलमंत्र का क्या हुआ ? यह सबसे बड़ा सवाल है। भले, आरएसएस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो, लेकिन कोल्हान की जनता इस पूरे घटनाक्रम को देखकर स्तब्ध जरूर है कि किस तरह और कब यह अंधेरा छंटेगा ?