महिला आरक्षण बिल 2024 या 2029 में, कब से लागू होगा, क्या है सरकार की योजना
महिला आरक्षण बिल सबसे पहले 1996 में पेश किया गया था. साल 2010 में राज्यसभा ने इसे पास भी कर दिया था लेकिन लोकसभा में ये बिल पास नहीं हो पाया था.
पीएम मोदी ने सोमवार को पुरानी संसद के विदाई भाषण में कहा था कि विशेष सत्र में ऐतिहासिक फ़ैसले लिए जाएंगे.
महिला आरक्षण बिल को पास करवाए जाने की लंबे वक़्त से मांग होती रही है.
कुछ दिन पहले ही कांग्रेस कार्य समिति ने मोदी सरकार से संसद के विशेष सत्र में इस बिल को पास करवाए जाने की मांग की थी.
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा था, ”कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण विधेयक, जो पहले ही राज्यसभा से पारित हो चुका है, उसे लोकसभा से भी पारित कराया जाना चाहिए.”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा, ”आज पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. यह 40 फ़ीसदी के आसपास है. महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संविधान संशोधन विधेयक लाए. विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ लेकिन लोकसभा में नहीं ले जाया जा सका.”
महिलाओं का प्रतिनिधित्व: कुछ तथ्य
543 सीटों वाली लोकसभा में फिलहाल सिर्फ़ 78 महिला सांसद
238 सीटों वाली राज्यसभा में सिर्फ़ 31 महिला सांसद
छत्तीसगढ़ विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 14 फीसदी
पश्चिम बंगाल विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 13.7 फीसदी
झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 12.4 फ़ीसदी
बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 10-12 फ़ीसदी
आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा में महिला विधायकों की संख्या 10 फ़ीसदी से कम
महिला आरक्षण बिल का इतिहास?
1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब ‘टूवर्ड्स इक्वैलिटी’ नाम की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी.
रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी में अधिकतर सदस्य आरक्षण के ख़िलाफ़ थे. वहीं महिलाएं चाहती थीं कि वो आरक्षण के रास्ते से नहीं बल्कि अपने बलबूते राजनीति में आएं.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1980 के दशक में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी, लेकिन राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था. उनका कहना था कि इससे उनकी शक्तियों में कमी आएगी.
महिला आरक्षण विधेयक को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने पहली बार 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की थी.
इस गठबंधन सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद इस सरकार के दो मुख्य स्तंभ थे, जो महिला आरक्षण के विरोधी थे.
जून 1997 में एक बार फिर इस विधेयक को पास कराने का प्रयास हुआ. उस वक़्त शरद यादव ने इस विधेयक की निंदा करते हुए एक विवादास्पद टिप्पणी की थी.
उन्होंने कहा था, ”परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी.”
साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार में तत्कालीन क़ानून मंत्री एन थंबीदुरई ने इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की. पर सफलता नहीं मिली.
इसके बाद एनडीए की सरकार ने दोबारा 13वीं लोकसभा में 1999 में इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की.
साल 2003 में एनडीए सरकार ने फिर कोशिश की लेकिन प्रश्नकाल में ही सांसदों ने ख़ूब हंगामा किया कि वे इस विधेयक को पारित नहीं होने देंगे.
2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ. लेकिन ये लोकसभा में तब पास नहीं हो सका था.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2019 चुनावों से पहले वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो सबसे पहले महिला आरक्षण बिल को पास करेंगे.
साभार बीबीसी