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    औचित्यहीन है भारत की बांग्लादेश से तुलना

    News DeskBy News DeskAugust 10, 2024No Comments5 Mins Read
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    औचित्यहीन है भारत की बांग्लादेश से तुलना
    देवानंद सिंह
    बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद भारत में सियासत गरम है। कई विपक्षी नेता भारत में भी बांग्लादेश जैसी घटना होने की संभावना जता रहे हैं और ये उम्मीद कर रहे हैं कि भारत की जनता भी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के आवास की तरह ही भारत के प्रधानमंत्री आवास में भी पब्लिक घुस जाए और लूटपाट करें। निश्चित ही, यह बहुत चिंताजनक है कि भारत के कुछ कांग्रेसी और दूसरे नेता भारत के संबंध में भी इस तरह की कल्पना कर रहे हैं। इन नेताओं की यह सोच दर्शाती है कि ये किस तरह स्वार्थ में डूबे हुए हैं, इन नेताओं को न तो देश की एकता और अखंडता का भान है और न ही लोकतंत्र की जड़ों की गहराई का भान।

     

     

    बांग्लादेश से लेकर पाकिस्तान और दूसरे देशों में कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं कि सेना ने सत्ता अपने हाथ में ली है, लेकिन 140 करोड़ जनसंख्या वाले देश भारत में ऐसा कभी नहीं हो पाया, क्योंकि भारत की सेना को कभी भी सत्ता का लालच नहीं रहा, क्योंकि देशभक्त भारतीय सेना जानती है कि तख्तापलट या सशस्त्र क्रांति से राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होती हैं, इसीलिए भारत में इस प्रकार की स्थिति की संभावना बिल्कुल भी नहीं दिखती है। भारतीय सेना की राजनीतिक संस्कृति भी तख्तापलट की संभावना को इसीलिए कम करती है, क्योंकि भारतीय सेना ने हमेशा अपनी भूमिका को संविधान के प्रति प्रतिबद्धता के साथ निभाया है और राजनीति में हस्तक्षेप से बचने की कोशिश की है। भारतीय सैन्य नेतृत्व ने लोकतांत्रिक सरकारों की वैधता को स्वीकार किया है और सत्ता की राजनीति में भागीदारी से बचा है, इसीलिए यह संस्कृति सेना को सिविल शासन के प्रति सम्मानित बनाती है।

     

     

    भारत को दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रणाली के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसका मुख्य कारण देश की मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं। भारतीय संविधान ने एक ऐसा ढांचा स्थापित किया है, जो सरकारी सत्ता की शाखाओं को एक-दूसरे से अलग करता है और एक संतुलन बनाए रखता है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच स्पष्ट विभाजन से यह सुनिश्चित होता है कि सत्ता का केंद्रीकरण न हो और न ही किसी एक संस्था के हाथ में अत्यधिक शक्ति हो, इसीलिए भारत की संवैधानिक संरचना भी तख्तापलट की संभावनाओं को सीमित करती है। भारतीय संविधान भी एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसमें अधिकारों की रक्षा और न्याय को सुनिश्चित करने का सख्त प्रावधान है। इसके अलावा, स्वतंत्र चुनाव आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो जैसी स्वतंत्र संस्थाएं भी सरकार की कार्यशैली पर निगरानी रखती हैं। ये संस्थाएं भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और अन्य समस्याओं की प्रभावी ढंग से निगरानी
    करती हैं।

     

     

    भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता भी तख्तापलट की संभावनाओं को कम करती है। दरअसल,  देश में विभिन्न जातियों, धर्मों और भाषाओं के बीच गहरी सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता है। इस विविधता ने भारत में सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए एक जटिल, लेकिन प्रभावी तंत्र का निर्माण किया है।
    भारतीय नागरिकों को पता है कि अगर, कुछ समस्या है तो उसके समाधान के ठोस साधन भी मौजूद हैं। अगर, सरकार से कुछ गलती हुई तो न्यायपालिका उसे सुधारेगा। अगर, न्यायपालिका ने सीमा लांघी तो उसे संसद सही रास्ता दिखाएगा। कुल मिलाकर कहें तो भारत में जनभावना की कद्र के कई विकल्प हैं। अगर, मायूसी का माहौल बना है तो नागरिकों को प्रतिकार करने का अधिकार है।

     

     

    इसके अतिरिक्त, आर्थिक विकास और सामाजिक सुधारों ने आर्थिक असमानता को कम किया है, जिससे सामाजिक असंतोष और तख्तापलट की संभावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आती हैं। इसकी एक महत्वपूर्ण कड़ी यह भी है कि भारत में एक सक्रिय नागरिक समाज और स्वतंत्र मीडिया भी तख्तापलट के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच का काम करते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता और सक्रिय नागरिक समाज सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी रखते हैं और भ्रष्टाचार या अन्य गड़बड़ियों को उजागर करते हैं, जो यह पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना को बढ़ावा देती है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, भारत एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति है और विश्व समुदाय के साथ इसके मजबूत कूटनीतिक संबंध हैं। किसी भी तख्तापलट की स्थिति में, भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आलोचना और दवाब का सामना करना पड़ेगा, जो तख्तापलट के प्रयासों को और भी कठिन बना देता है। वैश्विक मानदंडों और दबाव के चलते भारतीय सरकार को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

    मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा वर्ग वैसे नागरिकों का है,  जिनका लोकतांत्रिक संस्थाओं में जरा भी यकीन नहीं होता। वो लोकतंत्र को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं और दिन-रात शरियत का सपना देखते हैं। उनका यकीन इस्लामी धार्मिक कानून शरिया पर होता है, इसलिए वो लोकतंत्र को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। लिहाजा, जब भी लोकतंत्र की जड़ों पर चोट करने का मौका मिलता है, वो पूरी ताकत लगा देते हैं, जबकि भारत में बड़ी आबादी हिंदुओं की है, जिसका लोकतंत्र को लेकर माइंडसेट अलग है। हिंदू समुदाय यही मानता है कि विरोधियों को भी अपनी बात रखने, उसे भी जीने का हक है। वो जानते हैं कि गलतियां स्वाभाविक हैं, इसलिए वो माफ करना भी जानते हैं, इसलिए व्यक्ति हो या समाज या सरकार, किसी के खिलाफ हिंदुओं में इतनी उग्रता नहीं दिखती, जो इस बात का परिचायक है कि उनके रगों में लोकतंत्र मजबूती से बसा हुआ है, इसीलिए कुछ नेताओं का भारत की बांग्लादेश से तुलना करना और भारत के खिलाफ बयानबाजी करने का कोई अर्थ समझ नहीं आता है।

    औचित्यहीन है भारत की बांग्लादेश से तुलना
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