राष्ट्र संवाद नजरिया त्वरित टिप्पणी: स्थानीय नीति पर आए फैसले से टकराव बढ़ने की संभावना, पुलिस-प्रशासन को एतिहात बरतने की जरूरत
देवानंद सिंह
झारखंड हर समय किसी-न-किसी मुद्दे के लिए चर्चा में बना रहता है। कभी घोटालों और भ्रष्टाचार के लिए तो कभी सियासी संग्राम के लिए। लेकिन एक बार झारखंड चर्चा में है। हालांकि यह चर्चा घोटालों, भ्रष्टाचार या फिर सियासी संग्राम के लिए नहीं हो रही है बल्कि हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लिए गए एक खास फैसले की वजह से हो रही है। दरअसल, हेमंत सोरेन कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में जिन 43 प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई, इनमें 1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नियोजन नीति बनाने का प्रस्ताव सबसे अहम माना जा रहा है। यह ऐसा मामला है कि इससे राजनीतिक टकराव बढ़ेगा और जनता भी सड़क पर उतर सकती है। लिहाजा, पुलिस-प्रशासन को सक्रिय रहने की भी जरूरत है। इस फैसले को हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है और इससे बीजेपी तिलमिलाई हुई है, लेकिन वह खुलकर कुछ भी बोलने से बच रही है।
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने स्थानीयता का आधार वर्ष 1985 से पूर्व प्रदेश में रहने वाले लोगों के लिए बनाया था, राज्य में अभी यही नीति लागू थी। झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने जब डोमिसाइल नीति लागू की थी, तब पूरा झारखंड सुलग गया था। राज्य में जमकर हिंसा हुई थी। अब जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1932 का खतियान लागू किया है तो एक बार फिर से बाहरी और भीतरी का मुद्दा उठने से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
भाजपा की सहयोगी दल आजसू 1932 के खतियान के पक्ष में है, जबकि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार से जुड़े लोग अभी खुलकर कुछ भी बोलने से इसीलिए बच रहे हैं, क्योंकि इस सरकार ने इसे 1985 में लागू किया था।
उधर, सरकार के फैसले के बाद झामुमो ने जश्न मनाया है और आदिवासियों के बीच खुशी की लहर है, लेकिन दबी जुबान से शहरों में रहने वाले लोग अभी से विरोध कर रहे हैं, हालांकि अभी तक विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के अलावा किसी ने बयान जारी नहीं किया है।
बाबूलाल मरांडी के मुताबिक हेमंत सोरेन असली मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए स्थानीयता नीति का मुद्दा उछाल रहे हैं। बाबूलाल मरांडी दल बदल मामले में भी अब 22 सितंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। दरअसल, स्पीकर न्यायाधिकरण में फैसला सुरक्षित रखने के खिलाफ मरांडी ने याचिका दायर की थी। फिलहाल, स्थानीयता नीति का मुद्दा गरमाएगा नहीं,
इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक बयानबाजी तो होगी ही, बल्कि शहरी लोगों के बीच खुलकर विरोध भी देखने को मिल सकता है, जैसा हम सबने बाबूलाल मरांडी के शासनकाल के दौरान देखा। हेमंत सोरेन सरकार के मास्टर स्ट्रोक पर भले ही अभी चुप्पी है, लेकिन इसे तूफान के पहले की खामोशी के रूप में लिया जाना चाहिए। लिहाजा, झारखंड पुलिस-प्रशासन को इस पर चौकस रहने की जरूरत है, तभी शांति-व्यवस्था कायम रहेगी।