– *बीजेपी को सत्ता तक नहीं पहुंचा पाए ‘कोल्हान टाइगर’*
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– *आदिवासी वोट बैंक को बीजेपी के पाले में नहीं खींच पाए पूर्व सीएम चंपई सोरेन*
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– *बेटे की घाटशिला सीट भी बचाने में नहीं हो पाए सफल*
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*घर वापसी पर भी हो रहा है मंथन!*
*चंचल की चंचलता के कई रोचक कहानी*
राष्ट्र संवाद संवाददाता
*जमशेदपुर, 26 नवंबर :* कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन बीजेपी की नैया पार नहीं लगा पाए। हैरानी की बात यह है कि वह अपने बेटे की सीट भी नहीं बचा पाए। चंपई सोरेन को पार्टी में लाने के बाद बीजेपी को यह उम्मीद थी कि वह झारखंड के आदिवासी वोटर्स को फतह कर लेगी, लेकिन वह आदिवासी वोटर्स को कन्वेंस करने में सफल नहीं हो पाए, नतीजन उसे हार का सामना करना पड़ा और गठबंधन अपनी सरकार को रिपीट करने में सफल हो गई। सूत्रों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन जिनके माध्यम से भाजपा में गए थे उसी माध्यम से फिर से घर वापसी के लिए मंथन कर रहे हैं प्रेस सलाहकार चंचल गोस्वामी के कारण पिछले कुछ दिनों में कई एक बार जगह सही हो चुकी है? फिर एक बार इसकी तैयारी की जा रही है!
चंपई को पार्टी में शामिल करने से पहले बीजेपी नेताओं का आकलन था कि चंपई सोरेन आदिवासियों को आकर्षित करने में सहायक साबित हो सकते हैं। वे झामुमो की खूबी और खामी को बखूबी जानते और समझते भी हैं। 14 विधानसभा सीटों वाले कोल्हान प्रमंडल इलाके में उनकी गहरी पैठ भी है। पृथक राज्य के आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान रहा है। उनकी अपील कारगर साबित हो सकती है। इतना ही नहीं, झामुमो में उनसे सहानुभूति रखने वालों की संख्या भी काफी है। ऐसे में, चंपई आदिवासी सुरक्षित सीटों पर भाजपा का आंकड़ा बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं, लेकिन बीजेपी नेताओं को यह आकलन सिरे नहीं चढ़ पाया और वह राज्य की सत्ता के करीब नहीं पहुंच पाए। चंपई सोरेन भले ही अपनी सीट बचाने में सफल हुए, लेकिन बेटे की घाटशिला सीट भी नहीं बचा पाए। कोल्हान में जिस बदलाव की उम्मीद की जा रही थी, वह संभव नहीं हो पाया, केवल इतना ही हुआ कि बीजेपी खाता खोलने में जरूर कामयाब हुई। जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी की जीत में इनका कोई योगदान नहीं रहा किसी तरह सरायकेला सीट बीजेपी के खाते में गई
लेकिन बीजेपी का असली मकसद पूरा नहीं हो पाया।
ऐसे में, सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि न केवल चंपई ने बीजेपी का दामन थामकर गलती की, बल्कि बीजेपी ने भी चंपई को पार्टी में शामिल कर भारी गलती की कई लोग तो अब यह चर्चा कर रहे हैं कि यह चंचल की चंचलता का ही परिणाम है क्योंकि आदिवासी वोट बीजेपी के पाले में लाने में चंपई सफल नहीं हो पाए तो चंचल की रणनीति का फेल होना की साबित करता है।
चंपई के माध्यम से बीजेपी ने यह संदेश देने का भरसक प्रयास किया कि आदिवासी समुदाय से आने वाले एक सीनियर नेता के साथ ज्यादती हुई, लेकिन वोटर्स ने बीजेपी के इस संदेश को सिरे से खारिज कर दिया और हेमंत सोरेन पर पूरा विश्वास जताया और उनकी सत्ता में वापसी कराई।