भारत-अमेरिका संबंधों का बेहतर भविष्य
देवानंद सिंह
2024 में डोनाल्ड ट्रंप का पुनः अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना वैश्विक राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम तो है ही, बल्कि भारत के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे भारत-अमेरिका संबंधों को नई उड़ान मिलेगी। ट्रंप की राजनीति और नीतियों को लेकर दुनिया भर में मिश्रित प्रतिक्रिया रही है, लेकिन भारत के दृष्टिकोण से यह चुनावी परिणाम निश्चित तौर पर एक नई दिशा तय करेगा।
डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति ने वैश्विक राजनीति में कई हलचलें पैदा की थीं। 2016 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका को बाहर निकाला, जिनमें पेरिस जलवायु और ईरान परमाणु समझौता मुख्य रूप से शामिल थे। इसके साथ ही, उन्होंने व्यापार युद्ध को बढ़ावा दिया, खासकर चीन और अन्य देशों के साथ, हालांकि यह स्थिति
भारत के लिए चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि ट्रंप के संरक्षणवादी दृष्टिकोण के कारण भारत को व्यापार प्रतिबंधों और शुल्कों का सामना करना पड़ा, लेकिन भारत ने अपने कूटनीतिक रिश्तों को समझदारी से संभालते हुए, अपनी रणनीति को इस बदलाव के अनुरूप ढाला, जिसके बाद रक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग में भारत-अमेरिका संबंधों में अहम वृद्धि हुई।
डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका और भारत के बीच कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दे और रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखे गए थे। ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति, उनके व्यापारिक दृष्टिकोण और चीन के प्रति आक्रामकता ने वैश्विक पटल पर कई बदलाव किए, जिनका प्रभाव भारत पर भी पड़ा। ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच व्यक्तिगत दोस्ती और आपसी तालमेल ने इन रिश्तों को एक विशेष दिशा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच व्यक्तिगत और कूटनीतिक दोस्ती का भारत-अमेरिका संबंधों पर गहरा असर पड़ा था। ट्रंप का भारत के प्रति झुकाव और मोदी का अमेरिका में एक मजबूत और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरना, दोनों देशों के रिश्तों में नया आयाम लाया। मोदी और ट्रंप की दोस्ती का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि दोनों नेताओं ने एक दूसरे के देशों के आर्थिक, सुरक्षा और सामरिक हितों को प्राथमिकता दी।
मोदी ने ट्रंप से मिलने के कई अवसरों पर यह स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच गहरे रणनीतिक संबंधों को और मजबूत किया जा सकता है, खासकर रक्षा और व्यापारिक क्षेत्रों में। ट्रंप ने भी मोदी की कई नीतियों का समर्थन किया, जिनमें भारत की सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और चीन के खिलाफ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी शामिल हैं। ट्रंप जब एक बार फिर से राष्ट्रपति बन गए हैं, तो निश्चित तौर यह दोस्ती और भी गहरी होगी, क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, व्यापार और आतंकवाद जैसे अहम मुद्दों पर समान हित हैं। इसके अतिरिक्त, ट्रंप की विदेश नीति में ‘अमेरिका फर्स्ट’ का सिद्धांत लागू होने के बावजूद,
मोदी और ट्रंप के बीच व्यक्तिगत रिश्तों की स्थिरता इस समीकरण को बेहतर बना सकती है। ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत और अमेरिका के रक्षा संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली थी। ट्रंप ने भारत को एक प्रमुख रक्षा साझीदार के रूप में मान्यता दी, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग को मजबूती मिली। ट्रंप के कार्यकाल में भारत को उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों, रक्षा उपकरणों और सामरिक साझेदारी का लाभ मिला।
अब रक्षा संबंधों को और मजबूत करने का बेहतर अवसर होगा। ट्रंप की आक्रामक चीन नीति और भारत के साथ सुरक्षा संबंधों को प्राथमिकता देने के कारण, मोदी-ट्रंप दोस्ती इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकती है। भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी में और अधिक सहयोग बढ़ सकता है, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में। दोनों देशों का सामूहिक प्रयास भारत-चीन सीमा विवाद और पाकिस्तान से आतंकवाद के खतरे से निपटने में मददगार हो सकता है।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में, भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में उतार-चढ़ाव देखा गया था। ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार असंतुलन को लेकर कई बार शिकायत की और भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिए। फिर भी, भारत ने अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए अपनी रणनीतियां तैयार कीं और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों में वृद्धि जारी रखी। ट्रंप की व्यापारिक नीतियां अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को पहले रखने वाली हो सकती हैं, लेकिन मोदी की कूटनीतिक चतुराई से इन व्यापारिक बाधाओं को पार किया जा सकता है। भारत को अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता होगी और मोदी-ट्रंप संबंध इसे संभव बना सकते हैं। दोनों देशों के बीच सामरिक और व्यापारिक सहयोग के नए अवसर सामने आ सकते हैं, खासकर भारत के कृषि, फार्मास्युटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में।
चीन के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा और उसके क्षेत्रीय विस्तार को लेकर ट्रंप ने हमेशा कड़ा रुख अपनाया। उनका दृष्टिकोण था कि चीन को वैश्विक राजनीति में कड़ा संदेश दिया जाए और व्यापारिक असंतुलन को कम किया जाए। भारत के लिए यह एक अवसर था, क्योंकि भारत और अमेरिका दोनों चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित थे। ट्रंप और मोदी की मित्रता ने इस सामरिक गठबंधन को और मजबूत किया। वहीं, ट्रंप की आक्रामक विदेश नीति और मोदी की कूटनीतिक चतुराई के बीच सामंजस्य बैठाने से भारत को न केवल चीन के खिलाफ रणनीतिक लाभ मिलेगा, बल्कि इस क्षेत्र में उसकी स्थिति भी मजबूत होगी। भारत और अमेरिका के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का एक अहम पहलू रहा है। ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान पर दबाव डालने की कोशिश की और आतंकवादियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की आवश्यकता जताई। मोदी और ट्रंप ने कई अवसरों पर आतंकवाद के खिलाफ मिलकर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया और इसे अपने द्विपक्षीय संबंधों की एक महत्वपूर्ण धारा के रूप में स्थापित किया।
ट्रंप का फिर से राष्ट्रपति बनने से भारत को आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका से और सहयोग मिल सकता है। विशेष रूप से, पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ दबाव बनाए रखने में ट्रंप की सख्ती भारत के लिए लाभकारी हो सकती है। मोदी-ट्रंप के व्यक्तिगत संबंध इस सहयोग को और प्रगाढ़ बना सकते हैं, जिससे पाकिस्तान को आतंकवाद पर काबू पाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में वैश्विक सहयोग को तवज्जो नहीं दी और कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका को बाहर कर लिया। इसके बावजूद, भारत ने अपनी कूटनीतिक चतुराई से वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत की। भविष्य में अच्छी बात यह होगी कि भारत को अमेरिका के साथ सहयोग बढ़ाने और वैश्विक मंचों पर अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।
मोदी और ट्रंप की दोस्ती भारत को संयुक्त राष्ट्र, जी-7, जी-20 और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूत स्थिति दिला सकती है। ट्रंप के नेतृत्व में, भारत और अमेरिका वैश्विक मुद्दों पर एकजुट होकर काम कर सकते हैं, जिससे भारत की कूटनीतिक स्थिति और मजबूत होगी,
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी हो सकती हैं। ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियां भारत के लिए एक चुनौती हो सकती हैं, खासकर व्यापारिक और व्यापारिक शुल्क के संदर्भ में। इसके अलावा, ट्रंप की नीतियां कभी-कभी अप्रत्याशित होती हैं, जिससे भारत को रणनीतिक रूप से लचीला रहना पड़ सकता है। फिर भी, मोदी और ट्रंप की व्यक्तिगत दोस्ती और आपसी सहयोग भारत-अमेरिका रिश्तों में सकारात्मक बदलाव ला सकती है और भारत को वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति और मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।