भारत-रूस संबंधों के ऐतिहासिक महत्व को समझे अमेरिका
देवानंद सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रूस और ऑस्ट्रिया यात्रा के बाद भारत लौट चुके हैं, लेकिन पश्चिमी देशों में प्रधानमंत्री मोदी की खासकर रूस यात्रा और भारत-रूस संबंधों पर चर्चा और चिंता जारी है। दुनिया का सुपरपावर अमेरिका तक प्रधानमंत्री की रूस यात्रा को लेकर चितिंत है, जबकि युक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पहले ही अपनी चिंता जता चुके हैं। पीएम मोदी की रूस यात्रा पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर अपनी चिंता के बारे में पूरी तरह स्पष्ट हैं। हमने उन चिंताओं को निजी तौर पर भारत सरकार के साथ साझा किया है और उसे जारी रखा है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। हम भारत से आग्रह करते हैं और करते रहेंगे कि वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के आधार पर यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और उसकी संप्रभुता को बनाए रखने के लिए यूक्रेन में स्थायी और न्यायपूर्ण शांति स्थापित करने की हमारी कोशिश का समर्थन करे, क्योंकि अमेरिका को लगता है कि रूस यूक्रेन पर युद्ध थोपने का दोषी है, लिहाजा ऐसे देश से भारत को संबंध और मजबूत नहीं करना चाहिए।
दरअसल, फ़रवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ज़्यादातर पश्चिमी देशों और नेटो के निशाने पर रहे हैं। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने पुतिन के ख़िलाफ़ मार्च 2023 में यूक्रेन में हमले को लेकर अरेस्ट वॉरंट भी जारी किया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मॉस्को पहुंचे तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने घर पर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और दोनों ने एक-दूसरे को गले भी लगाया, जिसके चर्चा पूरी दुनिया में हुई।
एक और महत्वपूर्ण फैक्टर यह भी है कि जिस वक्त मोदी रूस के दौरे पर थे, उसी वक्त पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन, नेटो की बैठक की तैयारी हो रही थी। अमेरिका में होने वाली नेटो की इस बैठक में यूक्रेन के लिए सहयोग और नेटो की उसकी सदस्यता अहम मुद्दा था। पीएम मोदी का रूस दौरा पश्चिमी देशों को इशारा था कि वह अपनी रक्षा और अन्य ज़रूरतों के लिए पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं कर सकता।
बीते साल भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के रूस से तेल खरीदने को लेकर यूरोपीय युनियन के विदेश नीति प्रमुख जुसेप बोरेल की टिप्पणी का जवाब दिया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है और ये सामान्य है। भारत रूस के साथ अपने पुराने संबंधों को मज़बूत करने की बात दोहराता रहा है और ऐसा लगता है कि यही अमेरिका के लिए चिंता की बात है, लेकिन अमेरिका को यह भी समझने की जरूरत है कि
भारत और रूस के संबंध एक दीर्घकालिक इतिहास और रणनीतिक उतार-चढ़ाव का परिचय देते हैं। इन दोनों देशों के बीच रिश्तों का विशेष महत्व है, जो विश्व राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। भारत और रूस के इतिहास में एक गहरा संबंध है, जिसे दोनों देशों ने अपनी रक्षा, राजनीतिक और आर्थिक जरूरतों के आधार पर स्थापित किया है। सोवियत संघ के विघटन के बावजूद, भारत और रूस के बीच रक्षा सहित कई क्षेत्रों में सहयोग जारी रहा है। यहां तक कि वर्तमान में भी, विविध क्षेत्रों में उनका सहयोग बढ़ रहा है, जैसे कि रक्षा, आवास, ऊर्जा, राजनीतिक और सांस्कृतिक एवं व्यापारिक क्षेत्रों में। विशेषकर, रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग की दृष्टि से भारत-रूस के संबंधों को दर्शाया जा सकता है।
इन संबंधों की रणनीतिक महत्वपूर्णता भी है, क्योंकि भारत और रूस दोनों ही देश विश्व राजनीतिक प्रणाली में विशेष भूमिका निभाते हैं और दोनों देशों के बीच संयुक्त रूप से अमेरिका के विरुद्ध एक दिशावली तैयार करने में यह संबंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत-रूस संबंधों के विकास के बावजूद, अमेरिका को इसकी चिंता का मतलब गणराज्य के विशेष रूप से रक्षा और विदेशी नीति के प्रति है। भारत और रूस के बीच दूसरे राष्ट्रों के साथ गहराई से जुड़े रहने के कारण, इस संबंध की रणनीतिक प्रतिष्ठा अविवादित है।
विशेषकर, रक्षा और रक्षा सहित क्षेत्रों में उनका सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें राकेट प्रणाली, युद्धपोत, और रक्षा उपकरण शामिल हैं। इन संबंधों की रणनीतिक महत्वपूर्णता भी है, क्योंकि भारत और रूस दोनों ही देश विश्व राजनीतिक प्रणाली में विशेष भूमिका निभाते हैं, इसीलिए अमेरिका को केवल वर्तमान हालातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि भारत और रूस संबंधों के ऐतिहासिक महत्व को भी समझना चाहिए।