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    Home » भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका
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    भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका

    Devanand SinghBy Devanand SinghAugust 12, 2022No Comments6 Mins Read
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    भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका

    प्रोफेसर गंगा भोला

    अमूल्य रत्न से परिपूर्ण जाज्वल्यमान भारत वसुंधरा का अंचल कितना पवित्र, कितना सौभाग्यशाली और कितना अनोखा है, यह किसी से छिपा नहीं है ।यह रत्नगर्भा भारतभूमि अपने अंतर में जहां असंख्य मणिमुक्ताएँ छुपाए बैठी है वही उसके अंचल में समय-समय पर ऐसे नवरत्न पैदा हुए हैं जिनकी जीवन ज्योति से जगतीतल जगमगा उठा, जिन्होंने चट्टान बनकर समय के प्रभाव को रोक दिया,जो अपने लिए नहीं वरन विश्व के लिए जिये और जिनके पवित्र तेज के समक्ष समस्त अमानवीय एवं अपावन विचारों ने घुटने टेक दिए।अंधकार से उजाला की ओर ,संघर्ष से शांति की ओर,गुलामी से आजादी की ओर ले चले यह स्वतंत्र सेनानी ।आज जो हम स्वतंत्र भारत में श्वास ले रहे हैं उसे दिलाने के लिए माँ भारती के यह अमर बर पुत्रों ने अपने जीवन को त्याग दिया ।

    राष्ट्रवाद वह अटूट बंधन है जो एक जंजीर में समान विचारधारा वाले व्यक्तियों को आपस में जोड़ते रहते हैं एवं एक विश्व जनमत का निर्माण करते हैं। भारत देश परतंत्र होते हुए भी भारत की आत्मा कभी परतंत्र नहीं था । वैचारिक रूप से नवीन भारत एक नई दिशा प्रदान करने के कारण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल का स्थान राजनीतिक इतिहास में स्वर्णिम अक्षर में लिपिबद्ध है ।राजनीतिक इतिहास में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता ।लक्ष्यदीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने,चीन के कब्जे से भारत भूमि को छुड़ाने, सोमनाथ मंदिर का पूर्ण निर्माण आदि अनेकों काम से माँ भारती के चरण में अर्पित किए हैं ।

    किसान हमारे अन्नदाता, सेना हमारे रक्षक तो जय जवान, जय किसान के नारा से हरित क्रांति और औद्योगिकरण की राह भी दिखाई ‌वो एक लोकप्रिय भारतीय राजनेता,महान स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे ।

    स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । यह हमारा जन्म भूमि, यह हमारा कर्म भूमि है,हमें ‘पूर्ण स्वराज’चाहिए ।सविनय अवज्ञा आंदोलन के सूत्रधार थे वो यशस्वी जवाहरलाल नेहरू, आजादी के महानायक और आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ।

    आजाद हिंद फौज के महानायक, कर्मयोद्धा सुभाष चंद्र बोस जो सभी के पास समान अधिकार,सभी के पास समान अवसर का बात करते थे । क्रांतिकारी आंदोलन के महापुरुषों की जयंती को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय पराक्रम दिवस ‘ के रूप में मनाने की संकल्प लिया है ।

    गांधीजी का मानना था कि जहां सत्य है वहां ईश्वर तथा नैतिकता ही इसका आधार है ।अहिंसा का अर्थ दूसरों को मानसिक और शारीरिक पीड़ा ना पहुंचाते हुए प्रेम और उदारता भावना के साथ संग्राम में शामिल होना है। लोगों के जीवन में सुधार, परिवर्तन, मन में क्रांति लाना आदि काम सरकारी शक्ति से कभी नहीं हो सकता । इसे प्राप्त करना हो तो,इस क्षेत्र में जाति, धर्म , वर्ण को भूल कर सभी वगों के, सभी समाज के लोगों को शामिल होना है । व्यवस्था का रूप फिर राजाशाही, लोकशाही, साम्यवाद, जो कुछ भी हो उसमें कोई फर्क नहीं है ।

    राजनेता के गुणों में उसका लोकप्रिय होना तथा उसके समर्थकों को उसे आदर प्राप्त होना आवश्यक माना गया है l यदि तिलक के व्यक्तित्व पर इसी दृष्टि से दृष्टिपात किया जाए तो यह मिलता है कि वे लोकमत को सर्वोपरि मानते थे ।फलस्वरूप उन्हें अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई । उन्होंने इतिहास एवं परंपराओं से जुड़कर जन सामान्य का आदर एवं लोकप्रियता प्राप्त की। लोकजन से अपने व्याख्यानों एवं लेखों से वे जुड़े रहे ।तिलक ने लिखा,” प्रजा कितनी ही कमजोर क्यों ना हो, यह बात इतिहास से सिद्ध है कि धैर्य से, एकजुटता से और निश्चय से वह शास्त्रविहीन होकर भी भारी पड़ती है ।

    गोपाल कृष्ण गोखले, समाज सुधारक जिन्होंने भारत के वंचितों की राहत के लिए काम करने के लिए एक सांप्रदायिक संगठन की स्थापना की। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभिक वर्षों में उदारवादी राष्ट्रवादियों का नेतृत्व किया।गोपाल कृष्ण गोखले गांधी द्वारा अपने राजनीति के गुरु के रूप में माने जाने वाले उदार राष्ट्रवादी थे ।

    भारतीय संस्कृति की चेतना में नई जान डालने वाले युगदृष्टा रविंद्र नाथ टैगोर एक ही साथ महान साहित्यकार, दार्शनिक,संगीतज्ञ,चित्रकार,शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी के साथ मानवतावादी भी थे, जिन्होंने दो देश के लिए राष्ट्रगान लिखा ।लोगों से रूबरू होने के लिए और लोगों तक अपने विचार पहुंचाने के लिए साधन काफी सीमित थे,राष्ट्रीय एकता तथा लोगों को संग्राम के लिए उत्तेजित करने हेतु लोगों का मार्गदर्शन करना राष्ट्रीय ज्ञान एक ‘अस्त्र’ था ।
    16 अक्टूबर 1905 को रविंद्र नाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनाया गया रक्षाबंधन उत्सव से ‘बंग -भंग ‘आंदोलन का आरंभ हुआ ।इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया ।टैगोर ने विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जालियांवाला कांड 1919 की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा प्रदान की गई ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी । ‘नाइटहुड’ मिलने पर नाम के साथ “सर” लगाया जाता है ।

    सितंबर 1893 में विश्व धर्म परिषद में भाषण देते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा ‘सहिष्णुता पर आधारित होने के कारण हिंदू धर्म सभी धर्मों का अस्तित्व स्वीकार करता है ,मैं सत्य को ही ईश्वर मानता हूं और अखिल विश्व को अपना देश । ”

    वर्तमान एक भारतीय परिप्रेक्ष्य में भारतीय प्रधानमंत्री इसे राष्ट्रवाद विचारधारा के समस्त समर्थक, सदैव उनका अनुकरण करते दिखाई देते हैं । आजादी का अमृत महोत्सव आजादी के 75 साल और इसके लोगों,संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मानने और मनाने के लिए भारत सरकार की एक पहल है ।भारत को आजाद कराने के लिए किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और क्या-क्या कुर्बानियां भारत को देनी पड़ी यह आज की युवा पीढ़ी को जानना जरूरी है । आजादी का महोत्सव किसी विशेष जाति, धर्म अथवा राज्य नहीं बल्कि संपूर्ण भारत के लिए महत्वपूर्ण है । ‘आजादी का अमृत उत्सव’के तहत इस बार सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’अभियान की शुरूआत की है जिस से जुड़कर आप भी अपने घर पर तिरंगा लगा सकते हैं ।

    हम यह ना भूलें कि हम देश की प्रगति के उस बिंदु पर खड़े हैं,जहां हमारी उपलब्धियां अनिवार्यतया,नगण्य और असफलताएं बार-बार तथा पीड़क और परीक्षा लेने वाली होंगी।यह वह प्राप्ति है जो नियति की अनुकंपा से हमें इस संघर्ष में मिली है,यह काम हम ज्यों ही पूरा कर लेंगे, हमारा दायित्व खत्म हो जाएगा । इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाली पीढ़ियों को देश की सेवा के कार्य में सफलताएं मिलती रहेगी ।हमें, यानी वर्तमान पीढ़ी के लोगों को, अपनी असफलताओं के बावजूद उसकी सेवा करके संतुष्ट होना ही चाहिए क्योंकि असफलताएं कठोर भले ही हों, शक्ति उन्हीं से फुटेगी जिससे अंततः महान कार्य पूरे होंगे ।

    :–प्रोफेसर गंगा भोला
    रंभा कॉलेज

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